Mathura
इंडिया न्यूज, मथुरा (Uttar Pradesh)। मथुरा का द्वारिकाधीश मंदिर पूरे भारत में विख्यात है। द्वारिकाधीश मंदिर की बहुमूल्य जमीन को हड़पने का मामला सामने आया है। मंदिर की ज़मीन का सौदा करने के मामले में गोस्वामी ब्रजेश कुमार, महाराज सेठ विजय कुमार जैन समेत छह लोगों के खिलाफ वृंदावन थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है। यह एफआईआर मुंबई के रहने वाले ज्ञानेन्द्र भगवान दास सेठ ने दर्ज कराई गई है।
मुंबई निवासी की रिपोर्ट में क्या है दर्ज
वृंदावन थाने में दर्ज रिपोर्ट में मुंबई निवासी ज्ञानेन्द्र भगवान दास सेठ ने कहा है कि उनके पूर्वज ठा. द्वारिकाधीश मंदिर मथुरा और तमाम जमींदारी के मालिक थे। उन्होंने 16 मई 1873 को द्वारिकाधीश मंदिर के गोस्वामी गिरधारी लाल महाराज कांकरौली के हक में एक वसीहत लिखी। जिसके मुताबिक गोस्वामी गिरधारी लाल के वारिस मंदिर और मंदिर से जुड़ी गावों की जमीन किसी को ट्रान्सफर नहीं करेंगे। साथ ही हीरे जवाहरात आदि को भी नहीं छुएंगे। इसकी पूरी धनराशि मंदिर के विकास कार्यों में लगाई जाएगी। रिपोर्ट में दर्ज बयान के मुताबिक जो भी वारिस वैष्णव धर्म से विमुख होगा, उसका इस सम्पत्ति और द्वारिकाधीश जी महाराज से जुड़ी सभी संपत्तियों पर कोई मालिकाना हक नहीं होगा।
द्वारावती नामक कॉलोनी के निर्माण का लगा आरोप
रिपोर्ट में कहा है कि उक्त जमीन को हड़पने की नियत से गोस्वामी ब्रजेश कुमार ने विजय कुमार जैन और सुधेन्दु प्रकाश गौतम आदि से धोखा कर राजीनामे से सुधेंदु प्रकाश गौतम के नाम पावर ऑफ अटार्नी करा दी। सुधेन्दु ने उक्त जमीन पर द्वारावती नामक एक रिहायशी कॉलोनी बना दी। सुधेन्दु ने कॉलोनी के निर्माण के लिए बल्देव पुरी निवासी राजीव अग्रवाल को पार्टनर भी बनाया। इस मामले में ब्रजेश कुमार गोस्वामी, विजय कुमार जैन, सुधेन्दू प्रकाश गौतम, राजीव अग्रवाल, राजकुमार के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471 406 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
मंदिर के खाते में नहीं जमा किए रुपए
वृंदावन थाने में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक वादी ने आरोप लगाया कि षडयंत्र के तहत बृजेश कुमार महाराज ने अपने ही एमओयू बनाकर एक डीड लिखकर जमीन को बेचने और उस पर निर्माण करने के लिए अधिकार दे दिया। जिसके फर्जी कागजात तैयार किए गए। जिसके आधार पर राजीव अग्रवाल को पार्टनर बनाया गया। इसके बाद उसने राज कुमार को पावर ऑफ अटार्नी होल्डर बनाया। सभी आरोपियों ने फर्जी तरीके से मन्दिर की जमीन को बेच दिया। मंदिर की बेची गई ज़मीन से मिले पैसे को मन्दिर के खाते में जमा ना करके खुद ही हड़प कर गये।
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