इंडिया न्यूज, वाराणसी।
Ustad Bismillah Khan Jayanti Special : भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां मां सरस्वती के अनन्य भक्त थे। वह अक्सर मंदिरों में शहनाई बजाया करते थे। शहनाई उनके लिए अल्लाह की इबादत और सरस्वती वंदना का जरिया थी। संगीत के माध्यम से उन्होंने एकता, शांति और प्रेम का संदेश दिया था। (Ustad Bismillah Khan Jayanti Special )
दालमंडी के हड़हा सराय के मकान की सबसे ऊपरी मंजिल की खिड़की जब भी खुलती थी तो शहनाई के सुरों से देवत्व का साक्षात्कार कराती। उस्ताद का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में हुआ था। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जब तक रहे बाबा विश्वनाथ को शहनाई बजाकर जगाया करते थे। उस्ताद के कमरे की खिड़की तो अभी भी खुलती है, लेकिन बिस्मिल्लाह की शहनाई अब नहीं गूंजती।
उस्ताद की दत्तक पुत्री पद्मश्री डॉ. सोमा घोष का कहना है कि बाबा मंगलागौरी और पक्का महाल में रियाज करते हुए जवान हुए। इसी का असर था कि बनारस का रस उनकी शहनाई से टपकता था। साहित्य नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य का कहना है कि भारत की आजादी और बिस्मिल्लाह खां की शहनाई का भी खास रिश्ता रहा है। (Ustad Bismillah Khan Jayanti Special )
1947 में आजादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर देश का झंडा फहराया गया तो उनकी शहनाई ने भी वहां आजादी का संदेश बांटा था। अपने जीवन काल में उन्होंने ईरान, इराक, अफगानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा और रूस में अपनी शहनाई की जादुई धुनें बिखेरीं। उन्होंने गूंज उठी शहनाई, सत्यजीत रे की फिल्म जलसाघर में संगीत दिया।
भारत रत्न के पोते आफाक अहमद ने बताया कि दादा के जाने के बाद से न तो अधिकारी आते हैं और न ही उनके चाहने वाले। परिवार के पास शहनाई के अलावा और कोई दूसरा हुनर नहीं है। हम लोग आज भी शहनाई वादन के जरिए ही परिवार का गुजारा कर रहे हैं। (Ustad Bismillah Khan Jayanti Special )
उस्ताद का पूरा कुनबा हड़हा सराय के मकान में ही रहता है। कुछ लोग बाहर चले गए हैं तो कुछ ने दूसरी जगह अपने आवास बना लिए हैं। पद्मविभूषण पं. छन्नू लाल मिश्र एक बार का वाकया बताते हैं कि राय कृष्ण दास के बगीचे में रामचरित मानस का पाठ रखा गया था। पं. बैजनाथ ने उस्ताद से कहा कि अंतिम दिन शहनाई बजा देता त मजा आ जात…। बिस्मिल्लाह ने कहा बिल्कुल आएंगे।
(Ustad Bismillah Khan Jayanti Special)
Connect With Us : Twitter Facebook