इंडिया न्यूज, आगरा : Confusion about Holika Dahan इस साल भद्रा के कारण होलिका दहन ( Holika Dahan) के मुहुर्त को लेकर असमंजस की स्थिति है। धर्मशास्त्रीय मतानुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भद्रा रहित प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है। इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तिथि 18 मार्च शुक्रवार को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक ही है। इससे प्रदोष काल में पूर्णिमा तिथि का अभाव है। इसलिए 17 मार्च गुरुवार को चतुर्दशी युक्त पूर्णिमा ( full moon of Chaturdashi) में होलिका दहन होगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया कि 17 मार्च को चतुर्दशी तिथि दोपहर 1 बजकर 37 मिनट तक रहेगी। बाद में पूर्णिमा तिथि शुरू होगी, जो दूसरे दिन 18 मार्च शुक्रवार को दोपहर 12.47 तक रहेगी। इसलिए होलिका दहन 17 मार्च शुक्रवार को भद्रा रहित शुभ मुहूर्त में होगा। उन्होंने बताया कि 17 मार्च को दोपहर 1.30 बजे से भद्रा लग जाएगी, जो रात 1 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। भद्रा काल में होलिका दहन का निषेध है।
आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि होलिका दहन का मुख्य काल प्रदोष काल माना गया है। 17 मार्च को कन्या राशि का चन्द्रमा व पृथ्वी लोक की भद्रा है, जो अशुभ है। शास्त्रों के अनुसार भद्रा यदि निशीथ काल (अर्ध रात्रि ) के बाद रहे तो भद्रा का मुख त्याग कर दहन करें। भद्रा निशीथ काल के बाद तक रात्रि 1.13 बजे तक है। ऐसी स्थिति में पहला भद्रा समाप्त होने पर रात 1 बजकर 13 मिनट के बाद दहन करें। दूसरा भद्रा का मुख छोड़कर पुच्छ काल में रात 9.5 से 10.15 तक ( मात्र 70 मिनट के समय )भी दहन कर सकते हैं। भद्रा काल के बाद रात 1.13 बजे के बाद ही होलिका दहन करें तो ज्यादा उचित रहेगा।
पंचांग में सातवें करण का नाम विष्टि है यही भद्रा के नाम से जानी जाती है। भद्रा शनि देव की बहन व सूर्य की पुत्री है। इनका स्वभाव अत्यंत ही तामस व क्रोधी है। होलाष्टक में विष्णु सहस्रनाम, दुर्गा सप्तशती, रुद्र पाठ व ललिता सहस्र नाम के पाठ का विशेष महत्व बताया गया है।
10 मार्च से 17 मार्च तक होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित होंगे। धर्मिक मान्यता के अनुसार इन आठ दिनों तक शुभ कार्य नहीं किए जाना चाहिए। पुराणों के अनुसार हिरण्यकश्यप ने सात दिनों तक अपने पुत्र प्रह्लाद को यातनाएं दीं। आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन ने प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर होलिका में भस्म करने का प्रयास किया। संसार के प्रजापालक भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। तभी से होलाष्टककी परंपरा चली आ रही है। यह आठ दिन कष्ट के हैं। इसलिए होलाष्टक में विष्णु भगवान की कृपा प्राप्ति व कष्टों से दूर करने के लिए कोई भी अच्छा कार्य नहीं किया जाता है।
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