Tuesday, July 2, 2024
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Bhopal Gas Tragedy: आज भोपाल गैस की 39वीं बरसी, पीड़ितों ने बताई आपबीती

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India News(इंडिया न्यूज़),Bhopal Gas Tragedy: बात 1984 की है, जब अमेरिकन फैक्ट्री ‘यूनियन कार्बाइड’ नाम को इंसेक्टिसाइड बनाने के लिए भोपाल में स्थापित किया गया था। फैक्ट्री शुरू होने पर भोपाल के लोग को लग रहा था कि अब उनके जीवन में खुशहाली के दिन आएंगे और उनको फैक्ट्री की वजह से रोजगार के अवसर मिलेंगे। लेकिन 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी आनी रात एक जबरदस्त धमाके ने पूरे भोपाल में हड़कंप मचा दिया। इस धमाके ने ऐसे जख्म दिए जिनका इलाज आज भी हजारों परिवार ढूंढ रहे हैं, लोगों के जले हुए दमन आज भी इस बात का गवाह है। 2-3 दिसंबर की उस काली रात को यूनियन कार्बोहाइड्रेट फैक्ट्री से निकलने वाली तकरीबन 40 टन जहरीले एम.आई.सी गैस ने एक भयंकर हादसे को अंजाम दिया।

ऐसे हुआ था पूरा हादासा

यह पूरा हादसा कारखाने के प्रबंधक की वजह से हुआ था। जिसने सुरक्षा के पुख्ता हिसाब करने में बेहद हिलापरवाही बरती थी, जिसके कारण पानी और अन्य पदार्थ ने मी के स्टोरेज टैंक में घुसकर एक उग्र क्रिया शुरू कर दी। जिसकी वजह से बने पदार्थ जहरीले गैस के रूप में बाहर निकाल ले जो हवा में फेल गई और भोपाल के करीब 40 वर्ग मीटर इलाके में पूरी तरह फैल गई। गैस के असर से शहर में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 15000 लोग मर गए थे और लाखों लोग घायल हुए।

चारों ओर मचा था हाहाकार

वो रात बेहद ही भयानक थी। उसे रात को हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था। लोग अपने घरों से निकलकर इधर-उधर भाग रहे थे। कहीं पर लाशों के डेरे लगे थे, तो कहीं चीख रहा थी, कहीं कोई रो रहा था, उसी रात को जिन लोगों ने ये सब देखा था, वह आज भी ख्वाब से काप उठते हैं।

हादसे के पीड़िता ने बताई अपबीती

गैस पीड़ितो की लड़ाई लड़ने वाली ओर उस दिन इस हादसे का शिकार होने वाली और अपने परिवार के लिए लड़ाई लड़ने वाली रशीदा बी कहती हैं कि 1984 से पहले हमें यह नहीं पता था कि यहां यूनियन कार्बाइड नाम की भी कोई चीज है और इस तरह का कोई गैस बनाया जाता है। 2 दिसंबर 1984 की रात हम लोग सोने जा रहे थे। नींद लंबी ही हो गई कि बाहर से आवाज आने लगी, ‘भागो, भागो थी सब मर जाओगे’।

हमारी नंद के लड़के ने आउटडोर देखा तो लोग सैलाब की तरह भागते हुए आ रहे थे। किसी की कोई बात समझ में नहीं आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि मिर्ची के रेस्टोरेंट में आग लग गई है। हमारी ज्वाइंट फैमिली थी जिसमें 37 लोग थे। असली के दिन थे। सभी ने उठ-उठकर भागना शुरू कर दिया। हम भी बाहर निकले और आधा किलोमीटर भी नहीं जा पाए थे कि आंखें बड़ी-बड़ी हो गईं। ऐसा लग रहा था कि सीने में आग लग गई है।

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Ritesh Mishra
Ritesh Mishra
रितेश मिश्रा ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत ITV(India News)से की है। ये इंडिया न्यूज़ के साथ पिछले 11 महीने से जुड़े हुए हैं।
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