इंडिया न्यूज, लखनऊ: UP don Ramesh Kalia encounter : यूपी में गैंगस्टरों का दबदबा कोई नया नहीं है। दशक दर दशक किसी न किसी अपराधी ने अपना दबदबा कायम किया। हालात यह थे कि उत्तर प्रदेश में श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद कई वर्षों तक शांति रही बनी रही।
पर यह सिलसिला कुछ सालों के बाद थम गया। कई दबंगों ने अपराध की दुनिया में अपना पैर पसारना शुरू कर दिया। ज्यादा समय नहीं बीता था कि राज्य पुलिस के सामने एक अपराधी चुनौती पेश करने लगा। उस गैंगस्टर का नाम था रमेश कालिया। गैंगस्टर का नाम था रमेश कालिया, वह अपराध की दुनिया में एक नया नाम था। पर बहुत ही कम समय में ही उनसे अपने नाम के आगे डॉन लगाकर पुलिस प्रशासन को ही चुनौती देना शुरू कर दिया था और खौफ का पर्याय बन गया।
साल 2003 में यूपी के पूर्व में मुख्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह के अलावा लखनऊ में अजित सिंह और अखिलेश प्रताप सिंह की तूती बोल रही थी। यही वह दौर था जब छोटी-मोटी वारदातों को अंजाम देने वाले रमेश कालिया ने साल 2002 और 2003 में अचानक अपना क्राइम गियर बदला लिया। इसके बाद तो रमेश कालिया का नाम सुनते ही ठेकेदार और बिल्डर कांप उठते थे। इधर कालिया अब छोटे-मोटे धंधे छोड़कर लफड़ों वाली जमीनों पर कब्जा करता और रास्ते में जो भी आता, उसे ढेर कर देता, मिशन था पूर्ण वर्चस्व कायम करना।
4 सितंबर 2004 को समाजवादी पार्टी के एमएलसी और बाहुबली अजीत सिंह की हत्या का आरोप भी रमेश कालिया पर लगा था। हालांकि इस मामले में पुलिस के पास ठोस सबूत नहीं थे। डॉन को पकड़ने के लिए पुलिस प्लान तैयार कर रही थी। इसी तर्ज पर शासन ने मुजफ्फरनगर के तेज तर्रार एसएसपी नवनीत सिकेरा को दिसंबर 2004 में लखनऊ का एसएसपी बना दिया।
तत्कालीन एसएसपी ने बताया था कि रमेश इतना शातिर था कि खुले में उसने घर बनाया था। जब भी कोई जाता वह किधर भी भाग जाता था। उसको पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती बन गया।
आखिरकार पुलिस टीम ने दूध वाला बन कर उसकी रेकी की। कुछ पुलिस कर्मी शौच के बहाने उसके घर की रेकी करते थे।
रेकी पूरी हुई। इसके बाद पुलिस ने प्लान बनाया कि पुलिस टीम को बरात बन कर चलना है। एक महिला कांस्टेबल को दुल्हन बनाया। इंस्पेक्टर ने दूल्हे का लुक लिया और गाड़ी पर बाकायदा स्टिकर चिपकाया गया जिसमें लिखा था राहुल वेड्स पूनम।
डान को पकड़ने का प्लान तैयार हो रहा था इस बीच पुलिस को एक और सबूत मिल गया था। बिल्डर इम्तियाज पुलिस पुलिस के पास आया और उसने बताया था कि रमेश कालिया ने उससे प्रोटेक्शन मनी मांगी है।
एसएसपी सिकेरा ने इम्तियाज के जरिए रमेश कालिया तक पहुंचने की योजना बनाई। 10 फरवरी 2005 को एसएसपी के कहने पर इम्तियाज ने कालिया को फोन पर कहा कि वह कुछ पैसे अभी देने को तैयार है। 12 फरवरी, 2005 को पुलिसकर्मी बारातियों की तरह सज-धजकर तैयार हुए। तीन गाड़ियां नीलमत्था के लिए रवाना हुई। इम्तियाज अपनी कार में पुलिसवालों से थोड़ा पहले निकलता है और इम्तियाज के पीछे पुलिस की बारात निकल पड़ती है। नवनीत सिकेरा ने बताया कि तब हमारे पास छोटे फोन थे जो हमनें इम्तियाज की जेब में डाला था।
इम्तियाज कमरे में दाखिल होने के बाद कालिया डॉन से कुछ बातचीत करता है और रकम देते हुए कहता है कि भाई, गुस्ताखी माफ करना, ज्यादा इंतजाम नहीं हो सका। यह सुन कालिया उखड़ जाता है। वो नोटों की गड्डी इम्तियाज के मुंह पर दे मारता है। वो इम्तियाज को गालियां देना शुरू करता है। उधर गोली चलने की आवाज आती ही तभी बुके से अपनी बंदूकें निकाल लेते हैं। फायरिंग शुरू हो जाती है। पुलिस ने 20 मिनट में सबका काम तमाम कर दिया। इस पूरे एनकाउंटर में दो पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे।
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