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Chardham Yatra: पिता के 25 वर्ष पुराने स्कूटर पर मां संग बेटा पहुंचा चारधाम..

• LAST UPDATED : June 6, 2023

India News(इंडिया न्यूज़), Chardham Yatra: माता-पिता इस धरती पर भगवान का दूसरा रूप होते हैं और इस बात को मानने वाले लोग अपने माता-पिता की सेवा हमेशा ही सर्वोपरि से मानते हैं। मैसूर, कर्नाटक के कंप्यूटर इंजीनियर 44 साल दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार ऐसे ही एक मातृभक्त हैं, जिन्होंने अपनी 73 साल की माता को तीर्थयात्रा कराने का बेड़ा उठाया।

उन्होने यह तीर्थयात्रा अपने पिता के 25 साल पुराने स्कूटर पर की है। अभी वह अपनी बुजुर्ग माता को उत्तराखंड के प्रसिद्ध चारधाम के दर्शन कराने के बाद तीर्थनगरी ऋषिकेश से लौटे हैं।

5 साल से भारत का मां संग भ्रमंण

कर्नाटक के मैसूर के बोगंडी गांव के रहने वाले दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार अद्वितीय हैं। पिछले पांच साल से, वह अपनी मां के साथ अपने पिता के 25 साल पुराने स्कूटर पर भारत भ्रमण कर रहे हैं और तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। इस स्कूटर के अलावा उनके पास एक टूटी स्क्रीन वाला मोबाइल, दो हेलमेट, दो बोतल पानी, एक छाता और एक बैग है, जिसमें कुछ जरूरी सामान रखा हुआ है। यही हमसफर ही मां-बेटे के सफर के साथी हैं।

दरअसल, साल 2015 में पिता की मौत के एक दिन बाद दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार की मां चुड़ा रत्नामा ने अपने बेटे से कहा कि संयुक्त परिवार के साथ रहने और परिवार को पालने की व्यस्तता के कारण आज तक उसने घर से बाहर कोई जगह नहीं देखी और यह सुनकर कृष्ण कुमार हैरान रह गए।

16 जनवरी 2018 को शुरू किया था सफर

उसी दिन, कृष्ण कुमार ने माता को पूरे भारत के भ्रमण और तीर्थ यात्रा के लिए ले जाने का फैसला किया। इसके लिए कृष्ण कुमार ने अपने पिता के 25 साल पुराने स्कूटर को सफर का साथी बनाया और 16 जनवरी 2018 को अपना यह सफर शुरू कर दिया। 25 साल पुराने इस स्कूटर पर दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार ने अपनी मां के साथ अब तक 70 हजार 268 किमी का सफर तय कर लिया हैं। कृष्ण कुमार ने अपनी इस यात्रा को “मातृ सेवा संकल्प यात्रा” का नाम दिया है। इस यात्रा में उन्होंने नेपाल, भूटान, म्यांमार समेत भारत के ज्यादातर राज्यों का दौरा भी तय किया है।

जमा पूंजी और उसके ब्याज से चलता है खर्च

इनका न तो कोई निश्चित लक्ष्य होता है और न ही रुकने की कोई जगह। यह भी नहीं पता कि उन्हें कितनी  दूरी तय करनी है। कृष्ण कुमार कहते हैं कि बस चलते जाना है, जितना हो सके मां को देश व दुनिया को घूमाना  है। कृष्ण कुमार का कहना है कि नौकरी के दौरान जमा पूंजी और उसके ब्याज से ही उनका खर्च चलता है। वह जहां भी जाता है, धार्मिक मठों और मंदिरों में रहता है। ज्यादातर जगहों पर उन्हें मुफ्त खाना मिलता है। ऋषिकेश में भी कृष्ण कुमार अपनी मां के साथ तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम में ठहरे हुए हैं। इस बीच वह मां को गंगा के दर्शन कराने और आसपास के मंदिरों में दर्शन कराने भी ले जा रहे हैं।

कृष्ण कुमार ने नहीं की शादी

कृष्ण कुमार के मुताबिक, 2016 में वह बेंगलुरु की एक मल्टीनेशनल कंपनी में कॉरपोरेट टीम लीडर के तौर पर काम कर रहा था। हालांकि, जब उन्हें अपनी मां को ट्रिप पर ले जाने का ख्याल आया तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी। कंप्यूटर इंजीनियर कृष्ण कुमार ने शादी नहीं की। उसने बताया कि उसके पिता दक्षिणामूर्ति वन विभाग में कार्यरत थे।

2015 में उनका निधन हो गया था। जिसके बाद वह अपनी मां को उनके पास बेंगलुरु ले आए। शाम को ऑफिस से लौटते समय जब मां-बेटा आपस में बात कर रहे थे तब मां ने कृष्ण कुमार को बताया कि उसने घर से बाहर की दुनिया नहीं देखी है।

लॉकडाउन के दौरान वह अपनी मां के साथ यात्रा कर रहे थे

इस पर उन्हें लगा कि जिस मां ने उन्हें पूरी दुनिया देखने लायक बनाया, उसी मां ने घर के हर इंसान को देखने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी और मां को आज तक कुछ नजर नहीं आया और यहीं से उनके जीवन की दिशा बदली। यात्रा के अपने अनुभव साझा करते हुए कृष्ण कुमार ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान वह अपनी मां के साथ यात्रा कर रहे थे। जब हम भूटान सीमा पर पहुंचे तो पता चला कि सीमाएं सील कर दी गई हैं। कोरोना के उस दौर में उन्होंने एक महीना 22 दिन भारत-भूटान सीमा के जंगलों में गुजारे। जिसके बाद जब उनके पास बना तो वे एक हफ्ते में 2673 किलोमीटर स्कूटर चलाकर वापस मैसूर पहुंचे। सब कुछ सामान्य होने के बाद उन्होंने 15 अगस्त 2022 से दोबारा अपनी यात्रा शुरू की।

रिश्तों के दौरान लोगों को जिंदा रहते हुए उनका ख्याल रखना चाहिए

यात्रा के पीछे की प्रेरणा के बारे में कृष्ण कुमार का कहना है कि जब लोग दुनिया से आखिरी विदा लेते हैं तो वे मृतक के फोटो पर माल्यार्पण कर, उसे याद कर उसकी मनोकामना की बात करते हैं। रिश्तों के दौरान लोगों को जिंदा रहते हुए उनका ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह इस पछतावे के साथ नहीं जीना चाहते। इसलिए अपने पिता के गुजर जाने के बाद अपनी मां को अकेला छोड़ने के बजाय, उन्होंने उन्हें दुनिया दिखाने का फैसला किया और एक यात्रा पर निकल पड़े।

दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार बताते हैं कि प्रसिद्ध उद्योगपति आनंद महिंद्रा उनकी मातृभक्ति और अपनी मां को स्कूटर पर भारत घुमाने ले जाने की उनकी कहानी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें एक कार गिफ्ट की। हालाँकि, वह एक साधारण जीवन जीने में विश्वास करता है, इसलिए वह कार के बजाय स्कूटर से यात्रा करना पसंद करता है। इससे पिता के सफर में साथ होने का अहसास बना रहता है।

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