Mulayam Singh Yadav
इंडिया न्यूज, सैफई (Uttar Pradesh) । (ऐश्वर्या शुक्ला)
मुलायम सिंह यादव यूपी के बड़े नेता में गिने जाते रहे हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि राजनीति में एंट्री करने से पहले मुलायम कुश्ती लड़ते थे। उनके परिवार का राजनीति से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा है। मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफर एक अखाड़े से शुरू हुआ और एक पार्टी के संरक्षक के तौर पर वह अपनी अंतिम सांस तक अडिग रहे। आइए आपको बताते हैं, नेताजी मुलायम सिंह से जुड़े 5 दिलचस्प किस्से….
मुलायम जिस तरह से कुश्ती में विपक्षी को चित कर देते थे, वैसे ही वह इंडियन पॉलिटिक्स में 55 सालों तक अपने दांव-पेंच से विरोधियों को चित करने के लिए वो मशहूर रहे। 1965 में मुलायम सिंह यादव ने इटावा में एक कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लिया] जिसने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
इस कुश्ती प्रतियोगिता में चीफ गेस्ट के तौर पर जसवंतनगर विधायक नत्थू सिंह यादव मौजूद थे। जिन्हें मुलायम का राजनीतिक गुरु कहा जाता है, यहां मुलायम सिंह यादव ने कुश्ती में अपने से दोगुने पहलवान को पटखनी दे दी और इससे वो बेहद प्रभावित हुए।
नत्थू सिंह यादव ने मुलायम सिंह को चुनाव लड़वाने के लिए अपनी जसवंतनगर की सीट तक छोड़ दी थी। और 1967 में मुलायम ने सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर सबसे कम उम्र में का विधायक बनकर दमदार तरीक से अपने सियासी करियर का आगाज किया। महज 28 की उम्र में वे विधायक बन विधानसभा पहुंचे।
पहलवानी और मास्टरी छोड़ने के बाद मुलायम ने पूरी तरह से राजनीति में आने का निर्णय लिया। यहां मुलायम सिंह यादव ने राम मनोहर लोहिया के विश्वास पर खरा उतर कर दिखाया और दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के खास को अपने पहले ही चुनावी बिगुल में करारी शिकस्त दी। इसके कुछ समय बाद उन्होंने देश में किसानों की आवाज बन चुके पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के साथ मिलकर उनके पद कदमों पर चलना शुरू कर दिया। कम ही लोग जानते हैं कि नन्हें नेपोलियन का खिताब चौधरी चरण सिंह ने ही मुलायम को दिया था।
जी हां एक वो वक्त भी आया जब मुलायम को खुद अपने कार्यकर्ताओं से कहना पड़ा की बोलो नेताजी मर गए हैं। ये बात 4 मार्च 1984 की है। मुलायम सिंह यादव की इटावा और मैनपुरी में रैली थी। उसके बाद वो एक दोस्त से मिलने निकले, उनका काफिला बामुश्किल 1 किलोमीटर चला होगा कि गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई।
गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए। करीब आधे घंटे तक फायरिंग चलती रही। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था, इसलिए उसे पता था कि वो गाड़ी में किधर बैठे हैं और उसी हिस्से पर उन दोनों ने 9 गोलियां चलाई।
लगातार फायरिंग से गाड़ी डिस्बैलेंस होकर सूखे नाले में गिर गई। नेताजी तुरंत समझ गए कि उनकी हत्या की साजिश की गई है। उन्होंने तुरंत सबकी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई औप अपने समर्थकों से कहा कि वो जोर-जोर से चिल्लाएं “नेताजी मर गए। उन्हें गोली लग गई। नेताजी नहीं रहे।” जब नेताजी के सभी समर्थकों ने ये चिल्लाना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए। और गोलियां चलनी बंद हो गयी।
तारीख थी 26 जून और साल 1960। मैनपुरी के करहल जैन इंटर कॉलेज में कवि सम्मेलन चल रहा था। उस समय के मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही मंच पर पहुंचते हैं और कविता ‘दिल्ली की गद्दी सावधान’ पढ़ना शुरू करते हैं। कविता सरकार के खिलाफ थी। इसे देखकर वहां तैनात दरोगा ने मंच पर जाकर माइक छीन ली और कविता पढ़ने से मना किया। मंच के पास ही खड़े मुलायम सिंह यादव की उम्र उस समय यही कोई 20-21 की रही होगी। उन्हें दरोगा के ऊपर इतना गुस्सा आया कि चढ़ गए मंच पर। दरोगा को उठाकर पटकने ही वाले थे कि स्कूल में तैनात शिक्षकों ने मुलायम को समझाया, तब जाकर कहीं मामला शांत हुआ।
एक पुराना किस्सा है। जब मुलायम को उन्हीं के गढ़ में चंबल के खूंखार दस्यु सरगना ने चुनौती दी थी। तब से लेकर सपा का सबसे मजबूत किला मानी जाने वाली सीट जसवंतनगर विधानसभा सीट से मुलायम सिंह को हराने के लिए चंबल के खूंखार डाकू तहसीलदार सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने उतारा था। हालांकि चुनावी हिंसा के कारण यह चुनाव रद्द हो गया था, लेकिन 1991 का यह रोचक वाक्या कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
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