Earthquake
इंडिया न्यूज, देहरादून (Uttarakhand)। पिछले कुछ समय से उत्तराखंड सहित देश के कई हिस्सों में धरती डोलने और भूकंप आने की घटनाएं लगातार होती रही हैं। भूकंप की इन घटनाओं को वैज्ञानिक सामान्य घटना करार दे रहे हैं और उनका कहना है कि धरती के डोलने की घटनाएं अक्सर होती रही हैं। कम तीव्रता के भूकंप आते रहते हैं और इनसे घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
एक्सपर्ट बोले- घबराने की जरूरत नहीं
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर सुशील कुमार का मानना है कि रिक्टर स्केल पर कम तीव्रता के भूकंप अक्सर आते हैं और जनता में जागरूकता और तमाम नए उपकरणों के चलते इसकी जानकारी अब तुरंत सभी लोगों तक पहुंच जा रही है। इससे डरने और घबराने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि पहले भी अक्सर इसी तरह से कम तीव्रता के भूकंप की घटनाएं होती रही हैं। भूकंप के लिहाज से कई इलाके संवेदनशील इलाकों में आते हैं, इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक सिस्मिक जोन 5 है, जहां 8 से 9 तीव्रता वाले भूकंप के आने की संभावना रहती है।
उत्तराखंड में तीन बार आए भूकंप
उत्तराखंड में शनिवार को तीन घंटे के अंतराल में दो बार धरती डोली। कम तीव्रता के बावजूद लोग ने भूकंप को महसूस किया। पहले उत्तरकाशी और फिर नेपाल में आए भूकंप के झटके राजधानी देहरादून समेत पूरे राज्य में महसूस किए गए। भूकंप आने के बाद राजधानी दून में कई जगह लोग घरों से बाहर आ गए। शनिवार शाम को करीब पांच बजे उत्तरकाशी जिले में भूकंप आया। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3.1 मापी गई दूसरा भूकंप रात करीब 7.57 बजे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से सटे नेपाल के इलाके में आया। इसकी तीव्रता 5.4 मापी गई। पहला भूकंप का झटका ज्यादा तेज नहीं था लेकिन नेपाल में धरती डोलने का यहां भी काफी असर दिखा।
क्या होता है सिस्मिक जोन?
सिस्मिक जोन 5 में देश का पूरा पूर्वोत्तर इलाका, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई क्षेत्र, गुजरात का कच्छ, उत्तर बिहार और अंडमान निकोबार द्वीप शामिल है। हालांकि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की बात करें तो देहरादून जोन 4 में आता है।
सिस्मिक जोन 4 भी खतरनाक श्रेणी में आता है, इसमें भूकंप की तीव्रता 7.9-आठ रहती है। इसमें दिल्ली, एनसीआर के इलाके, जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के इलाके, यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका, गुजरात का कुछ हिस्सा और पश्चिम तट से सटा महाराष्ट्र और राजस्थान का इलाका आता है।
सिस्मिक जोन 3 मध्यम खतरनाक होता है, इसमें भूकंप की तीव्रता सात या उससे कम होती है। इसमें केरल, गोवा, लक्षदीप, यूपी, गुजरात और पश्चिम बंगाल के बचे हुए इलाके, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के इलाके आते हैं।
सिस्मिक जोन 2 कम खतरनाक जोन माना जाता है, इसमें वो इलाके आते हैं जो सिस्मिक जोन 5, 4 और 3 शामिल नहीं हुए हैं। यहां 4.9 तीव्रता से ज्यादा का भूकंप आने का खतरा नहीं है। माइक्रो श्रेणी 2.0 से कम तीव्रता वाले भूकंप इस श्रेणी में आते हैं। 2.0 से कम तीव्रता वाले भूकंप रिक्टर पैमाने पर प्रति दिन दुनियाभर में 9,000 दर्ज किए जाते हैं। रिक्टर पैमाने पर इन्हें माइक्रो श्रेणी में रखा जाता है और यह भूकंप महसूस नहीं किए जाते।
जानिए कितने तरह के होते हैं भूकंप के झटके
माइनर श्रेणी
2.0 से 2.9 तीव्रता वाले भूकंप इस श्रेणी में आते हैं। ऐसे 1,000 भूकंप प्रतिदिन आते हैं, इसे भी सामान्य तौर पर हम महसूस नहीं करते।
वेरी लाइट और लाइट श्रेणी
3.0 से 3.9 तीव्रता रिक्टर पैमाने वाले भूकंप इस श्रेणी में शामिल किए जाते हैं। एक अंदाज के अनुसार, हर साल रिक्टर पैमाने पर वेरी लाइट और लाइट श्रेणी के 55,000 से अधिक भूकंप दर्ज किए जाते हैं। इन्हें महसूस तो किया जाता है लेकिन शायद ही इनसे कोई नुकसान पहुंचता है।
लाइट श्रेणी
4.0 से 4.9 तीव्रता के भूकंप इस श्रेँणी में रखे जाते हैं। इसी तरह एक साल में 4.0 से 4.9 तीव्रता वाले 6,200 लाइट श्रेणी के भूकंप दुनियाभर में दर्ज किए जाते हैं। इन झटकों को महसूस किया जाता है और इनसे घर के सामान हिलते नजर आते हैं। हालांकि इनसे न के बराबर ही नुकसान होता है।
स्ट्रांग श्रेणी
स्ट्रांग श्रेणी के भूकंप जिनकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.0 से 6.9 होती है, इनसे भारी तबाही होती है। जबरदस्त तीव्रता की वजह से भूकंप के केंद्र से लेकर 160 किमी तक आबादी वाले इलाकों में तबाही फैल जाती है। एक साल में ऐसे 120 भूकंप दुनियाभर के रेक्टर पैमाने पर दर्ज किए जाते हैं।
मेजर श्रेणी
इस श्रेणी में भूकंप की तीव्रता 7.0 से 7.9 होती है। ऐसे भूकंपों की संख्या साल भर में 18 होती है और इनसे काफी बड़े क्षेत्रों में गंभीर तबाही होती है।
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