Moradabad
इंडिया न्यूज, मुरादाबाद (Uttar Pradesh): उत्तर प्रदेश मुरादाबाद की बिलारी कोतवाली के तेवरखास गांव निवासी जाहिद अली को 18 वर्ष की उम्र में मां की डांट इतनी चुभी कि घर छोड़कर चले गए। परिजनों के लंबे प्रयास पर 52 वर्ष बाद वृद्धावस्था में घर लौटे हैं। जाहिद के परिजनों में जहां बेतहाशा खुशी है वहीं मोहल्ले में ईद जैसा माहौल है।
तेवरखास गांव निवासी छिद्दन खां के तीन बेटों में सबसे बड़े बेटे जाहिद अली निकट के कुंदरकी नगर के एक स्कूल में हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। वार्षिक परीक्षा में लगातार दो बार फेल हो जाने पर मां हसरत जहां ने हिदायत देने की गरज से कुछ डांट दिया, लेकिन जाहिद के दिल में मां की डांट इतनी चुभी कि तय कर लिया कि अब कभी वापस घर नहीं लौटेंगे। वर्ष 1970 में जाहिद अली ने अपनी मां से कुंदरकी तक जाने के लिए पांच रुपये लिए और घर से निकलकर फिर कभी वापस न लौटने का संकल्प कर लिया।
इस दौरान दिल्ली निवासी समाजसेवी यूट्यूबर मुशाहिद खान की नजर सप्ताह भर पहले पुरानी दिल्ली में रेलवे स्टेशन के निकट रिक्शा चलाते जाहिद अली पर पड़ी। मुशाहिद अली ने रोककर जाहिद अली से पूरी व्यथा सुनी इस दौरान जब यह पता चला कि वह 52 वर्ष पहले अपने घर से गुस्से में आ गए थे तबसे नहीं लौटे हैं। यह जानकर मुशाहिद अली ने उनकी बातचीत का ब्यौरा विभिन्न ग्रुपों पर डाल दिया। परिजन और रिश्तेदार तलाश करते करते गुरुवार दोपहर पुरानी दिल्ली के रेलवे स्टेशन इलाके में नेशनल क्लब के पास पहुंचे और जाहिद अली को समझा बुझाकर विश्वास में लेकर गुरुवार देर रात तेवरखास गांव पहुंचे। शुक्रवार सुबह 52 वर्ष बाद घर लौटे जाहिद अली को देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ लग गई। जाहिद के कई ग्रामों से रिश्तेदार भी यहां पहुंच गए। मोहल्ले में ईद जैसा माहौल बना हुआ था। जाहिद अली के छोटे भाई राहत अली के घर विशेष पकवान पर फातिहा लगाकर खुशी मनाई गई।
गुजरात, पश्चिम बंगाल और नेपाल बॉर्डर के बाद दिल्ली को बनाया था ठिकाना
तेवरखास गांव निवासी जाहिद अली खां का 52 साल का सफर उन्हें अनेक स्थानों पर ले गया। शुरू में तो वह नेपाल बॉर्डर पर रहे। 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान वह बनवसा में आ गए। उसके बाद कभी गुजरात तो कभी पश्चिम बंगाल में जाकर समय गुजारा। 1990 के आसपास वह दिल्ली के पुराने रेलवे स्टेशन इलाके में चले गए। यहां रिक्शा चलाकर अपना जीवन गुजारने लगे। खर्च बचाने के लिए किराए का मकान न लेकर रात को अपने रिक्शे पर ही दो पटले रखकर सो जाते थे। जाहिद के अनुसार साल में एक बार जब भी ईदुल फितर का त्यौहार आता था तब उन्हें घर की याद आती थी लेकिन फिर वही संकल्प याद आ जाता था कि कभी घर वापस नहीं लौटना है।
पुराने बातों को नहीं करना चाहते जाहिद अली
तेवरखास गांव में अपने पैतृक मकान पर जाहिद अली को परिजन, ग्रामीण और रिश्तेदार घेरे हुए बैठे थे तथा पुराने घटनाक्रम और 52 साल तक घर से बाहर रहने वाले जीवन के हालात पर जानकारी चाहते थे लेकिन इन सवालों पर बार बार भड़ककर जाहिद अली यही कहते दिखे कि वह पुराने घटनाक्रम पर बात नहीं करना चाहते। जाहिद के अनुसार उन्होंने यह सोच लिया था कि अब उनके नसीब में तेवरखास गांव की मिट्टी नहीं है लेकिन मुकद्दर में यही लिखा था और वक्त को यही मंजूर था कि वह उम्र के आखिरी पड़ाव में अपने घर लौट आए हैं।
औलाद घर लौटने की जिद न करे इसलिए नहीं की शादी
जाहिद अली का कहना है कि 52 वर्ष घर से बाहर रहने के दौरान उनकी पूरी जवानी बीत गई। कई बार शादी होने के मौके भी आए। उन्होंने इसलिए शादी नहीं की कि शादी करने के बाद पत्नी और औलाद यह पूछेगी कि तुम्हारा असली ठिकाना कहां है। औलाद यह भी जिद कर सकती है कि अपने घर लौट चलो इसीलिए मन में यह तय कर लिया था कि शादी नहीं करनी है
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