इंडिया न्यूज, वाराणसी।
Subhash Chandra Bose Jayanti 2022 : मंदिर की बनावट थोड़ी अलग है। सीढ़ियां लाल रंग की, चबूतरा सफेद पत्थर का और मूर्ति काले रंग की है। लाल रंग क्रांति का, सफेद शांति और काला शक्ति का प्रतीक है। क्रांति से शांति की ओर चलकर शक्ति की पूजा करने का उद्देश्य है। रोज सुबह सात बजे आरती कर भारत माता की प्रार्थना के साथ मंदिर का पट खुलता है और शाम को सात बजे आरती के बाद बंद कर दिया जाता है। (Subhash Chandra Bose Jayanti 2022)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का देश में पहला मंदिर बनारस में ही है। लमही स्थित सुभाष भवन में 123वीं जयंती पर मंदिर का उद्घाटन हुआ था। मंदिर में लगाई गई 11 फीट ऊंची छतरी के नीचे नेताजी की छह फीट की प्रतिमा स्थापित की गई है। क्रांति से शांति की ओर चलकर शक्ति की पूजा के भाव के साथ मंदिर में रोजाना पूजन किया जा रहा है। मंदिर की स्थापना करने वाले विशाल भारत संस्थान के संस्थापक प्रो.राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि मंदिर की स्थापना के पीछे लोगों के मन में देशप्रेम का भाव जागृत करना है।
छुआछूत, धर्म, जाति, रंग, लिंग, भाषा के भेद को खत्म करने, सांप्रदायिक एकता स्थापित करने एवं देशभक्ति का पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से की थी। महिलाएं, पुरुष, किन्नर सभी यहां पर दर्शन करने आते हैं। सुभाष मंदिर सुबह 7 बजे भारत माता की प्रार्थना के साथ खुलता है और शाम 7 बजे से पहले आजाद हिंद सरकार का राष्ट्रगान गाया जाता है। फिर पांच बार राष्ट्रदेवता को जय हिंद के साथ सलामी दी जाती है, बाद में महाआरती होती है। (Subhash Chandra Bose Jayanti 2022)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का काशी से गहरा नाता थे। नेताजी के मौसी और मौसा बंगाली ड्योढ़ी में रहते थे। उनके मौसा बैरिस्टर थे। नेताजी जी कई बार काशी की गुप्त यात्रा पर आए थे और काशी को लेकर उनके दिलो-दिमाग में कई योजनाएं थीं। बीएचयू के भारत कला भवन में नेताजी से जुड़ी कई स्मृतियां आज भी संग्रहीत हैं। नेताजी के मौसी के प्रपौत्र वीरभद्र मित्रा ने बताया कि नेताजी का नारा था इत्तहाद, एकता, ऐतमाद, विश्वास, इतिमिदाद और बलिदान।
(Subhash Chandra Bose Jayanti 2022)
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