इंडिया न्यूज, वाराणसी:
प्रख्यात संतूर वादक भले ही जम्मू से थे पर उनका गहरा नाता बनारस से था। उनके जाने की खबर ने बनारसियों को दुखी कर दिया। उनके पिता पं. उमादत्त शर्मा ने बड़े रामदास जी के शिष्य थे। उन्होंने ही पं. शिवकुमार को वादन व गायन की प्राथमिक शिक्षा दी। गुरु-शिष्य परंपरा को सिर माथे लगाते पं. शिवकुमार मंच से भी कहते न अघाते थे कि मैं बनारस घराने से बिलांग करता हूं।
पं. शिवकुमार कहते थे कि इस नगरी से बेहद ही लगाव है। रही संगीत की बात तो राग की समझ का होना और न होना इसमें कहीं से आड़े नहीं आता है। सभी समान रूप से इसकी अनुभूति कर सकते हैं। संगीत केवल आनंद नहीं अध्यात्म है, इसे महसूस किया जा सकता है। बाबा की नगरी यह खूब जानती है।
उन्होंने गंगा महोत्सव के साथ ही कई बार संकट मोचन संगीत समारोह में भी प्रस्तुतियां दीं। जब भी यहां से बुलावा गया, बिना किसी औपचारिकता का इंतजार किए इस तरह चले आए जैसे अपने घर आ रहे हों। उनका इस तरह दुनिया से चला जाना बनारस को अखर गया।
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