होम / UP News: काशी के मणिकर्णिका घाट पर लगेगा लकड़ी का आधुनिक उर्जा शवदाह संयंत्र, कम खर्च में होगा अंतिम संस्कार

UP News: काशी के मणिकर्णिका घाट पर लगेगा लकड़ी का आधुनिक उर्जा शवदाह संयंत्र, कम खर्च में होगा अंतिम संस्कार

• LAST UPDATED : October 16, 2022

इंडिया न्यूज यूपी/यूके, वाराणसी: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सनातन धर्म की परंपराओं को संजोए हुए काशी को निरंतर प्रगति के पथ पर ले जा रही है। सरकार वाराणसी में बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने के साथ अत्याधुनिक सुविधाओं को भी जोड़ रही है। मोक्ष की नगरी काशी में मृत्यु भी उत्सव है। इतिहास से भी पुरानी शिव की नगरी काशी के मणिकर्णिका घाट पर खुद भगवान शंकर शव को तारक मंत्र देते हैं और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। योगी सरकार वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर लकड़ी आधारित आधुनिक ऊर्जा शवदाह संयंत्र लगवा रही है। इस संयंत्र से परंपरागत तरीक़े से अंत्येष्टि होगी, जिससे समय, पैसे और पर्यावरण तीनों की बचत होगी।

कम समय और कम ख़र्च में होगा अंतिम संस्कार
अब कम समय और कम ख़र्च में लकड़ी से शवदाह करने के लिए एक अत्याधुनिक शवदाह संयंत्र मोक्ष की नगरी काशी में लगने जा रहा है। मोक्ष की नगरी काशी में मणिकर्णिका व हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह की परंपरा है। यहां परंपरागत तरीक़े के अलावा बिजली व सीएनजी से भी अंत्येष्टि की सुविधा है। अब एक और नया आधुनिक ऊर्जा शवदाह संयत्र लगने वाला है।

नगर निगम के इलेक्ट्रिकल व मैकेनिकल विभाग के अधिशासी अभियंता अजय कुमार राम ने बताया कि लकड़ी का यह शवदाह संयंत्र मणिकर्णिका घाट पर लगेगा। उन्होंने बताया कि धार्मिक मान्यताओं और आस्था को ध्यान में रख कर इस अत्याधुनिक लकड़ी आधारित शवदाह संयंत्र को लगाया जा रहा है। इसके लगने से पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। वहीं अंत्येष्टि में समय भी कम लगेगा। उन्होंने बताया कि संयंत्र लगाने के लिए इसमें लगने वाली चिमनी का फाउंडेशन का काम हो गया है। बाढ़ का पानी कम होते ही आगे का काम शुरु हो जाएगा।

120 किलो लकड़ी से होगी अंत्येष्टि
लकड़ी आधारित ऊर्जा शवदाह संयंत्र बनाने वाले कम्पनी मेसर्स ऊर्जा गैसीफायर प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय कुमार जायसवाल ने बताया कि इस अत्याधुनिक ऊर्जा शवदाह संयंत्र से करीब 120 किलो लकड़ी से ही अंत्येष्टि हो जाती है। इसमें पुराने तरीके के अंत्येष्टि कि तुलना में एक तिहाई से भी कम लकड़ी लगती है। साथ ही देढ़ घंटे में शव पूरी तरह जल जाता है, जिसमें पहले करीब तीन घंटे से भी अधिक का समय लगता था। इससे समय, पैसे और वातावरण सबकी बचत होती है।

एक शवदाह संयंत्र बनाने में आता है 54 लाख का खर्च
एक शवदाह संयंत्र बनाने में करीब 54 लाख का खर्च आता है। इस संयंत्र में एक खास तरीके की ट्रॉली होती है। जिसमें चिता सजाई जाती है। परंपरा के मुताबिक़ चिता की परिक्रमा करने की भी जगह होती है। हिन्दू धर्म में कपाल क्रिया का भी बहुत महत्व है। शव के लगभग 90 प्रतिशत जल जाने के बाद कपाल क्रिया की जा सकती है। अंत्येष्टि के बाद 2 से 3 प्रतिशत राख इत्यादि शेष बचती है। जिसे अस्थि पूजा तथा अन्य जगहों पर प्रवाहित करने के लिए भी ले जाया जाता है। इसमें 100 फीट ऊंची चिमनी लगे होने से वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। बिजली न मिलने पर इसकी आवश्यकता सोलर पैनल से पूरी की जाती है। ये शवदाह संयंत्र 35 X20 फ़िट की जगह में लग जाता है और डबल फर्नेस के लिए 35 X 35 की जग़ह की आवश्कता होती है।

ऐसी मान्यता है कि मोक्ष की नगरी काशी में मरने से व शवदाह से मुक्ति मिलती है। इसलिए काशी में शवदाह के लिए पूर्वांचल ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेश से भी लोग अंत्येष्टि के लिए आते हैं। कोलकाता की हिंदुस्तान चैरिटी ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी कृष्ण कुमार काबरा ने नगर निगम को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा था। ये ट्रस्ट ही इस संयंत्र का खर्च वहन करेगी। इससे पेड़ कम कटेंगे तो हरियाली बढ़ेगी और वायुमण्डल भी प्रदूषित नहीं होगा। ये संयंत्र गया, मुम्बई, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, लखनऊ एवं नेपाल समेत कई जगहों पर लग चुका है।

यह भी पढ़ें- Gorakhpur: PET की परीक्षा बनी अभ्यर्थियों के लिए मुसीबत, परीक्षार्थियों ने सुनाई आपबीती – India News (indianewsup.com)

Connect Us Facebook | Twitter

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

ADVERTISEMENT
mail logo

Subscribe to receive the day's headlines from India News straight in your inbox