इंडिया न्यूज, लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सीएम योगी आदित्यनाथ को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सीएम योगी के भड़काऊ भाषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है। बता दें कि साल 2007 में सीएम योगी के भाषण के बाद गोरखपुर में दंगा भड़कने का आरोप लगा था। यूपी सरकार ने मई 2017 में इस आधार पर मुकदमे की अनुमति देने से मना कर दिया था कि सबूत नाकाफी हैं। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी फरवरी 2018 में मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी थी। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसके बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो रहे सीजेआई एनवी रमण, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया है।
बयान के साथ की गई थी छेड़छाड़
यूपी सरकार की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में कुछ बचा ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सीएफएसएल के पास सीडी भेजी गई थी और पाया गया कि उसके साथ छेड़छाड़ हुआ था। साथ ही याचिकाकर्ता ने जो मुद्दा उठाया है हाईकोर्ट ने उस पर ध्यान दिया है। वहीं याचिकाकर्ता के वकील फुजैल अहमद अय्यूबी ने हाईकोर्ट के समक्ष रखे गए मुद्दों में से एक का सुप्रीम कोर्ट में उल्लेख किया था। इसमें लिखा गया था कि क्या सरकार धारा 196 के तहत आपराधिक मामले में ऐसे व्यक्ति के लिए आदेश पारित कर सकती है जो उसी बीच राज्य का मुख्यमंत्री चुना जाता है और अनुच्छेद 163 के तहत कार्यकारी प्रमुख है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मंजूरी का सवाल ही नहीं
वकील ने कहा था कि हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार नहीं किया। इस पर पीठ ने पूछा, एक और मुद्दा है। एक बार जब आप निर्णय के अनुसार योग्यता पर चले जाते हैं और सामग्री के अनुसार, यदि कोई मामला नहीं बनता है, तो मंजूरी का सवाल कहां है? अगर कोई मामला है, तो मंजूरी का सवाल आएगा। अगर कोई मामला ही नहीं है, तो मंजूरी का सवाल कहां है? अय्यूबी ने कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी से इंकार करने के कारण ही केस में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई है।
ये था पूरा मामला
याचिकाकर्ता परवेज परवाज का कहना था कि तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के भाषण के बाद 2007 में गोरखपुर में दंगा हुआ था। इसमें कई लोगों की जान चली गई थी। साल 2008 में दर्ज एफआईआर की राज्य सीआईडी ने कई साल तक जांच की। उसने 2015 में राज्य सरकार से मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी। याचिका में कहा गया है कि मई 2017 में राज्य सरकार ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। जब राज्य सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार किया, तब तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। ऐसे में अधिकारियों की तरफ से लिया गया यह फैसला दबाव में लिया गया हो सकता है।
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