इंडिया न्यूज़, लखनऊ:
10 Beautiful Places To Visit In Uttar Pradesh: भारत के गढ़ के रूप में प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश, एक समृद्ध संस्कृति (Culture) का विरासत है। यह केवल प्रकृति द्वारा उपहार में नहीं है, बल्कि सबसे अच्छे मानव निर्मित स्मारकों (monuments) में से कुछ के लिए घर भी है। भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश ने हमेशा से ही अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहा है। वर्ष 1947 में आजादी के बाद से अब तक यह प्रदेश देश को कुल 7 प्रधानमंत्री (Prime minister) दे चुका है। प्रदेश की अति-प्राचीन धरती पर अनेक संस्कृतियां और परंपराएं पली-बढ़ी हैं। धर्म और इतिहास ने मिलकर प्रदेश को अति समृद्ध बनाया है।
उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना दोनों नदियों का प्रवाह है और एक भौगोलिक ज्ञान का केंद्र भी है। उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थलों की बात करें तो किसी भी व्यक्ति की आंखों के सामने हिमालय की वादियों का नजारा आ ही जाएगा। उत्तर प्रदेश में घूमने के लिए कई पर्यटन स्थल हैं। जिनका इतिहास में अहम स्थान है। आज हम आपको ऐसे ही 10 जगहों पर के बारे में बताने जा रहे हैं। साथ ही उन जगहों पर कैसे पहुंचे।
आगरा (Agra) विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के लिए पूरे दुनिया भर में मशहूर है। इस प्राचीन शहर में अद्भुत स्मारक देखने योग्य है। आगरा के ताज महल, लाल किला और फतेहपुर सीकरी में दुनिया भर से पर्यटक घूमने आते हैं। आगरा अपनी संस्कृति, कला और दर्शन के लिए जाना जाता है, जो इस शहर को सदियों से समृद्ध करते आए हैं।
ताज महल
मुगल बादशाह शाहजहां (shahjahan) ने इसे अपनी पत्नी मुमताज (Mumtaz) की याद में बनवाया था। इसका निर्माण 1653 में पूरा हुआ था। यह भारत का सबसे खूबसूरत स्मारक है। ताज महल (Taj Mahal) दुनिया के 7 अजूबों में शामिल है।
आगरा का लाल किला
मुगल बादशाह अकबर (Akbar) ने इस किले का निर्माण सन 1565 में शुरू कराया था। लेकिन इसके निर्माण में सालों लग गए और यह अकबर के पोते शाहजहां के शासनकाल में बनकर तैयार हुआ।
सिकंदरा का किला
इस किले का निर्माण अकबर ने शुरू करवाया था लेकिन उनके बेटे जहांगीर (Jahangir) के शासनकाल में यह बनकर पूरा हुआ। 1613 में बनकर तैयार हुए इस किले में हिंदू और मुस्लिम दोनों स्थापत्य-वास्तु कला देखने को मिलती है। यह अकबर की धार्मिक सहिष्णुता का परिचायक है।
इत्माद-उद-दुल्लाह
यह मिर्जा गायस बेग (Mirza Gayas Beg) का मकबरा है, जो अकबर के दरबार में बैठता था। इसका निर्माण मुगल शासक जहांगीर की बेगम नूरजहां (noorjahan) ने 1622-1628 के बीच करवाया।
राधा स्वामी समाधि
राधास्वामी संप्रदाय की शुरुआत करने वाले राधास्वामी (radhaswami) की पवित्र निशानियां यहां रखी गई हैं। इसके परिसर में खूबसूरत मंदिर भी है।
आगरा कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग सेः आगरा के लिए इंडियन एअरलाइंस की दिल्ली, खजुराहो और वाराणसी से सीधी फ्लाइट है। खेड़िया एयरपोर्ट भारत सरकार के पर्यटन दफ्तर से 9 किलोमीटर की दूरी पर है।
रेल मार्ग सेः आगरा देश के बड़े रेलवे जंक्शन में शामिल है। यहां से दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भारत की ओर जाने वाली सैकड़ों ट्रेन गुजरती हैं। शताब्दी एक्सप्रेस (दिल्ली-भोपाल), ताज एक्सप्रेस (दिल्ली-ग्वालियर) से आगरा पहुंचना बेहद आसान है।
सड़क मार्ग सेः आगरा पहुंचने के लिए सड़क मार्ग भी अच्छा तरीका है। यहां से भरतपुर 54 किमी. दिल्ली 204 किमी. और ग्वालियर 119 किमी. दूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग इसे सभी जगहों से जोड़ता है।
लखनऊ (Lucknow) अपने नबाबी इतिहास और शाही खान पान के अतिरिक्त पर्यटन स्थल के लिए भी जाना जाता है जहां हर साल लाखों सैलानी भ्रमण के लिए आते है। यह अवध के नवाबों की राजधानी थी। लखनऊ अपने पुराने ऐतिहासिक इमारतों के साथ साथ इंडिया का प्रमुख व्यापारिक और मेट्रोपोलियन सिटी के रूप में उभर कर सामने आया है।
लखनऊ का पुराना नाम लखनपुर (Lakhanpur) हुआ करता था कहते है की इस शहर की नीव रामायण काल से जुडी हुयी है भगवान श्री राम जी के अनुज भाई लक्षमण ने गोमती नदी के किनारे लक्ष्मणपुर नाम से नगर बनाया था इसी बजह से इसका प्राचीन नाम, लखनपुर हुआ करता था फिर बाद में नाम बदलकर लखनऊ रख दिया गया ।
अम्बेडकर पार्क
लखनऊ के गोमती नगर इलाके में बना इस पार्क का निर्माण स्पेशल गुलाबी पत्थरो से किया गया है जो रात के झिलमिल रौशनी में बेहद सुहाना लगता है। हर साल इस बेहतरीन आर्किटेक्चर बाले पार्क में आंबेडकर (Ambedkar) जयंती के दिन बड़े धूम -धाम से बाबा भीम राव आंबेडकर (Baba Bhim Rao Ambedkar) की जयंती मनाई जताई है। इसका निर्माण उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) के द्वारा 2008 में बनबाया गया था।
बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ
लखनऊ के इस ऐतिहासिक धरोहर सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्द है इस बेहतरीन ईमारत का निर्माण 1754 में मजदूरों को रोजगार देने के उद्देश्य से आसफुद्दौला के द्वारा करवाया गया था इसे बनाने में 14 वर्षो का समय लग गया था। इस इमामबाड़ा का हॉल एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा हॉल माना जाता है।
रूमी दरवाजा लखनऊ
बड़ा इमाम के पास ही स्थित बेहतरीन कलाकारी का सुन्दर नमूना नक्काशी दार ऐतिहासिक धरोहर लखनऊ में ये रूमी दरवाजा को आशिफ उद्दौला के द्वारा बनवाया गया था 60 फिट ऊंचे दरवाजे से बड़ा इमामबाड़ा में प्रवेश किया जा सकता है। इस दरवाजे की खास बात यह है की इसका निर्माण कार्य बिना लकड़ी और लोहे से किया गया है इस विशालकाय दरवाजे की शिल्पकला शैली को शानदार तरीके से प्रदर्शित किया गया है।
कैसे पहुंचें लखनऊ
सड़क मार्ग से: लखनऊ के बसों की अच्छी सुविधा उपलब्ध है। यहां से स्थानीय और बाहरी क्षेत्रों के लिए डीलक्स और नॉन डीलक्स बसें काफी चलती है जो सस्ती और सुविधाजनक हैं।
रेल मार्ग से: लखनऊ में दो मुख्य रेलवे स्टेशन हैं पहला शहर के केंद्र में और दूसरा चार बाग रेलवे स्टेशन है। लखनऊ रेलवे स्टेशन से भारत के लगभग सभी शहरों के लिए ट्रेन मिल जाती हैं, शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस भी यहां चलती हैं।
हवाई मार्ग सेः: लखनऊ का एयरपोर्ट, शहर से 14 किमी. दूर अमौसी नामक जगह पर स्थित है। इस एयरपोर्ट से कई देशों और कई शहरों के लिए उड़ाने भरी जाती हैं। दिल्ली, मुम्बई, पटना और रांची के लिए यहां से नियमित फ्लाइट हैं।
भारत की धार्मिक राजधानी (religious capital of india) के रूप में प्रसिद्ध यह शहर दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थ यात्रियों द्वारा यात्रा की जाती है। यह गंगा नदी के तट पर स्थित है। वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। महाभारत कालीन से लेकर बौद्ध कालीन ग्रंथों तक में इस शहर का जिक्र बार-बार आता है। पौराणिक ग्रंथों में इसके महत्व, यहां के महापुरुषों की कहानियों और धार्मिक आकर्षण के कारण दुनियाभर से लोग यहां पर्यटन के लिए आते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हिंदुओं की पौराणिक गाथाओं में वाराणसी का महत्व बार-बार स्वीकार किया गया है।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर
यह मंदिर गोल्डन टेंपल के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह भगवान शिव का मंदिर है, जिन्हें शहर का अधिष्ठाता, मुख्य देवता माना जाता है। श्रद्धालुओं के लिए यहां के घाट और गंगा से कहीं ज्यादा महत्व और आस्था का केंद्र यहां की शिवलिंग है।
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हायर तिब्बतिएन स्टडीज
यह पूरी दुनिया में अपनी तरह का अकेला संस्थान है। यहां तिब्बती भाषा (Tibetan language) में पढ़ाई होती है। यह इंस्टीट्यूट सारनाथ में है। यहां तिब्बती भाषा में लिखे ग्रंथों, बौद्ध ग्रंथों और अन्य दुर्लभ साहित्य का अनूठा संग्रह है।
महाराज बनारस विद्या मंदिर म्यूजियम
महाराजा बलवंत सिंह (Maharaja Balwant Singh) (1740-1770) ने अपने शासनकाल में रामनगर किला बनवाया था। अब इसी किले में बनारस विद्या मंदिर म्यूजियम स्थापित कर दिया गया है। म्यूजियम में प्राचीन काल के कपड़े और साज-सज्जा के सामान, पुरानी पालकी, फर्नीचर और हाथ से लिखी किताबें रखी गई हैं।
वाराणसी कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग सेः वाराणसी का नजदीकी एयरपोर्ट बाबतपुर है। यह आगरा से 22 किमी. और सारनाथ से 30 किमी. दूर है। यहां से इंडियन एअरलाइंस के विमान नियमित उड़ान भरते हैं। वाराणसी से दिल्ली के लिए सीधी फ्लाइट है।
रेल मार्ग सेः वाराणसी देश के बड़े रेलवे जंक्शन में शामिल है। यहां से देश के सभी प्रमुख शहरों के लिए रेल सुविधा है। प्रमुख टेनों में काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस (वाराणसी-दिल्ली), श्रमजीवी एक्सप्रेस(पटना-वाराणसी-दिल्ली), फरक्का एक्सप्रेस (माल्दा टाउन-वाराणसी-भिवानी), सरयू सरयू-यमुना एक्सप्रेस (मुजफ्फरपुर-वाराणसी-दिल्ली) शामिल हैं।
सड़क मार्ग सेः वाराणसी सड़क मार्ग से देशभर से जुड़ा है। यहां से कुछ प्रमुख शहरों की दूरी यह है, आगरा 565 किमी., इलाहाबाद 128 किमी. और भोपाल 791 किमी.।
इलाहाबाद हिंदू धर्म के अनुसार निर्माता के रूप में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह शहर तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित है। पौराणिक गाथाओं में इलाहाबाद को तीर्थराज (Tirthraj) कहा गया है यानी सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ। इलाहाबाद, बनारस से 128 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। यह भारत के सबसे पुराने शहरों और तीर्थस्थलों में से एक है। इलाहबाद का नया नाम प्रयागराज (Prayagraj) है अपने कुंभ और अर्धकुंभ मेलों के लिए दुनिया भर में मशहूर है।
संगम
यहां देश की तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। कुंभ और अर्धकुंभ मेले के दौरान यह शहर महीने भर नहीं सोता है। रातदिन जगमगाते शहर में देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं।
इलाहाबाद का किला
मुगल बादशाह अकबर ने सन 1583 में यहां यमुना के किनारे विशाल किला बनवाया था। किले के भीतर अशोक स्तंभ भी है। यह 232 ईसा पूर्व का है।
ऑल सैंट कैथेडल
यह संभवतः एशिया का सबसे बेहतरीन गिरजाघर है। यह उन सभी लोगों को समर्पित किया गया है जो ईश्वर पर आस्था रखते हैं। यह 13वीं शताब्दी की गॉथिक आर्किटेक्चरल का नमूना है। इसे सर विलियम एमर्सन (Sir William Emerson) ने डिजाइन किया था और इसमें ब्रिटिश आर्किटेक्चर को भी पूरा महत्व दिया गया है।
हनुमान मंदिर
हनुमान मंदिर संगम के नजदीक है। यहां भगवान हनुमान की विशालकाय प्रतिमा है।
जवाहर प्लैनेटेरियम
यह एक ताराघर है। यह आपको दूसरी दुनिया की सैर कराता है। मून मॉडल यहां का प्रमुख आकर्षण है।
इलाहाबाद कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग सेः इलाहाबाद से नजदीकी एयरपोर्ट बनारस और लखनऊ हैं। बनारस 147 किमी. और लखनऊ 210 किमी. दूरी पर है।
रेल मार्ग सेः इलाहाबाद देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है। यहां से कोलकाता, दिल्ली, पटना, गुवाहाटी, चेन्नई, मुंबई, ग्वालियर, मेरठ, लखनऊ, कानपुर और बनारस के लिए सीधी रेल सुविधा है।
सड़क मार्ग सेः इलाहाबाद से राष्ट्रीय राजमार्ग-2 और 27 गुजरते हैं। यहां से आगरा 433 किमी., कानपुर 200 किमी. और अहमदाबाद 1207 किमी. की दूरी पर हैं।
गंगा नदी के तट पर कानपुर स्थित है जो उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा राज्य है। यह पहले देश का मैनचेस्टर कहा जाता था। उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहरों में से एक कानपुर एक ऐसी जगह है, जहां जाकर आपको कुछ अलग ही देखने को मिलेगा। कानपुर शहर एक प्रमुख औद्योगिक और सांस्कृतिक केंद्र था, जिस पर कई साम्राज्यों और राजवंशों का शासन रहा है।
श्री राधा कृष्ण मंदिर
जेके मंदिर, जिसे जुग्गीलाल कम्पलापत मंदिर या श्री राधाकृष्ण मंदिर कहा जाता है, कानपुर में सर्वोदय नगर के गोविंद नगर रोड पर स्थित है। यह प्राचीन और आधुनिक दोनों तरह की वास्तुकला का एक सुंदर संयोजन है। 1953 में सिंघानिया परिवार की देखरेख में निर्मित, जेके मंदिर का मैनेजमेंट बड़े पैमाने पर आज भी जेके ट्रस्ट (JK Trust) द्वारा किया जाता है।
फूल बाग और कानपुर संग्रहालय
फूल बाग, कानपुर में एक शहरी पार्क है, जो कि एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। ये एक सदी से भी अधिक समय से राजनीतिक रैलियों और जनसभाओं का स्थल रहा है। इसे 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश प्रशासन के मनोरंजन स्थल के रूप में डिजाइन और निर्मित किया गया था। आज, यहां के प्रमुख स्थलों में से एक कानपुर संग्रहालय भी है, जिसे शहर का सबसे बड़ा संग्रहालय, फूल बाग में स्थित है।
कांच का मंदिर
जैन ग्लास मंदिर जैन धर्म को समर्पित प्रमुख मंदिरों में से एक है, जो माहेश्वरी मोहल में स्थित है। कांच से बने इस सुंदर मंदिर में शक्तिशाली भगवान महावीर और शेष 23 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं मौजूद हैं। यहां विभिन्न हस्त-निर्मित मूर्तियां, आकर्षक अलंकरण और नाजुक कांच के भित्ति चित्र हैं जो जैन इतिहास और परंपराओं के महत्वपूर्ण विवरणों को उजागर करते हैं।
कानपुर कैसे पहुंचे
हवाई जहाज से: कानपुर हवाई अड्डा शहर से 19 किमी की दूरी पर स्थित है और लखनऊ में चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कानपुर से 77 किमी की दूरी पर स्थित है। कानपुर हवाई अड्डे पर केवल एयर इंडिया के माध्यम से दिल्ली के लिए उड़ानें हैं, जबकि लखनऊ के चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए देश-विदेश के अन्य शहरों से उड़ाने उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग से: कानपुर शहर उत्तर प्रदेश और इसके पड़ोसी राज्यों के विभिन्न शहरों और कस्बों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। Nh 2, Nh 25, Nh 86 और Nh 91 कानपुर से गुजरने वाले मार्ग हैं। कानपुर का इंटर स्टेट बस स्टेशन (Isbt) शहर का मुख्य बस अड्डा है। कानपुर पहुंचने के लिए आप कई निजी बसों और सार्वजानिक बसों का लाभ उठा सकते हैं।
रेल मार्ग से: कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन देश के पांच प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है। यह रेलवे स्टेशन देश के सबसे व्यस्त स्टेशन में से एक है और यह प्रतिदिन दिन 150,000 से अधिक यात्रियों की सेवा करता है। दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, पटना, आगरा, जैसे शहरों से कानपुर के लिए कई एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेन उपलब्ध हैं।
मथुरा भगवान कृष्ण (Lord Krishna) की जन्मभूमि माना जाता है और इसलिए यह हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए सात पवित्र शहरों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे बसा है। यह दिल्ली से दक्षिण पूर्व में 145 किमी. दूर है। आगरा से उत्तर पश्चिम में 58 किमी. दूर है। यह हिंदुओं के अलावा बौद्ध और जैन मतावलंबियों के लिए भी बराबर महत्वपूर्ण है। आज की तारीख में मथुरा धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व का बड़ा केंद्र है।
श्री कृष्ण जन्म भूमि
यह भगवान कृष्ण का जन्म स्थान है
विश्राम घाट
मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने के बाद यहां विश्राम किया था।
गीता मंदिर
यह शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। नक्काशी और पेंटिंग इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है।
द्वारकाधीश मंदिर
यह शहर का सबसे प्रभावशाली मंदिर है। होली, जन्माष्टमी और दीपावली में इसे खूब सजाया जाता है।
जामा मस्जिद
अबो-इन-नबीर-खान ने 1661 में इसका निर्माण कराया था। इसमें नक्काशी की हुईं चार लंबी मीनारें हैं।
गवर्नमेंट म्यूजियम
यह मथुरा का पुरातात्विक महत्व का खजाना है। यहां गुप्त और कुषाण वंश (400 ईसा पूर्व से सन 1200 तक) की दुर्लभ चीजें रखी गई हैं। यह म्यूजियम, डैम्पियर पार्क के पास है।
मथुरा कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग से: मथुरा का नजदीकी एयरपोर्ट आगरा के करीब खेड़िया है। यह मथुरा से 62 किमी दूर है।
रेल मार्ग से: मथुरा उत्तर-पश्चिम रेलवे के मुख्य मार्ग पर है। यह दिल्ली, ग्वालियर, कोलकाता, आगरा, मुंबई, लखनऊ से सीधे जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से: मथुरा राष्ट्रीय राजमार्ग के जरिये देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के लिए राज्य परिवहन की बसें लगातार अंतराल पर चलती हैं। शहर के भीतर आवागमन के लिए निजी बसें, टैम्पो और रिक्शा की सुविधाएं है।
फतेहपुर सीकरी, 16 वीं सदी के शहर, प्रसिद्ध मुगल सम्राट अकबर द्वारा बनाया गया था। फतेहपुर सीकरी एक ऐसा शहर है जो मुख्य रूप से लाल बलुआ पत्थर (red sandstone) से बना है। फतेहपुर सीकरी की स्थापना 16 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा की गई थी। इसके बाद यह 15 सालों तक मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रहा। यूनेस्को की विश्व धरोहर (UNESCO World Heritage) स्थल में शामिल यह जगह अकबर की स्थापत्य कला का अच्छा उदाहरण है। फतेहपुर सीकरी यहां आने वाले पर्यटकों को अपनी खूबसूरती से आश्चर्यचकित कर देता है।
दीवान-ए-आम
दीवान-ए-आम यानी हॉल ऑफ पब्लिक ऑडियंस, इसका मतलब है कि यह वो जगह है जहां पर सार्वजनिक बैठक और सभाओं का आयोजन किया जाता था। यह जगह एक आयताकार मंडप है जिसके सामने एक बड़ा खुला स्थान है। 49 स्तंभों पर खड़े हुए दीवान-ए-आम एक झरोखा तरह का कक्ष है जिसको तख्त-ए-मुरासा के नाम से जानते हैं। इस जगह के सभी स्तंभों और दीवारों पर बहुत ही सुंदरता के साथ सजावट की गई है। इसमें एक संगमरमर से बना बैठक है, जहां मत्री बैठते थे। दो द्वार और तीन गलियारे इस हाल को बांटते हैं।
दीवान-ए-ख़ास
फारसी स्थापत्य शैली में बना हुआ यह भवन निजी दर्शकों का हॉल था। निजी मामलों पर चर्चा करने केवल शाही यानी अकबर द्वारा न्युक्त किये गए सदस्य यहां एकत्रित होते थे। दीवान ऐ ख़ास में बनी फूलों और ज्यामितीय डिजाइन बेस और शाफ्ट इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं।
पंचमहल
पंच महल फतेहपुर सीकरी में एक असाधारण संरचना है जिसमें बौद्ध मंदिर के डिजाइन नज़र आते हैं। यह चार मंजिला इमारत 176 खंभों पर टिकी हुई है जिसकी प्रत्येक मंजिल का कमरा नीचे वाली मंजिल के कमरे से छोटा है। यह महल दिखने में काफी आकर्षक है, जिसका इस्तेमाल शाही महिलाओं के मनोरंजन और विलास के लिए किया जाता था। पंच महल में एक पूल है जिसका नाम अनूप तालाब है, जो कभी संगीत समारोहों के लिए ख़ास जगह हुआ करती थी।
सलीम चिश्ती की दरगाह
सलीम चिश्ती का मकबरा मुग़ल वास्तुकला का एक बहुत ही शानदार नमूना है। बता दें कि यह वो जगह है जहां सूफी संत सलीम चिश्ती के दफ़नाया गया था। बादशाह अकबर ने सलीम चिश्ती के सम्मान के रूप में इस मकबरे का निर्माण करवाया था, जहाँ अकबर के पुत्र जहाँगीर का जन्म हुआ था। इस मकबरे की मुख्य इमारत के चारों ओर संगमरमर की स्क्रीन है और इसके मुख्य कक्ष के दरबाजे को कुरान और शिलालेख के साथ शानदार तरीके से उखेरा गया है। इसके संगमरमर के बने फर्श में कई रंगों के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।
बुलंद दरवाजा
बुलंद दरवाजा का निर्माण अक्रबर ने गुजरात पर जीत के उपलक्ष्य में करवाया था। यह एक ऐसा भव्य द्वार है जो आगरा से फतेहपुर सीकरी की ओर जाता है। बता दें कि यह एशिया का सबसे ऊंचा दरवाजा है जिसकी उंचाई 176 फुट है। बुलंद दरवाजे को बनाने में करीब 12 साल का समय लगा था जो लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और काले रंग के पत्थर सजाया गया है।
फतेहपुर सीकरी कैसे पहुंचे
हवाई जहाज से: फतेहपुर सीकरी पहुंचने के लिए आगरा में खेरिया हवाई अड्डे के लिए फ्लाइट लेना होगी जो फतेहपुर सीकरी करीब 40 किमी की दूरी पर स्थित है। यह हवाई अड्डा दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है जिसकी वजह से आपको कई नियमित उड़ाने मिल जायेंगी। हवाई अड्डे के बाहर से आपको फतेहपुर सीकरी जाने के लिए मामूली शुल्क पर कैब या टैक्सी मिल उपलब्ध हो जाएगी।
सड़क मार्ग से: सड़क मार्ग से फतेहपुर सीकरी आगरा से 37 किमी और दिल्ली से 210 किमी की दूरी पर है, जो राज्य उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) की नियमित बस सेवाओं से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा अपनी यात्रा के लिए कई नियमित डीलक्स और एसी बसें भी ले सकते हैं। सड़क द्वारा फतेहपुर सीकरी की यात्रा करना एक बहुत ही किफायती तरीका है।
रेल मार्ग से: आगरा कैंट फतेहपुर सीकरी का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है जो आगरा में स्थित है। यह स्टेशन शहर से केवल 40 किमी दूर है जो भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। इस स्टेशन पर हर दिन कई सुपरस्टार फ़ास्ट और एक्सप्रेस ट्रेन आती है, आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आपको स्टेशन के बाहर से कई बसें और निजी टैक्सी मिल जायेंगी जो आपको अपनी मंजिल तक ले जाएगी।
अयोध्या भारत का एक प्राचीन शहर है जिसे हिंदू महाकाव्य रामायण (Ramayana) की स्थापना के रूप में जाना जाता है। अयोध्या को भगवान श्रीराम (Lord Shri Ram) के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। अयोध्या उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में सरयू नदी के तट पर स्थित है, जो कोसल के प्राचीन साम्राज्य की राजधानी थी। अयोध्या का नाम हिंदू धर्म के 7 सबसे पवित्र शहरों में शामिल है और माना जाता है कि इसका इतिहास करीब 9000 साल पुराना है।
रामजन्म भूमि
रामजन्म भूमि अयोध्या में सबसे पवित्र जगहों में से एक है। रामजन्म भूमि वह जगह है जहां पर भगवान श्री राम का जन्म हुआ था और एक मंदिर भी बना था।
हनुमान गढ़ी
हनुमान गढ़ी अयोध्या के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। हनुमान गढ़ी में हनुमान को समर्पित एक मंदिर है, जिसका अपना एक अलग धार्मिक महत्व है। यह मंदिर वाली जगह पहले अवध के नवाब की थी, जिसने इसे मंदिर के निर्माण के लिए दान दिया था। यह मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जिसे 10 वीं शताब्दी में बनवाया था। मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों को 76 सीढ़ी से होकर जाना होता है।
त्रेता के ठाकुर
त्रेता के ठाकुर अयोध्या में सरयू नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान राम की मूर्तियों को रखा गया है जो प्राचीन समय में काले रेत के पत्थरों से उकेरी गई थीं। इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह वही जगह है जहां पर श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ किया था। अगर आप अयोध्या की यात्रा करने के लिए जा रहे हैं तो आपको इस पवित्र मंदिर के दर्शन के लिए जरुर जाना चाहिए।
सीता की रसोई मंदिर
सीता की रसोई अयोध्या के राजकोट में राम जनमस्थान के उत्तर-पश्चिमी छोर पर स्थित है जो यहां की एक देखने लायक जगह है। यह मंदिर के कोने में स्थित प्राचीन रसोई का मॉडल है जिसमें नकली बर्तन, रोलिंग प्लेट और रोलिंग पिन है। मंदिर परिसर के दूसरे छोर पर चारों भाई राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न और उनकी पत्नी सीता, उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति की मूर्तियां भी हैं।
अयोध्या कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग से: यहां का निकटतम हवाई अड्डा फैजाबाद हवाई अड्डा है, जो 8 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा विकल्प के रूप में 130 किमी की दूरी प्रमुख हवाई अड्डा लखनऊ है। लखनऊ हवाई अड्डा भारत के अधिकांश प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप लखनऊ हवाई अड्डे से अयोध्या पहुंचने के लिए कैब या टैक्सी किराये पर ले सकते हैं
सड़क मार्ग से: उत्तर प्रदेश में अयोध्या के लिए नियमित रूप से सरकारी और निजी बसें चलती हैं। प्रदेश के अन्य स्थलों और अयोध्या के बीच चलने वाली बसें इसे राज्य के अन्य प्रमुख शहरों से भी जोड़ती हैं।
रेल मार्ग से: अयोध्या पूरे उत्तर भारत में नजदीकी रेलवे स्टेशनों और प्रमुख स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। जिसकी वजह से ट्रेन द्वारा यहां की यात्रा काफी आसानी हो जाती है।
झाँसी उत्तर प्रदेश के दक्षिण में बेतवा नदी के तट पर स्थित है। झाँसी आज उस स्थान के रूप में जाना जाता है, जहाँ झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई (Rani Laxmi Bai of Jhansi) रहती थीं और राज करती थीं, जिनकी वीरता की कहानीयां आज भी झाँसी की गलियों में गूंजती है। झाँसी इंडियन हिस्ट्री (Indian History) के सबसे समृद्ध और गोरवपूर्ण शहरों में से एक है, जो इसे इतिहास के शौकीन और पर्यटकों के घूमने के लिए भारत की सबसे अच्छी जगहें में से एक बनाती है। झाँसी में धर्म, इतिहास, प्राकृतिक सुंदरता और स्थापत्य उत्कृष्टता का एक मिश्रण है।
झाँसी फोर्ट
झाँसी का किला बागिरा की चोटी पर स्थित है, जिसका निर्माण 17 वीं शताब्दी में राजा बीर सिंह देव द्वारा करबाया गया था। झाँसी फोर्ट टूरिस्टों और हिस्ट्री लवर्स के घूमने के लिए झाँसी की अच्छी जगह मानी जाती है। स्वतंत्रता के पहले सन 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) से लड़ी गयी लड़ाई में इस किले एक महत्वपूर्ण हिस्सा नष्ट हो गया था।
लेकिन उसके बाबजूद भी इस किले के अन्दर भगवान और गणेश को समर्पित मंदिर और एक म्यूजियम स्थित है, जो चंदेला वंश के अवशेषों को प्रदर्शित करता है। इनके अलावा शहीदों को श्रद्धांजलि देने वाला एक युद्ध स्मारक और स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई की मार्मिक भूमिका की स्मृति में निर्मित रानी लक्ष्मीबाई पार्क भी है।
रानी महल झाँसी
रानी महल झाँसी का शाही महल है, जिसका निर्माण नेवलकर परिवार के रघुनाथ दिवतीय द्वारा किया गया था। रानी महल महारानी लक्ष्मी बाई का निवास स्थान था, इसी कारण यह स्थान झाँसी के आकर्षण स्थल में से एक है। दुर्भाग्य से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के दौरान रानी पैलेस का भी एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था और शेष हिस्सों को अब एक संग्रहालय में बदल दिया गया है, जो लक्ष्मीबाई के जीवन और कलाकृतियों से समृद्ध है।
राजा गंगाधर राव की छतरी
राजा गंगाधर राव की छतरी का निर्माण महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा अपने पति और झाँसी के राजा गंगाधर राव के निधन के बाद, उनकी याद और सम्मान में करवाया गया था। यह आज भी झाँसी की सांस्कृतिक विरासत रूप में खड़ा है। महारानी लक्ष्मीबाई प्रतिदिन यहाँ आती थी और समय व्यतीत करती थी।
बरुआ सागर
बरुआ सागर प्राकृतिक सुन्दरता और ऐतिहासिक आकर्षणों से परिपूर्ण है। झांसी जिले में स्थित बरुआ सागर, बुंदेलखंड क्षेत्र से संबंधित एक मामूली शहर है। यह जगह एक मनोरम झील के अलावा, किलों और मंदिरों के कई खंडहरों का घर है जो अतीत के अवशेषों को प्रदर्शित करते है। यहां आप किलों और मंदिरों की यात्रा के साथ साथ झील के लुभावने दृश्यों के बीच टाइम स्पेंड कर सकते है और ट्रेकिंग जैसी रोमांचक एक्टिविटीज को भी एन्जॉय कर सकते है।
झाँसी कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग से: झाँसी के लिए कोई सीधी फ्लाइट कनेक्टविटी नहीं है। झाँसी का निकटतम एयरपोर्ट ग्वालियर एयरपोर्ट है, जो झाँसी से लगभग 100 किलोमीटर की डिस्टेंस पर स्थित है। यह एयरपोर्ट भोपाल, आगरा, मुंबई और दिल्ली, जयपुर जैसे प्रमुख शहरों से नियमित उड़ानों से जुड़ा हुआ है। ग्वालियर एयरपोर्ट पहुचने के बाद झाँसी के लिए आप बस या टेक्सी से ट्रेवल कर सकते है।
रेलवे मार्ग से: ट्रेन से ट्रेवल करके झाँसी जाना काफी आसान और सुविधाजनक है, झाँसी में अपना खुद का रेलवे जंक्शन मौजूद है, जो रेग्युलर ट्रनो से भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से: झाँसी जाने के लिए कोई भी राज्य परिवहन की बसे या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं। झाँसी से ग्वालियर की दूरी लगभग 102 किमी, माधोगढ़ से 139 किमी और आगरा से 233 किमी है। आप झाँसी के इन तमाम बस स्टॉप- झांसी का किला टर्मिनल बस स्टॉप, बड़ा बाजार टर्मिनल बस स्टॉप, गंगा मार्केट मिनर्वा क्रॉसिंग बस स्टॉप और खंडेराव गेट बस स्टॉप पर उतर कर झाँसी के आकर्षक स्थल की यात्रा कर सकते है।
कुशीनगर में एक लोकप्रिय बौद्ध तीर्थ स्थल (Buddhist pilgrimage site) है। इस प्राचीन शहर में भगवान बुद्ध अपने अंतिम उपदेश दिये थे। जगह के ऐतिहासिक महत्व को पुरातात्विक सबूत से पता लगाया जा सकता है। कुशीनगर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन शहर है।
कुशीनगर को पौराणिक भगवान राजा राम (Raja Ram) के पुत्र कुशा (Kusha) ने बसाया और इस पर शासन किया था। उसी के नाम पर इसका नाम कुशीनगर पडा। शहर में पुरातत्व निष्कर्ष तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की तारीख है और मौर्य सम्राट अशोक से संबंधित है। कुशीनगर आज भारत में बौद्धों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है। माना जाता है कि यहीं गौतम बुद्ध (Gautam buddha) ने अपने जीवन की आखिरी सांस ली थी, जिस वजह से इसे प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल भी माना जाता है।
महापरिनिर्वाण मंदिर
महापरिनिर्वाण मंदिर खंडहरों में स्थित है जो विभिन्न प्राचीन मठों की स्थापना करता है जिन्हें 5 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान स्थापित किया गया था। यह मंदिर भगवान बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। अनूठी डिज़ाइन वाले महापरिनिर्वाण मंदिर में लेटे हुए बुद्ध की विशालकाय मूर्ति है। यह मूर्ति 1876 की खुदाई में प्राप्त हुई थी।
कुशीनगर संग्रहालय
कुशीनगर संग्रहालय 1992-93 के दौरान जनता के लिए खोला गया था और कुशीनगर में पाए गए विभिन्न पुरातात्विक खुदाई की विशेषता है। कुशीनगर संग्रहालय में मूर्तियों, मुहरों, सिक्कों और बैनरों और विभिन्न पुरातनताओं की एक विस्तृत विविधता जैसे विभिन्न कलाकृतियों का घर है। भगवान बुद्ध की स्टुको मूर्ति एक हड़ताली गंधरा शैली में निर्मित संग्रहालय के प्रमुख आकर्षणों में से एक है।
वाटथई मंदिर
यह विस्तृत प्रांगण वाला मंदिर विशेष तौर पर थाई-बौद्ध स्थापत्य शैली में बनाया गया है। इसका निर्माण 1994 में बौद्धों द्वारा दी गई दानराशि से किया गया। इस मंदिर के प्रांगण में की गई बागबानी बहुत ही मनोरम है। कुशीनगर के दर्शनीय स्थल मे यह मंदिर महत्वपूर्ण स्थान रखता है
सूर्य मंदिर
सूर्य भगवान को समर्पित यह मंदिर गुप्त काल के दौरान बनाया गया था और पुराणों में इसका उल्लेख किया गया है। यह मंदिर सूर्य भगवान की मूर्ति के लिए मशहूर है जिसे एक विशेष काला पत्थर से बना था। मूर्ति 4 वीं और 5 वीं शताब्दी के बीच हुई खुदाई के दौरान पाई गई थी।
कुशीनगर कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से: उत्तर प्रदेश के किसी भी महानगर जैसे लखनऊ, गोरखपुर, अयोध्या, वाराणसी से आपको कुशीनगर के लिए बस मिल जाएगी। इसके अलावा बिहार की राजधानी पटना से भी कुशीनगर के लिए सीधी बस सेवा है। आप गोरखपुर तक ट्रेन अथवा फ्लाइट के जरिए आ सकते हैं। इसके बाद बस अथवा टैक्सी के जरिए कुशीनगर जा सकते हैं।
रेलवे मार्ग से: देश के किसी राज्य अथवा महानगर से गोरखपुर के लिए ट्रेन आसानी से मिल जाएगी। गोरखपुर से रोजाना 100 से ज्यादा एक्सप्रेस ट्रेन गुजरती हैं। गोरखपुर से आप बस अथवा टैक्सी के जरिए कुशीनगर एक घंटे में पहुंच सकते हैं।
हवाई मार्ग से: देश के सभी बड़े महानगरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकत्ता से गोरखपुर के लिए फ्लाइट सर्विस है। गोरखपुर पहुंचने के बाद आपको आगे की यात्रा बस अथवा टैक्सी के जरिए करनी होगी।
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