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Halal Certificate Case : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से मांगा जवाब कहा – ‘हलाल सर्टिफिकेट वाले प्रोडक्ट पर रोक क्यों?’

• LAST UPDATED : January 5, 2024

India News (इंडिया न्यूज़) Halal Certificate Case : उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाणित उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने और हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाले संस्थानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भेजा है।

चेन्नई की हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने यूपी सरकार और FSSAI के फैसले को गलत बताते हुए याचिका दायर की है. याचिकाकर्ता की दलील थी कि इस फैसले का असर पूरे देश पर पड़ेगा, इसलिए सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी चाहिए.

प्रोडक्ट पर लग सकता प्रतिबंध

उत्तर प्रदेश में नवंबर 2023 में बिना हलाल सर्टिफिकेट वाले खाद्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस संबंध में सरकार द्वारा जारी आदेश में कहा गया था कि अब राज्य में हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों के निर्माण, भंडारण, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

हलाल को लेकर होते रहते विवाद

इस हलाल को लेकर आमतौर पर विवाद होते रहते हैं । दरअसल, जिस जानवर को काटकर मारा जाता है उसके मांस को हलाल कहा जाता है। जिबिंग का मतलब है कि जानवर का गला पूरी तरह से काटने के बजाय काटा जाता है, जिससे उसके शरीर से लगभग सारा खून निकल जाता है। ऐसे जानवरों के मांस को हलाल मीट सर्टिफिकेशन मिलता है।

हलाल प्रमाणीकरण क्या है?

हलाल सर्टिफिकेशन इस्लाम के मुताबिक दिया जाता है. हलाल सर्टिफिकेशन को ऐसे उत्पादों के रूप में समझा जा सकता है जिनका उपयोग मुस्लिम समुदाय के लोग कर सकते हैं। मुस्लिम लोग केवल हलाल उत्पादों का ही उपयोग करते हैं। हलाल प्रमाणित होने का मतलब है कि मुस्लिम समुदाय के लोग ऐसे उत्पादों को बिना किसी झिझक के खा सकते हैं।

भारत में हलाल सर्टिफिकेशन पहली बार 1974 में शुरू किया गया था। भारत में हलाल सर्टिफिकेशन के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है। कई निजी कंपनियां और संस्थान इस प्रकार का प्रमाणन जारी करते हैं। आरोप है कि हलाल मार्केट को बढ़ाने के लिए कुछ संस्थाएं ऐसे उत्पादों पर भी यह सर्टिफिकेशन दे रही हैं ।

जिनका इस्तेमाल कई लोग रोजाना करते हैं। यूपी सरकार का कहना है कि इस तरह के सर्टिफिकेशन की जरूरत केवल मांस की बिक्री पर होती है, सभी पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर ऐसे सर्टिफिकेशन की जरूरत नहीं होती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी जांच भी एसटीएफ को सौंपी थी।

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