Rishikesh: वर्ल्ड स्पैरो डे पर कार्यक्रम का आयोजन, गौरेया की घटती हुई संख्या चिंता का विषय

(Rishikesh: Program organized on World Sparrow Day, decreasing number of sparrows a matter of concern) विश्व गौरेया दिवस (World Sparrow Day) के अवसर पर उत्तराखंड वन विभाग ने भी गौरेया की घटती संख्या पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। जिसके चलते राजाजी टाईगर रिजर्व के चीला वन विश्राम गृह में पक्षी वैज्ञानिक डाक्टर रजत भार्गव, वार्डन राजाजी टाईगर रिजर्व तथा वन क्षेत्राधिकारी आशीष घिल्डियाल द्वारा गौरेया चिड़िया के संरक्षण के लिए कार्यशाला का आयोजन किया। जिसमें पक्षी प्रेमियों, वनकर्मियो, नेचर गाईड तथा स्कूली बच्चों को शामिल किया गया। जिन्हें स्लाइड शो के माध्यम से गौरेया चिड़िया के संरक्षण के बारे में बताया गया और एक लघु फिल्म भी दिखाई गई और बताया कि उत्तराखण्ड में 16 संरक्षित क्षेत्रों सहित 18 महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र होने के बावजूद भी गौरेया चिड़िया मानवीय आबादी के साथ रहना पसंद करती हैं।

  • गौरेया की घटती संख्या पर ध्यान देना शुरू कर दिया
  • गौरेया चिड़िया के संरक्षण के लिए कार्यशाला का आयोजन
  • गौरेया चिड़िया मानवीय आबादी के साथ रहना पसंद करती हैं
  • गौरेया चिड़ियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची शामिल

गौरेया चिड़िया इंसानी आबादी में रहना पसंद करती हैं

विश्व में पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां वास करती है। लेकिन गौरेया चिड़िया ही एक ऐसी चिड़िया है। जो इंसानी आबादी में रहना पसंद करती हैं। उत्तराखंड की बात करे तो गौरेया चिड़िया हिमालय क्षेत्र में 2000 मीटर की ऊंचाई तक वास करती है। वैसे तो यह चिड़िया भारतीय उपमहाद्वीप बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार तथा पाकिस्तान में भी पाई जाती है। वहीं इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि देशों में गौरेया चिड़िया का मिलना ही इनका इंसानों के साथ निकटता को बताता है। यह कस्बा, गांव, रेगिस्तान, शहर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जहां तक मानव जाति की पहुंच है। वहां यह आसानी से खूब पाई जाती है। जिसके चलते यह चिड़िया जंगलों को छोड़ मानव संसाधन के बीच रहना पसंद करती हैं। जहां गौरेया चिड़िया को आसानी से अनाज के दाने, कीट पतंगे तथा बचे भोजन के टुकड़े मिल जाते हैं।

गौरेया चिड़ियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची शामिल

पहले गौरेया चिड़िया को आसानी से मिट्टी तथा घास फूस के कच्चे घरों, पुराने दरर्ख्तों तथा रोशनदान आदि में देखा जा सकता था। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में आज मनुष्य की बदलती जीवनशैली के कारण गौरेया के अस्तित्व पर खासा प्रभाव पड़ा है। देश के पर्यावरण प्रेमियों तथा पक्षी वैज्ञानिको ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज घरों से खेत, जंगल तथा पेड़ दूर होने के साथ ही गांवो में पक्के निर्माण के चलते शहरीकरण होने तथा परम्परागत खेती को छोड़ कृषि क्षेत्र में रसायनों का इस्तेमाल होने और खुले स्थानों पर बड़े पक्षियों द्वारा किए जाने वाले शिकार के डर से गौरेया चिड़िया इंसानों से काफी दूर होती जा रही है। जबकि गौरेया चिड़ियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची में तक शामिल है। इसका किसी भी तरह से शोषण कानूनन दंडनीय माना गया है।

गौरेया चिड़ियां की घटती संख्या को रोकने के प्रयास

पक्षी वैज्ञानिक डाक्टर रजत भार्गव ने गौरेया चिड़िया की गिरती संख्या के चलते चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि आज गौरेया का अस्तित्व संकट में है। जिसको बचाने के लिए मानव जाति को जागरूक होने की आवश्यकता है। साथ ही वन्यजीव प्रतिपालक राजाजी टाईगर रिजर्व प्रशांत हिंदवांन ने कहा कि वन विभाग आगामी माह में व्यापक स्तर पर गौरेया चिड़िया को चहकता देखने के लिए आमजन के साथ ही स्कूली बच्चों के बीच जनजागरण गौरेया संरक्षण अभियान को चलाएगा। जिससे गौरेया चिड़ियां की घटती संख्या को रोकने के प्रयास किए जा सकें।

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Sonal Pandey

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