India News (इंडिया न्यूज) Story of ‘Kargil’ : पराक्राम के 24 साल, विजय के 24 साल, शौर्य के 24 साल, गर्व के 24 साल, कारगिल पर जीत के 24 साल। 24 साल के ना जाने कितने क़िस्से हैं, कितने राज़ और कितनी कहानियां। क्या-क्या याद करूं।
कैप्टन विजयंत थापर की शहादत, कैप्टन मनोज पांडे का सर्वोच्च बलिदान, कैप्टन विक्रम बत्रा का ख़ुद को देश पर न्यौछावर करने का जज़्बा- भारत का ज़र्रा-ज़र्रा, क़तरा-क़तरा कारगिल के सपूतों को सलाम करता है। 24 साल पहले फ़ौज के पास पराक्रम तो था, लेकिन हथियारों की मज़बूती नहीं। 24 साल पहले भारतीय वायुसेना के पास मिराज तो था लेकिन बरसाने वाले बम नहीं। जज़्बे और जज़्बात की विजय गाथा है कारगिल। भारत का मान मस्तक ऊंचा करने और रखने वाला ‘शिखर भाल’ है कारगिल।
जानते हैं, 1999 में अमेरिका ने वादा करके बम नहीं दिया, तो भारत ने देसी बम के साथ जिगरा दिखाया। 18000 फ़ीट की ऊंचाई पर दुश्मन था, फ़ौजी हमला करते तो पाकिस्तान पत्थर बरसाने को तैयार था। अमेरिका ने GPS लोकेशन नहीं दी, भारत के सामने बड़ा फ़ैसला करने का वक़्त था। बड़ा फैसला हुआ, जिसका नाम इतिहास में दर्ज हुआ- ऑपरेशन सफ़ेद सागर।
मुश्कोह, कारगिल, द्रास, बटालिक सेक्टर में ऑपरेशन चलाना इतना भी आसान नहीं था। भारतीय फ़ौज के पास था चट्टान जैसा हौसला। हौसले से पहाड़ का सीना चीरने की तैयारी हुई। पाकिस्तानी फ़ौज भारतीय सीमा में 13 किमी अंदर आ चुकी थी। पाकिस्तान का इरादा श्रीनगर को लेह से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे से काटने का था। सियाचिन और लद्दाख तक सप्लाई का यही एक रास्ता था। दुश्मन का प्लान सिर्फ एक था- भारतीय सेना को रसद, पानी, डीज़ल, पेट्रोल की सप्लाई बंद करा कर रीढ़ पर हमला करना।
तोलोलिंग, टाइगर हिल और प्वाइंट 5287 जीतने की कहानी बहुत दिलचस्प है। भारतीय वायुसेना के पास मिराज 2000 एयरक्राफ्ट तो था, लेकिन मारक क्षमता वाले बम नहीं। सेना ने 1000 पाउंड के देसी बम इस्तेमाल करने का फैसला किया। जुगाड़ बम ने पाकिस्तानी एयरबेस और बंकर की धज्जियां उड़ा कर रख दीं। कायर, बुज़दिल पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के शव तक लेने से इनकार कर दिया। भारत के जांबांज़ों ने पाकिस्तान को बेदम कर दिया।
3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक कारगिल युद्ध चला। भारत के 527 जवान शहीद हुए, जबकि 1363 सैनिक घायल हुए। भारतीय सैनिकों ने कारगिल युद्ध में अपने खून का आख़िरी क़तरा देश की रक्षा के लिए न्यौछावर कर दिया। मां की गोद सूनी हुई, पत्नी की मांग का सिंदूर मिटा, पिता के बुढ़ापे का सहारा गया। शहीद के हर परिवार ने जज़्बात को जज़्बे में ढाला, जज़्बे को अल्फ़ाज़ दिए- शान तेरी कभी हो ना कम, ऐ वतन, मेरे वतन, प्यारे वतन।
(लेखक राशिद हाशमी इंडिया न्यूज़ चैनल में कार्यकारी संपादक हैं)
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