Naga Sadhu: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से साधु संत आते हैं। ऐसे में नागा साधु भी आते है। दरअसल, नागा साधु ज्यादा किसी से बात नहीं करते और ये बहुत रहस्यमय जिंदगी जीते है। वहीं प्रयागराज में पुरुष नागा साधुओं के साथ महिला नागा साधु भी बड़ी संख्या में आती रहती है। जिस प्रकार पुरुष नागा साधुओं के बारे में कोई जानकारी किसी के पास नहीं है वैसे ही महिला नागा साधुओं के बारे में भी कोई कुछ नहीं जनता है। कैसे बनती हैं ये महिला नागा साधु?
आपको बता दे महिला नागा साधु बनना आसान नहीं होती है इसके लिए एक कठिन परीक्षा से गुजरना होता है। अपने शरीर और मन को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित करना होता है। महिला नागा साधु बनने से पहले 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है।
अगर कोई महिला ऐसा करे तो ही उनके गुरु उनको नागा साधु बनने की आदेश देते है। इनके गुरु पहले इनकी पिछली जिंदगी के बारे में पता करते है। जिसमे यह देखा जाता है कि महिला भगवान को कितनी मानती थी। इसके बाद महिला नागा साधु को अपना पिंडदान करने के साथ साथ पिछली जिंदगी को भूलना पड़ता है।
तत्पश्चात महिला का मुंडन कर साधारण महिला से नागा साधु बनने की प्रक्रिया का शुरुआत किया जाता है। नागा साधुओं बनने के लिए वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों ही संप्रदायों के अखाड़े काम करते है। महिला नागा साधु बिना सिले एक ही कपड़ा पहनती हैं।
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महिला नागा साधुओं को नागिन, अवधूतानी और साध्वियां माता कहकर पुकारा जाता है। महिला नागा साधु पूरी तरह भगवन शिव के प्रति समर्पित रहती हैं। महिला नागा साधु सुबह से शाम तक भगवान में ही लीन रहती हैं। नागा साधुओं के कुल 13 अखाड़े है।
जिनमे से जूना अखाड़ा साधुओं का सबसे बड़ा अखाड़ा है। महिलाओं के माई बाड़ा अखाड़े को भी जूना अखाड़े में शामिल कर लिया गया है। इन महिला साधुओ को नाग सहित कई अलग-अलग पदवियों से सम्मानित किया गया है। नागा साधुओ का माघ मेले 21 जनवरी को मौनी अमावस्या, 26 जनवरी को बसंत पंचमी, पांच फरवरी को माघी पूर्णिमा और 18 फरवरी को महाशिवरात्रि के साथ ही समाप्त होता है।