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इंडिया न्यूज, लखनऊ (Uttar Pradesh)। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई का एक बेहद अटूट रिश्ता है। अटल बिहारी वाजपेई ने राजनीति की शुरूआत लखनऊ से ही की थी। राजनीति के शुरूआती दिनों में लखनऊ ने उन्हें स्वीकार नहीं किया था। लेकिन एक बार उन्होंने नवाबों के शहर में जो छाप छोड़ी वह अटल हो गई।
राजनीति के इतिहास में नए कीर्तिमान किए स्थापित
लखनऊ से सांसद बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेई स्वतंत्र भारत के ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने राजनीति के इतिहास में नए कीर्तिमान स्थापित किए। लेकिन जिस लखनऊ से सांसद बनने के बाद अटल सत्ता पर काबिज़ हुए थे, उसी लखनऊ ने उन्हें कई बार ठुकराया भी था।
कई बार हाथ लगी असफलता
अटल बिहारी वाजपेई ने 1952 में पहली बार लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़ा था। इस लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस के प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1962 में भी उन्होंने हाथ आज़माया लेकिन फिर एक बार उनके हाथ असफलता ही लगी। 1967 में एक बार फिर उन्होंने लखनऊ में अपना किस्मत आज़माई लेकिन फिर एक बार वह असफल ही हुए। लेकिन इसी साल हुए उपचुनाव में पासा पलटा और अटल लखनऊ से जीतकर संसद पहुंचे।
लखनऊ से अटल का अटूट रिश्ता
वहीं 1991 में अटल बिहारी वाजपेई ने लखनऊ और विदिशा से चुनाव लड़ा। दोनों ही सीटों पर उन्होंने जीत हासिल की। लेकिन अटल ने विदिशा सीट छोड़कर लखनऊ को चुना। इसके बाद अवध से उनका एक अटूट रिश्ता जुड़ गया। फिर 1996 में वह लखनऊ और गांधीनगर से मैदान में उतरे। दोनों ही सीटों को उन्होंने अपने नाम किया। लेकिन लखनऊ सीट को बरकबरार रखा। इसके अलावा 1998,1999 और 2004 में भी वह नवाबों के शहर से चुनाव जीते।
लखनऊ से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के प्रेम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह यहां से कई चुनाव हारे लेकिन बार-बार वापस लौटे। उन्होंने कहा था कि लखनऊ वालों ने अगर सोच लिया है कि मुझसे पीछा छूट जाएगा तो यह नहीं होने वाला है।
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