इंडिया न्यूज, वाराणसी:
श्रद्धालुओं ने मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी कुंड में डुबकी लगाई। मान्यता है कि भगवान शंकर ने काशी बसाने के बाद महादेव ने देवी पार्वती के स्नान के लिए इस कुंड को अपने सुदर्शन चक्र से स्थापित किया था। स्नान के दौरान मां पार्वती का कर्ण कुंडल कुंड में गिरने से नाम मणिकर्णिका पड़ा। मणिकर्णी माई की अष्टधातु की प्रतिमा प्राचीन समय में इसी कुंड से निकली थी।
बाबा विश्वनाथ व उत्तरवाहिनी गंगा के लिए ख्यात काशी नगरी में इससे इतर भी कई पौराणिक स्थल हैं, जो बड़े स्थलों के आगे छिपे हुए से हैं। इनमें एक है मणिकर्णिका घाट पर स्थित मणिकर्णिका चक्र पुष्करणीय कुंड। जहां स्नान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
काशी खंड के अनुसार गंगा अवतरण से पहले इसका अस्तित्व है। भगवान विष्णु ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यहां हजारों वर्ष तपस्या की थी। भोलेनाथ और देवी पार्वती के स्नान के लिए उन्होंने कुंड को अपने सुदर्शन चक्र से स्थापित किया। स्नान के दौरान मां पार्वती का कर्ण कुंडल कुंड में गिरने से नाम मणिकर्णिका पड़ा। अक्षय तृतीय पर स्नान का अधिक महत्व है।
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