वाराणसी, इंडिया न्यूज यूपी/यूके: ज्ञानवापी मामले पर वाराणसी जिला अदालत से बड़ा फैसला आया है। जिला जज ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दी है। 26 पन्नों में अपना फैसला हिंदू पक्ष के हक में दिया, साथ ही सुनवाई की अगली तारीख 22 सितंबर तय की है। कोर्ट ने कहा कि इस केस में श्रृंगार गौरी याचिका सुनवाई योग्य है। इसमें कोई कानूनी बाधा नहीं है। विशेष पूजा स्थल कानून 1991 की भी कोई रुकावट नहीं है।
बता दें कि तीन महीने से ज्यादा समय तक चली सुनवाई में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें दी हैं। हिंदू पक्ष की ओर से इस मामले को सुनवाई योग्य करार देने के लिए कई साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। अब मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट जाने की बात कह रहा है।
फैसले को लेकर काशी वासियों में खास उत्साह
सोमवार सुबह से ही काशी वासियों में फैसले को लेकर खास उत्साह देखने को मिला। हर कोई फैसले के इंतजार कर रहा था। फैसले को लेकर हवन भी किया गया साथ ही गाना गाकर भी उत्साह दिखाया जा रहा था।
सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत की ओर से ज्ञानवापी परिसर में कराए गए सर्वे के बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जिला जज की अदालत को ऑर्डर 7 रूल 10 के तहत सुनवाई का आदेश दिया था। इस मामले में न्यायालय इस बात पर सुनवाई कर रही थी कि आजादी के समय विशेष उपासना स्थल कानून ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में लागू होता है या नहीं।
जानें अब तक क्या-क्या हुआ
वर्ष 1991 में याचिकाकर्ता स्थानीय पुजारियों ने वाराणसी कोर्ट में एक याचिका दायर की। इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद एरिया में पूजा करने की इजाजत मांगी थी। इस याचिका में कहा गया कि 16वीं सदी में औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई गई थी। दरअसल, काशी विश्वानाथ मंदिर का निर्माण मालवा राजघराने की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
‘मंदिक के हिस्से को तोड़कर बनाई गई मस्जिद’
याचिकाकर्ताओं का दावा था कि औरंगजेब के आदेश पर मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई गई। उन्होंने दावा किया कि मस्जिद परिसर में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं और उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा की इजाजत दी जाए। हालांकि, 1991 के बाद से यह मुद्दा समय-समय पर उठता रहा, लेकिन कभी भी इसने इतना बड़ा रूप नहीं लिया, जितना इस समय है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दी थी।
मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग
वहीं मामले में इसके बाद वाराणसी के एक वकील विजय शंकर रस्तोगी ने निचली अदालत में एक याचिका दायर की और कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण अवैध तरीके से हुआ था। इसके साथ ही उन्होंने मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग की। यह याचिका अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिसंबर 2019 में दायर की गई थी।
मस्जिद का सर्वे की रिपोर्ट को जमा करने का आदेश
अप्रैल 2021 में वाराणसी कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व विभाग को मस्जिद का सर्वे करके रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया। हालांकि, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने शंकर रस्तोगी की याचिका का वाराणसी कोर्ट में विरोध किया। बाद में उन्होंने कोर्ट के आदेश पर मस्जिद में हो रहे सर्वे का भी विरोध किया।
हिंदू पक्ष के वकील ने यह दी थी दलील
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन का कहना है कि नंदी भगवान की प्रतिमा आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है, नंदी का मुंह मस्जिद की ओर है। नंदी का मुंह हमेशा शिवमंदिर की ओर होता है, इससे साफ है कि मंदिर मस्जिद के भीतर ही है। मस्जिद के भीतर ज्ञानकूप और मंडप है। मस्जिद के ऊपर जो गुंबद हैं वो पश्चिमी दीवार पर खड़े हैं और पश्चिमी दीवार हिंदू मंदिर का हिस्सा है। मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर ब्रह्म कमल है, पश्चिमी दीवार पर बना गुंबद हिंदू कलाकृति की दीवार है और इसके ऊपर मस्जिद बना है जोकि साफ दिखता है।
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