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Pandit Birju Maharaj: पंडित बिरजू महराज, लखनऊ के कालका बिंदादीन घराने के थे सदस्य बिरजू महराज, कथक के प्रसिद्ध नर्तक थे

• LAST UPDATED : January 17, 2022

इंडिया न्यूज, लखनऊ:

Pandit Birju Maharaj पंडित बिरजू महाराज का 83 वर्ष की उम्र में दिल्ली में हार्ट अटैक से निधन हो गया। उनके निधन से कला प्रेमियों में गहरा शोक है। पंडित बिरजू महाराज लखनऊ के कालका बिंदादीन घराने के सदस्य थे। उनका पूरा नाम बृज मोहन नाथ मिश्र था। उनका जन्म चार फरवरी 1937 को लखनऊ में हुआ था।

Pandit Birju Maharaj  उनके निधन पर लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि आज भारतीय संगीत की लय थम गई। सुर मौन हो गए। भाव शून्य हो गए। कथक के सरताज पंडित बिरजू महाराज नहीं रहे। लखनऊ की ड्योढ़ी आज सूनी हो गई। कालिका बिंदादीन जी की गौरवशाली परपरंरा की सुगंध विश्व भर में प्रसारित करने वाले महाराज जी अनंत में विलीन हो गए। वह लखनवी कथक के पर्याय थे।

नर्तक होने के संग ही शानदार गायक थे Pandit Birju Maharaj

पंडित बिरजू महाराज नृतक होने के साथ ही एक उम्दा गायक भी थे। हाल ही में लखनऊ आगमन पर उन्होंने उप्र संगीत नाटक अकादमी के मंच से अपनी कविताएं भी सुनाई थीं। बिरजू महाराज के पिता और गुरु अच्छन महाराज, चाचा शंभु महाराज और लच्छू महाराज भी प्रसिद्ध नर्तक थे। लखनऊ और कथक एक दूसरे के प्रतिबिंब स्वरूप हैं।


गोलागंज में कालका बिंदादीन ड्योढ़ी है Pandit Birju Maharaj

कथक, लखनऊ घराने के प्राण जहां बसे हैं, वह गोलागंज में कालका बिंदादीन ड्योढ़ी है। 1856 की इस ड्योढ़ी की दर-ओ-दीवार पर कथक बसा है। कथक नृत्य की तीर्थस्थली कालका बिंदादीन ड्योढ़ी जो आज उत्तर प्रदेश के संस्कृति निदेशालय के अंतर्गत कथक म्यूजियम के रूप में विद्यमान है। यह ड्योढ़ी अपने वर्तमान स्वरूप में कथक के इतिहास की अनेक गाथाएं स्वयं में समेटे हुए खड़ी है।

Pandit Birju Maharaj  गुरु शिष्य परंपरा के तहत यहीं पर ना जाने कितने ही दिग्गजों ने कथक को आत्मसात किया। इसके आंगन में आज भी लगा अमरूद का पेड़ कला साधकों के तप का साक्षी है। इस ड्योढ़ी के सामने वाले कमरे में साधनारत रहकर कला मूर्धन्यों ने लखनऊ घराने के कथक को जीवंतता दी। कला प्रेमी इस दहलीज की माटी को सिर माथे लगा विदेश तक लेकर गए।


संस्कृति विभाग को हस्तांतरित कर दिया था Pandit Birju Maharaj

पंडित बिरजू महाराज ने दो अप्रैल 2014 को ड्योढ़ी को एक रुपये टोकन लीज पर संस्कृति विभाग को हस्तांतरित कर दिया था। इसके बाद संस्कृति विभाग ने आवास विकास परिषद को इसके जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी सौंपी। खंडहर हो चुकी इस ड्योढ़ी में आज लखनऊ के कथक घराने का पूरा इतिहास संग्रहालय के माध्यम से दशार्या गया है।

Pandit Birju Maharaj  चित्रों के जरिए से कथक के गौरवशाली इतिहास के साथ ही मंदिर, रसोई और पारंपरिक वेशभूषा को भी दिखाया गया है। लखौरी ईंटों व चूने से बनी यह ड्योढ़ी कथक साधकों के लिए तपोस्थली है। आमजन सुबह दस से शाम पांच बजे तक, सोमवार छोड़कर संग्रहालय का अवलोकन कर सकते हैं।

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