India News(इंडिया न्यूज़), Ram Mandir : 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह होना है। लेकिन राम मंदिर के इस कार्यक्रम में चारों मठों के शंकराचार्य शामिल नहीं होंगे। जिसको लेकर राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर के उद्धाटन में कुछ भी शास्त्रों के विपरीत नहीं हो रहा है। सब कुछ शास्त्रों को अनुकूल है।
बात दें कि विपक्षी दलों का दावा है कि वो आधे अधूरे मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से शंकराचार्य नाराज़ हैं। जिस वजह से रामलला का प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं हो रहे हैं। आचार्य सत्येन्द्र दास ने विपक्ष और खास कर कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि राम मंदिर पर कोर्ट का फैसला रोकने के लिए कांग्रेस बीस वकील खड़ा करती थी। अगर वे चाहते तो जब यह देश आजाद हुआ तो शुरुआत में ही रामजन्मभूमि आजाद हो गई होती और इसका भी समाधान हो गया होता, लेकिन उन्होंने कभी प्रयास नहीं किया, अब आरोप लगाते रहते हैं। परंतु कार्य जिस प्रकार चल रहा है उसी प्रकार पूर्ण होगा।
चार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में जो कुछ भी हो रहा है, सब शास्त्र के अनुकूल ही हो रहा है, शास्त्र के विपरीत कुछ भी नहीं है। जिस क्षेत्र में रामलला को स्थापित किया जाना है उसका निर्माण हो चुका है, सिंहासन का निर्माण हो चुका है। उन्होंने कहा कि उनका भवन बनकर तैयार हो गया है। गुंबद बन चुका है और सारी व्यवस्थाएं हो चुकी है, जमीन पर एक हिस्सा पूरी तरह से बन चुका है।
राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि मंदिर का निर्माण तीन हिस्सों में होना है। जब एक भाग पूरा हो जाएगा और उसकी पूजा की जाएगी उसके बाद वह पूरा हो जाएगा। इसलिए यह सोचना गलत है कि मंदिर अधूरा है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि जो लोग ऐसी बातें कर रहे हैं वो नहीं आने का बहाना बना रहे हैं। जो भी काम किया जा रहा है वह सब शास्त्र के अनुकूल हैं। सारे कार्यक्रम भी मंत्र, यंत्र अनुष्ठान और शास्त्र के अनुसार होंगे।
वहीं, शंकराचार्य के विरोध के दावे पर सत्येन्द्र दास ने कहा कि मंदिर की व्यवस्था अपने हिसाब से की गई है। उन्हें यह ज्ञान नहीं दिया गया कि एक हिस्सा बन चुका है, इसमें कुछ भी अधूरा नहीं है, दूसरे हिस्से में रामलला नहीं आयेंगे। उनके विचार उनके विचार हैं, हम उनका विरोध नहीं करते, वे शंकराचार्य हैं। यदि उसके विचार आने की उसकी इच्छा नहीं है, तो यह उसका विचार है।
मैं शंकराचार्य को धन्यवाद देता हूं जो इसका समर्थन कर रहे हैं, वह भी सभी परिस्थितियों के बारे में सोच रहे हैं। भगवान राम के प्रति उनकी श्रद्धा और आस्था है और जो वह नहीं कर रहे हैं वह उनके विचारों में है। उस पर हम यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं। एक शंकराचार्य की नजर में वह पूर्ण है तो दूसरा मंदिर को अधूरा मानता है। यह उनका विचार है। मैं उनके बारे में कुछ नहीं कह सकता।