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UP Politics : अजय राय को यूपी की कमान सौंप कांग्रेस ने खेला स्वर्ण कार्ड, I . N . D . I . A गठबंधन के समीकरणों को भी साधने की कोशिश

• LAST UPDATED : August 18, 2023

India News (इंडिया न्यूज़) UP Politics Martand Singh, Lucknow : लोकसभा 2014 की तैयारियों में जुटी कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बड़ा संगठनात्मक बदलाव करते हुए अजय राय को अपना सेनापति नियुक्त किया है। अजय राय उत्तर प्रदेश में बृजलाल खाबरी की जगह लेंगे।

बृजलाल खाबरी की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी तय

अभी तक अजय राय कांग्रेस के प्रयागराज के प्रांतीय अध्यक्ष के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे थे। निकाय चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद से ही बृजलाल खाबरी की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी तय मानी जा रही थी।

राय की पहचान मुखर जमीनी नेता के रूप में रही है। कांग्रेस में हुए इस बदलाव को राजनीतिक पंडित कई मायने में अहम मान रहे हैं। लोकसभा चुनाव के पहले अजय राय को अध्यक्ष बनाने के पीछे कई वजहें मानी जा रही हैं।

पूर्वांचल पर भी फोकस 

जानकारों का कहना है कि अजय राय कांग्रेस आलाकमान की पसंद इसलिए बने क्योंकि वो लगातार वाराणसी में पीएम मोदी को खिलाफत करते रहे हैं। साथ ही राय को यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे पार्टी का पूर्वांचल पर फोकस भी नजर आ रहा है।

कांग्रेस पूर्वांचल को कितनी गंभीरता से लेती है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रियंका गांधी ने जब सियासत में कदम रखा तब उनको महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की ही जिम्मेदारी दी गई थी।

विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस का फोकस 

एनडीए के खिलाफ कांग्रेस की अगुआई में बने विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के एजेंडे में भी अजय राय फिट बैठते हैं। उत्तर प्रदश की बात करें तो कांग्रेस के साथ सपा और आरएलडी शामिल है। कांग्रेस का फोकस विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों को देखते हुए जातीय और सामाजिक समीकरण साधने पर भी है।

सपा के सहारे पार्टी की नजर ओबीसी वोट पर है तो वहीं जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के सहारे पश्चिमी यूपी में जाट वोट मिलने की उम्मीद है। ऐसे में कांग्रेस अजय राय के सहारे अपना परंपरागत वोट बैंक रहे सवर्णों को फिर से साथ लाने की कोशिश में है।

भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश

भूमिहार बिरादरी से आते हैं अजय राय  यूपी में भूमिहार वर्ग की पकड़ ब्राह्मण और राजपूत दोनों वोट बैंक के बीच दिखती है। अपनी इस सामाजिक पकड़ का फायदा उठाकर अजय राय भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से आने वाले अजय राय की राजनीतिक यात्रा भी काफी दिलचस्प है। पांच बार विधायक राह चुके अजय राय का सियासी सफर बीजेपी के साथ शुरू हुआ था।

1996 से 2009 तक विधायक

1996 में वाराणसी की कोलअसला विधानसभा सभा सीट से अजय राय पहली बार विधायक बने और 2009 तक इस सीट पर लगातार विधायक रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान अजय राय ने अपनी दावेदारी पेश की। लेकिन भाजपा ने यहां से सीनियर नेता मुरली मनोहर जोशी को उम्मीदवार बना दिया। नाराज अजय राय ने भाजपा छोड़ दी।

वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। सपा ने उन्हें वाराणसी से उम्मीदवार बनाया। लेकिन, मुरली मनोहर जोशी के हाथों उनकी हार हुई। इसके बाद कोलअसला विधानसभा सीट जिसे अब पिंडरा नाम से जाना जाता है पर हुए 2009 के उप चुनाव में वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे और जीत हासिल की।

2012 में राय कांग्रेस में हुए शामिल

2012 में राय कांग्रेस में शामिल हुए। उसके बाद 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों ही बार हार गए। अजय राय गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं।

उनकी कांग्रेस में तब एंट्री हुई थी जब दिग्विजय सिंह यूपी के प्रभारी और कांग्रेस महासचिव थे। सपा शासनकाल में अजय राय को जेल भी जाना पड़ा था। 2015 में वाराणसी में अन्याय प्रतिकार यात्रा के दौरान हुए बवाल के बाद अजय राय को गिरफ्तार किया गया था।

तब राय को सात महीने से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा था। अभी भी यह मामला अदालत में विचाराधीन है। अजय राय 2017 और 2022 में विधानसभा चुनाव जीतने में नाकाम रहे, लेकिन वह वर्षों से कांग्रेस में महत्वपूर्ण संगठनात्मक जिम्मेदारियां निभा रहे हैं।

समूचे पूर्वांचल में प्रभाव

अजय राय एक जमीनी नेता माने जाते हैं। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने से पूर्वांचल में कांग्रेस अपनी पकड़ और मजबूत बनाएगी। अजय राय का प्रभाव न सिर्फ वाराणसी बल्कि समूचे पूर्वांचल और बिहार की यूपी से लगी सीमाओं में भी अच्छा खासा माना जाता है।

सियासी जानकारों की माने तो कांग्रेस इस समय उत्तर प्रदेश में जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रही है खासकर पूर्वांचल में। ऐसे में अजय राय की ताजपोशी पार्टी के लिए संजीवनी का काम कर सकती है।

पूर्वांचल में अजय राय को हटा दें तो कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो अपने बल-बूते बड़ी संख्या में लोगों को जुटा पाए। अजय राय के पास कार्यकर्ताओं की अच्छी तादाद है।

पूरी मजबूती से रखते रहे हैं अपनी बात

वहीं दूसरी तरफ अजय राय मुखर नेता हैं और तमाम मुद्दों पर लगातार लोगों के बीच अपनी बात पूरी मजबूती से रखते रहे हैं। यही नही जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी तब जेल में मुख्तार अंसारी को स्पेशल ट्रीटमेंट मिलने की खबरों ने खूब तेजी पकड़ी थी।

उस समय भी अजय राय अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ सवाल खड़े किए थे। अजय राय के बारे में कहा जाता है कि वो जितनी पकड़ भूमिहार बिरादरी में रखते हैं, उतनी ही दूसरी जातियों में भी।

1991 में उनके भाई की हुई हत्या

आपको बता दें कि 3 अगस्त 1991 को अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की हत्या हुई थी। अजय राय और उनके बड़े भाई घर वाराणसी स्थित अपने घर के दरवाजे पर खड़े थे, तभी कुछ हमलावर वहां एक कार से पहुंचे और अवधेश को गोली मार दी।

ऐसा कहा जाता है कि अजय राय ने जवाबी कार्रवाई में अपनी लाइसेंसी पिस्तौल से गोली चलाई थी, जिसके बाद हमलावर कार छोड़कर फरार हो गए।

इस हत्याकांड में पूर्वांचल के चर्चित माफिया मुख्तार अंसारी का नाम सामने आया था। राय इसके लिए लगातार कानून लड़ाई लड़ते रहे, बाद में मुख्तार को इसी मामले में उम्रकैद की सजा मिली।

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