इंडिया न्यूज, वाराणसी:
History of Kashi Vishwanath Mandir: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को 700 करोड़ की लागत से 33 महीने में तैयार हुए श्री काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण रेवती नक्षत्र में किया। इसके साथ ही अब बाबा को धाम आम लोगों के लिए भी खोल दिया जाएगा। लोकार्पण समारोह में पीएम मोदी ने कहा कि बाबा अपने भक्तों की सेवा से प्रसन्न हुए हैं, इसीलिए उन्होंने आज के दिन का आशीर्वाद दिया है। ये कॉरिडोर वाराणसी के प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर को सीधा गंगा घाट से जोड़ता है। इस प्रोजेक्ट के जरिए 241 साल बाद ये आध्यात्मिक केंद्र एक नए अवतार में नजर आ रहा है।
पिछले करीब 1 हजार साल में काशी विश्वनाथ मंदिर का 4 बार का नामो-निशान मिटाने की कोशिश की गई, जिसमें आक्रमणकारी 3 बार सफल भी हो गए थे, लेकिन हर बार इसे फिर से बनाया और संवारा गया। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने इस मंदिर को आखिरी बार तोड़ने के आदेश जारी किए थे। औरंबजेब के मंदिर तोड़ने के बाद करीब 111 साल तक वाराणसी में कोई काशी विश्वनाथ मंदिर नहीं था। 1780 में इंदौर की मराठा शासक अहिल्या बाई होलकर ने मौजूद मंदिर को बनवाया।
काशी विश्वनाथ मंदिर को पहली बार 1194 ईसवी में कुतुब उद्दीन ऐबक ने ध्वस्त किया। वो मोहम्मद गोरी का कमांडर था। इसके करीब 100 साल बाद एक गुजराती व्यापारी ने मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया। यह चित्र कुतुब उद्दीन ऐबक का है।
काशी विश्वनाथ मंदिर पर दूसरा हमला 1447 ईसवी में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने किया था। इस हमले में मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। 1585 ईसवी में अकबर के 9 रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने इस मंदिर का पुनर्निमाण कराया था। ये पेटिंग राजा टोडरमल की है।
पांचवे मुगल शासक शाहजहां ने 1642 ईसवी में काशी विश्वनाथ मंदिर को जमीदोज करने का आदेश पारित किया था, जिस पर हिंदुओं के भारी विरोध के बाद प्रमुख मंदिर को तो नहीं तोड़ा जा सका, लेकिन शाहजहां के सैनिकों ने काशी के 63 छोटे-बड़े मंदिरों को तोड़ दिया। तस्वीर 19वीं सदी में काशी विश्वनाथ मंदिर की है।
शाहजहां के बाद छठे मुगल शासक औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने के आदेश जारी किये थे। औरंगजेब का यह आदेश कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी रखा हुआ है। हिंदुओं के भारी विरोध के बावजूद सितंबर 1669 में मंदिर तोड़ दिया गया और ज्ञानवापी मस्जिद का बनवाया गया। इसके करीब 111 साल बाद इंदौर की मराठा शासक अहिल्या बाई होलकर ने 1780 में मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिरा का निर्माण करवाया था। यह तस्वीर 19वीं सदी में काशी विश्वनाथ मंदिर की है।
काशी विद्वत परिषद के सचिव राम नारायण द्विवेदी ने बताया है कि ‘इस इतिहास के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे कि राजा रणजीत सिंह और औसनगंज के राजा त्रिविक्रम नारायण सिंह जैसे कई राजाओं ने मंदिर के लिए दान दिया था। रणजीत सिंह ने सोना और राजा त्रिविक्रम नारायण सिंह ने मंदिर के गर्भगृह के लिए चांदी के दरवाजे दान में दिए थे।’
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का क्षेत्रफल पहले 3,000 वर्ग फीट था। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के तहत लगभग 400 करोड़ रुपए की लागत से मंदिर के आसपास की 300 से ज्यादा इमारतों को खरीदा गया। 5 लाख वर्ग फीट से ज्यादा जमीन में लगभग 400 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से निर्माण किया गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को मंदिर का लोकार्पण कर दिया है लेकिन निर्माण कार्य अभी जारी है। इसमें प्रमुख रूप से गंगा व्यू गैलरी, मणिकर्णिका, जलासेन और ललिता घाट से धाम आने के लिए प्रवेश द्वार और रास्ता बनाने का काम बाकी है। धाम के लिए खरीदे गए भवनों को नष्ट करने के दौरान 40 से अधिक मंदिर मिले। उन्हें विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट के तहत नए सिरे से संरक्षित किया गया है।