Madarsa Survey
इंडिया न्यूज, सहारनपुर (Uttar Pradesh) । उत्तर प्रदेश में मदरसों का सर्वे चल रहा है। 12 पॉइंट्स पर सूचना कलेक्ट की जा रही है। 15 नवंबर तक सभी जिलों की रिपोर्ट शासन को भेज दी जाएगी। अभी तक की जांच में 7500 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त मिले हैं।
सबसे ज्यादा 585 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे मुरादाबाद में मिले हैं। सहारनपुर में 360 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं। इसमें दारूल उलूम देवबंद मदरसा भी शामिल है। दारुल उलूम मदरसे से देशभर के 4,500 मदरसे संबद्ध हैं। इनमें से 2,100 मदरसे तो UP में ही हैं। जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी भरत लाल गोंड ने कहा कि दारुल उलूम बिना मान्यता के संचालित हो रहा है। सबसे अहम यह है कि इन सभी गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों ने अपना सोर्स ऑफ इनकम ‘जकात’ बताया है।
दारुल उलूम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने कहा कि दारुल उलूम सोसाइटी एक्ट-1866 के तहत पंजीकृत है। UP या केंद्र सरकार से अनुदान कभी नहीं लिया गया। सारा खर्च चंदे पर चलता है।
दारुल उलूम 156 साल पुराना है। अंग्रेजों की हुकूमत में अंग्रेजी पर जोर दिया जा रहा था। हिंदू-मुस्लिम सभी उर्दू के जानकार थे। 30 सितंबर 1866 को भाषा को जिंदा रखने और अंग्रेजी और अंग्रेजों की कदम उखाड़ फेंकने को दारुल उलूम की स्थापना की गई। मौलाना कासिम नानौतवी, हाजी आबिद हुसैन, फजलुर्रहमान, उस्मान, मेहताब अली, निहाल अहमद और जुल्फिकार अली ने दारुल उलूम की नींव रखी।
इसमें पहले उस्ताद मुल्ला महमूद और छात्र मौलाना महमूदुल हसन थे। जिन्होंने रेशमी रुमाल आंदोलन चलाया। अभी यहां से निकले दौर-ए-हदीस यानी मौलवी और उसके बाद मुफ्ती बनकर देश-विदेशों की मस्जिद और मदरसों में बच्चों को दीनी तालिम दे रहे हैं। अभी यहां करीब 200 उस्ताद हैं।
इस्लामी तालीम के बाद फतवों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध दारुल उलूम से 17 साल में ऑनलाइन करीब 1 लाख से ज्यादा फतवे जारी किए गए हैं। दारुल उलूम में साल 2005 में फतवा ऑनलाइन विभाग स्थापित किया था। इसके बाद देश-विदेश में बैठे लाखों लोगों ने दारुल उलूम के मुफ्तियों से ऑनलाइन सवाल करना शुरू कर दिया था। डाक से दारुल उलूम के इफ्ता विभाग में लेटर आते थे। 35 हजार फतवे उर्दू और करीब 9 हजार फतवे अंग्रेजी भाषा में वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं।
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