होम / Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal : जाने क्यों होली में बेहद खास है बुंदेली फाग, एक माह पहले ही उड़ने लगता है गुलाल

Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal : जाने क्यों होली में बेहद खास है बुंदेली फाग, एक माह पहले ही उड़ने लगता है गुलाल

• LAST UPDATED : March 6, 2022

इंडिया न्यूज, हमीरपुर।

Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal : मस्ती भरे फाग बुंदेलखंड में होली के एक माह पहले से ही गूंजने लगते है। क्योकि फागुन का महीना आये और बुंदेलखंड की फिजा में फाग ना गूंजे ऐसा हो ही नहीं सकता। इसी मस्ती भरे गीतों और रंगों की फुहारों ने बुंदेलखंड में होली की अलग ही पहचान बना रखी है। (Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal)

यहां की होली में और खास बात ये है की यहां ब्रज की मस्ती छेड़-छाड़ और अवधी नफासत दोनों का अनूठा संगम एक साथ देखने को मिलता है। बुंदेलखंड में रंगों की बौछार के बीच गुलाल-अबीर से सने चेहरों वाले फगुआरों के होली गीत ‘फाग’ जब फिजा में गूंजते हैं, तो ऐसा लगता की श्रंगार रस की बारिश हो रही है।

फाग सुनकर झूमते हैं बच्चे और जवान (Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal)

फाग को सुनकर बच्चे, जवान और बूढों के साथ महिलाएं भी झूम उठती है। फाग जैसी मस्ती का ऐसा नजारा कही और देखने को नही मिलता। ढोलक की थप और मंजीरे की झंकार के साथ अबीर गुलाल के बीच मद-मस्त किसानों का बुंदेलखंडी होली गीत ‘फाग’ गाने का अंदाजे बयान इतना अनोखा और जोशीला होता है की श्रोता मस्ती में चूर होकर नाचने पर मजबूर हो जाते हैं। उनकी दिन भर खेतों में की मेहनत की थकावात एक झटके में दूर हो जाती है। फाग गायक किसान रतिराम की माने तो बुंदेलखंड की संस्कृति यहां के रीति-रिवाज और रवायतें देश में सबसे जुदा है।

किसानों में दिखता है बेहद उल्लास (Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal)

यहां के त्योहारों में यहां के किसान वर्ग की खुशी गम उमंग और उल्लास सब कुछ देखने को मिलता है। फागुन का महीना आते ही किसान के खेतों में फसल पक कर तैयार हो जाती है। इसकी खुशी में वो झूमकर फाग गाता है, रंग खेलता है और अपनी खुशी का खुलकर इजहार करता है। (Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal)

इसी के चलते फाग गायन बुंदेलखंड की परंपरा बन गई है। फाग गायन को संरक्षित कर रहे डॉ राम भजन की माने तो बुंदेलखंडी बसिंदो की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम उनके लोक गीत और संगीत होते है। कुछ वैसी ही है बुंदेलखंडी फाग। इसके प्रणेता थे जनकवि इश्वरी। उन्होंने यहां फाग की 32 विधायों का इजाद किया था. बदलते समय के साथ अब यहां के फाग में वो बात तो नहीं रही लेकिन अब भी 8 तरह की फाग की विधा यहां गाई जाती है।

(Holi Bundeli Phag in Month of Phagun Color Gulal)

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