India News (इंडिया न्यूज़), Chandrashekhar Azad: एक 15 साल के लड़के को एक छड़ी से बांध दिया गया था और उसकी नंगी पीठ पर बेंत मारे जा रहे थे। जितनी ताकत से अंग्रेज सिपाही बेंत मारता था, उतनी ही तीव्रता से बच्चा ‘भारत माता की जय’ बोलता था और नाम पूछने पर आजाद बताता था। कुछ ऐसे ही थे भारत माता के लाल चन्द्रशेखर आजाद, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने और भारत माता को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
आज 27 फरवरी को पूरा देश अमर शहीद क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद का 93वां शहादत दिवस मना रहा है। हम सब उनके बलिदान को याद करते हैं और उनकी महानता को सलाम करते हैं। उनकी प्रेरणा हमें सदैव एक सशक्त, स्वतंत्र और सक्षम भारत की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहेगी।
भारतीय इतिहास में चन्द्रशेखर आज़ाद एक महान योद्धा के रूप में अमर हो गये हैं लेकिन आज भी वह करोड़ों भारतीयों के दिलों में रहते हैं। अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भावरा गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का जगरानी देवी था। चंद्रशेखर आजाद किशोरावस्था में छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गये थे। जब दिसंबर 1921 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। तब चन्द्रशेखर आजाद ने भी आन्दोलन में भाग लिया और अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिये गये। जिसके बाद उसकी विचारधारा बदल गई।
आज़ाद ने कम उम्र में ही राष्ट्रीय उद्यमों में भाग लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनका संघर्ष प्रेरणादायक था। उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया और इसके तहत कई क्रांतिकारी कार्यक्रमों का नेतृत्व किया। उनका मुख्य लक्ष्य भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ना और अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना था।
27 फरवरी 1933 को जब चन्द्रशेखर आजाद अपने मित्र सुखदेव राज के साथ अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे। मुखबिर की सूचना पर सीआइडी के पुलिस अधीक्षक नॉट बाबर सिपाहियों के साथ वहां पहुंचते हैं। उनके पीछे कर्नलगंज थाने की बड़ी संख्या में पुलिस भी थी। बाबर ने चन्द्रशेखर आजाद को चारों ओर से घेर लिया। चन्द्रशेखर आज़ाद पर गोलीबारी शुरू हो गई।
ऐसे में चन्द्रशेखर आज़ाद ने एक पेड़ की आड़ लेकर अपनी पिस्तौल से गोली चलाकर जवाब दिया। आज़ाद के सटीक निशाने ने तीन पुलिसकर्मियों को मार डाला। कई ब्रिटिश सैनिक घायल हो गये। लेकिन आख़िर में उनके पास बहुत कम गोलियाँ बचीं। ऐसे में एक समय ऐसा आया जब उनके पास केवल एक ही गोली बची थी। तब आज़ाद ने अपने वचन के अनुसार स्वयं को स्वतंत्र साबित करते हुए स्वयं को गोली मार ली और वीरगति को प्राप्त हो गये।
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