India News (इंडिया न्यूज), Allahabad news : कोर्ट ने पूछा जब निजी, लोक संपत्ति, व्यक्ति को क्षति नहीं पहुंचाई तो किसके आदेश पर वकीलों पर किया लाठीचार्जकोर्ट ने एसआईटी की अंतरिम जांच रिपोर्ट पर खड़े किए सवाल, कहा खुलासा नहीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हापुड़ मे वकीलों पर लाठी चार्ज के मामले में एस आई टी ने अंतरिम जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में पेश की। रिपोर्ट में तथ्य नहीं, कोर्ट ने कहा सिर से खून बहते वकील थाने गए, मेडिकल नहीं कराया गया,एफ आई आर दर्ज नहीं की, उनके पास हथियार नहीं थे।
संपत्ति या व्यक्ति को नुक्सान नहीं पहुंचा रहे थे। उनपर किसके आदेश से लाठीचार्ज किया गया। इसका रिपोर्ट में जिक्र नहीं। कोर्ट ने रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए हैं।कोर्ट ने पूछा जांच में कितना समय लगेगा और अगली सुनवाई की तिथि 12 अक्तूबर को पूरी जानकारी देने का आदेश दिया। जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति एम सी त्रिपाठी की खंडपीठ ने की।
राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व शासकीय अधिवक्ता आशुतोष कुमार सण्ड, दूसरी तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता वी पी श्रीवास्तव, आर के ओझा,अनिल तिवारी अमरेंद्र नाथ सिंह,व बार के महासचिव नितिन शर्मा ने पक्ष रखा।
कोर्ट ने कहा कि एसआईटी ने जांच में कई पहलुओं को छोड़ दिया है। कोर्ट ने पुलिस टीम से पूछे गये सवालों के फोनकर जवाब देने की अनुमति दी। शासकीय अधिवक्ता सण्ड ने बहस के दौरान ही पुलिस अधिकारी को फोन मिलाकर काफी देर तक जानकारी ली और कोर्ट के सवालों के जवाब दिए।
बताया कि अधिवक्ताओं की 22 शिकायतें मिली । जिसे कोर्ट के आदेशानुसार एक प्राथमिकी दर्ज कर सभी 22 प्राथमिकियों को संबद्ध कर दिया गया है।
हापुड़ बार एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी ने कहा जिस अधिवक्ता प्रियंका त्यागी से घटना की शुरुआत हुई। पुलिस ने उसकी शिकायत की नहीं दर्ज की।प्रियंका ने सीएम पोर्टल पर पुलिस की शिकायत की तो पुलिस ने उनके बुजुर्ग पिता को हिरासत में लेकर लाक अप में डाल दिया।
अधिवक्ताओं ने विरोध किया और प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की अधिवक्ताओं ने 48 घंटे का समय दिया लेकिन पुलिस ने बात नहीं सुनी। इसके बाद अधिवक्ताओं ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया। उसके बाद जब वे अपने घर जाने की तैयारी में थे तभी पुलिस पहुंची ने पहुंचकर लाठीचार्ज कर दिया।
सादे भेस में पुलिस ने मुंह ढंककर सिर पर लाठी चलाई।घायलों का इलाज नहीं कराया न उनकी एफआईआर दर्ज की।तिवारी ने 2004 मे हाईकोर्ट की पुलिस कि घटना की याद दिलाई। और कहा कि जनहित याचिका आज भी लंबित है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या कोई पुलिस ऑफिसर आए हैं। इसका जवाब नहीं में दिया गया। कहा गया कि केस को जांच के लिए मेरठ स्थानांतरित कर दिया गया है।
एसपी क्राइम की अध्यक्षता में तीन पुलिस अधिकारियों की टीम जांच कर रही। 6 सितंबर को वकीलों की एफआईआर दर की गई और सात सितंबर को पहला पर्चा काटा गया ।
कोर्ट ने कहा कि कितने अधिवक्ताओं को चोटें आईं है। कितने का 161 का बयान लिया गया। जवाब दिया गया कि इंस्पेक्टर का स्थानांतरण कर दिया गया । सीओ सहित कई अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। एक अधिवक्ता का बयान दर्ज हुआ है। वकील सहयोग नहीं कर रहे।
इस पर अनिल तिवारी ने इंस्पेक्टर को किसी दूसरे जिले में स्थानांतरित करने की मांग की। कोर्ट ने कहा कि इंस्पेक्टर मेरठ पुलिस लाइन में है, और उसे एसएसपी मेरठ को रिपोर्ट करना है। ऐसे में सही जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
कहा कि निलंबन और बर्खास्तगी का मामला नहीं बल्कि पुलिस की मन: स्थिति को बदलने की जरूरत है। क्योंकि, पुलिस कानून कोलोनियल जमाने के हैं। उनकी मन:स्थिति ऐसी बनी हुई है।इसके पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है। लिहाजा, पुलिस के सबसे बड़े अफसर को यहां तलब किया जाए, और उससे घटना की सारी जानकारी मांगी जाए।
बार कौंसिल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राधाकांत ओझा, वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र नाथ सिंह ने कई तर्क दिए। कहा पुलिस की ड्यूटी है साक्ष्य इकट्ठा करें।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा जांच रिपोर्ट देखने से निष्पक्षता भरोसे लायक नहीं।
तिवारी ने दोषी पुलिस को हापुड़ से हटाने की मांग की कहा कोर्ट रोज ही आना है ऐसे में कैसे काम हो सकता है। वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ कनिष्ठ अधिकारी काम नहीं कर सकता।
अगली सुनवाई 12 अक्टूबर को होगी । कोर्ट ने एसआईटी से जांच रिपोर्ट मांगी है।
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