Varanasi Gyanvapi case
इंडिया न्यूज, वाराण्सी (Uttar Pradesh) । वाराणसी में ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद को लेकर गुरुवार को जिला अदालत में सुनवाई होनी है। सुनवाई शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका पर है। शंकराचार्य ने अदालत में याचिका दाखिल कर ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग की आकृति की पूजा, राजभोग करने की अनुमति मांगी थी।
पिछले हफ्ते टल गई थी सुनवाई
बता दें कि सिविल जज सीनियर डिविजन कुमुद लता त्रिपाठी की अदालत में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से दाखिल वाद की सुनवाई चल रही है। बीते हफ्ते पीठासीन अधिकारी के छुट्टी पर रहने के कारण 18 नवंबर को सुनवाई टल गई थी। 24 नवंबर नई तारीख दी गई थी। वादी के अधिवक्ता रमेश उपाध्याय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया है कि ज्ञानवापी से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई एक ही कोर्ट में हो। ऐसे में जिला जज की अदालत में जल्द आवेदन देकर एक साथ सुनवाई किए जाने का अनुरोध किया होगा।
स्वरूपानंद की मौत के बाद शंकराचार्य बने थे अविमुक्तेश्वरानंद
अविमुक्तेश्वरानंद शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य रहे हैं। उनकी मौत के बाद शंकराचार्य का पद वही संभाल रहे हैं। अविमुक्तेश्वरानंद और राम सजीवन ने वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार त्रिपाठी,रमेश उपाध्याय चंद्रशेखर सेठ के माध्यम से अदालत में वाद दाखिल किया है।
जिसमें शृंगार गौरी प्रकरण में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के आदेश पर हुए कोर्ट कमीशन की कार्यवाही में मिले शिवलिंग की आकृति का विधिवत रागभोग, पूजन व आरती जिला प्रशासन की ओर से विधिवत करना चाहिए था, लेकिन अभी तक प्रशासन ने ऐसा नहीं किया है। न किसी अन्य सनातनी धर्म से जुड़े व्यक्ति को इसके लिए नियुक्त किया। उन्होंने बताया कि कानूनन देवता की परस्थिति एक जीवित बच्चे के समान होती है। जिसे अन्न-जल आदि नहीं देना संविधान की धारा अनुच्छेद-21 के तहत दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।
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