Diwali 2022
इंडिया न्यूज, लखनऊ (Uttar Pradesh) । अवध की दीपावली का भी अपना अलग अन्दाज़ है। नवाबीने अवध के दौर से ही यहां दीपावली साम्प्रायिक सौहार्द का आइना रही है। लखनऊ में पुराने शहर के बाशिंदे आज भी उस रवायत को क़ायम रखे हैं।
अवध के त्योहार गंगा जमनी तहज़ीब के लिये मशहूर हैं। और दीपावली पर भी इसका असर उसी तरह नज़र आता है जैसे ईद और होली पर। नवाबों के शहर में पुराने दौर से ही दीपावली को हिन्दू और मुस्लिम दोनों मिलकर मनाते आये हैं। हालांकि ज़िन्दगी की तेज़ रफ़्तार ने उस पर कुछ असर ज़रुर डाला है। लेकिन फिर भी पुराने लोगों की तर्ज पर नई पीढ़ी आज भी इस रवायत को क़ायम रखे हैं।
सुनिए अंकित पांडे क्या कहते हैं?
पुराने दौर में शहर की बाज़ारों को सजाया जाता था। क्या हिन्दू और क्या मुसलमान हर छत पर घी के चराग़ जलते थे। जो बुराई पर अच्छाई की जीत का ऐलान करते नज़र आते थे। लेकिन वक़्त और हालात ने उस परंपरा को बदला है। चराग़ों की जगह पहले मोमबत्तियों ने और फिर बिजली की झालरों ने ले ली। मुस्लिम धर्मगुरुओं के परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले शमील शम्सी के ज़ेहन में आज भी वो यादें ताज़ा हैं।
अब शमील शम्सी की बात सुनिए
दौर भले ही नया हो लेकिन पुराने लखनऊ की दीपावली में तहज़ीब का अक्स आज भी नज़र आता है। आज भी यहां दीपावली पर ठीक उसी तरह गंगा जमनी तहज़ीब दिख जाती है जैसी कभी अवध के दौर में होती थी।
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