India News (इंडिया न्यूज़), Gyanvapi Case: वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर में कोर्ट द्वारा आज बड़ा फैसला आया है। जिसमें गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग वाली जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। बता दें, हाईकोर्ट में यह याचिका राखी सिंह व अन्य की तरफ से दाखिल की गई थी। इस पर मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने सुनवाई की।
इलाहाबाद हाईकोर्ट वाराणसी जिला अदालत के एएसआई सर्वेक्षण के आदेश को प्रभावित किए बिना पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर को सील करने और गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग वाली जनहित याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने याची को उपलब्ध वैकल्पिक फोरम का इस्तेमाल करने की छूट दी है। याची का कहना था कि ज्ञानवापी विवादित परिसर में 1993 से हिंदुओं का प्रवेश वैरिकेटिंग कर रोक दिया गया है।
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राखी सिंह व अन्य की जनहित याचिका पर दिया है। जनहित याचिका में कहा गया था कि श्रृंगार गौरी केस में जब तक वाराणसी की अदालत का फैसला नहीं आ जाता तब तक परिसर में गैर हिंदुओं का प्रवेश भी प्रतिबंधित किया जाए और
ज्ञानवापी परिसर में मिले हिंदू प्रतीक चिन्हों को संरक्षित रखने का आदेश दिया जाए।
कोर्ट से यह भी मांग की गई थी कि इस तरह की व्यवस्था की जाए जिसने ज्ञानवापी में एएसआई सर्वेक्षण का काम प्रभावित न हो। कहा गया था कि वाराणसी में श्री आदि विश्वेश्वर मंदिर (वर्तमान ज्ञानवापी मस्जिद) के सदियों पुराने अवशेषों को बचाना है।
दावा किया गया था कि विवादित स्थल (सेटलमेंट प्लॉट नंबर 9130 वार्ड और दशाश्वमेघ वाराणसी) पर एक भव्य मंदिर हुआ करता था, जहां ब्रह्मांंड के भगवान शिव ने स्वयं लाखों ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। वर्षों पहले इस मंदिर को वर्ष 1669 में क्रूर इस्लामी शासक औरंगजेब ने नष्ट कर दिया। कहा गया है कि उक्त मंदिर को नष्ट करने के बाद
मुसलमानों ने अनधिकृत रूप से मंदिर परिसर में अतिक्रमण किया और एक सुपर संरचना बनाई। जिसे वे कथित ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं। कहा गया है कि मूल ज्योतिर्लिंग पुराने मंदिर परिसर के भीतर मुसलमानों द्वारा अवैध रूप से और अनाधिकृत रूप से बनाई गई अधिसंरचना के नीचे स्थित है।
हिंदू भक्तों को पुराने मंदिर परिसर के भीतर देवता के दर्शन की अनुमति नहीं दी जा रही है। कहा गया था कि विवादित संपत्ति प्राचीन काल से देवता में निहित रही है और यदि कोई व्यक्ति या लोग जबरन और कानून के अधिकार के बिना उस संपत्ति के भीतर या किसी विशेष स्थान पर नमाज पढ़ते हैं, तो उसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता है। इसके अलावा याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर कुछ सबूतों, दीवारों पर चिन्हों/प्रतीकों और खंभों का हवाला देते हुए तर्क दिया गया है कि ये पुराने हिंदू मंदिर का हिस्सा हैं और वर्तमान संरचना मस्जिद के चबूतरे और आधार खड़ी है।