Uttarakhand
इंडिया न्यूज, माणा (Uttarakhand) । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को उत्तराखंड पहुंचे। यहां उन्होंने छठी बार केदारनाथ पहुंचकर भोलेनाथ के दर्शन किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौरीकुंड को केदारनाथ और गोविंदघाट को हेमकुंड साहिब से जोड़ने वाली दो नई रोपवे परियोजनाओं सहित 3400 करोड़ रुपये से अधिक की कनेक्टिविटी परियोजनाओं की आधारशिला रखी। यहां ढाई घंटे रहने के बाद वे बदरीनाथ धाम पहुंचे।
इसके बाद देश के अंतिम गांव माणा में जनसभा की। उन्होंने जय बदरीविशाल, जय बाबा केदार से प्रधानमंत्री ने अपना संबोधन शुरू किया। पीएम ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि माणा गांव भारत के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता है। अब मेरे लिए देश की सीमा पर बसा हर गांव पहला गांव है।
पीएम मोदी ने कहा कि देश की सीमा पर बसे ये गांव हमारे देश के सशक्त प्रहरी हैं। पिछली बार जब मैं आया था तो मेरे मुंह से ऐसे ही निकल गया था कि अगला दशक उत्तराखंड का होगा। पीएम मोदी ने कहा कि आज मैं नई परियोजनाओं के साथ संकल्प को दोहराने आया हूं। इस दौरान उन्होंने माणा से जुड़ी अपनी 25 साल पुरानी यादों को ताजा किया।
21वीं सदी के विकसित भारत के निर्माण के दो प्रमुख स्तंभ हैं पहला अपनी विरासत पर गर्व और दूसरा विकास के लिए हर संभव प्रयास। आज उत्तराखंड इन दोनों ही स्तंभों को मजबूत कर रहा है। आज मुझे दो रोपवे परियोजना के शिलान्यास का सौभाग्य मिला। इससे केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के दर्शन करना और आसान हो जाएगा। इसका निर्माण न केवल कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए है, बल्कि यह राज्य में आर्थिक विकास को गति देगा।
देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर मैंने लाल किले पर एक आह्वान किया, ये आह्वान हैं गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति का क्योंकि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे देश को गुलामी की मानसिकता ने ऐसा जकड़ा हुआ है कि प्रगति का कुछ कार्य कुछ लोगों को अपराध की तरह लगता है।
लंबे समय तक हमारे यहां अपने आस्था स्थलों के विकास को लेकर एक नफरत का भाव रहा है। विदेशों में वहां की संस्कृति से जुड़े स्थानों की ये लोग तारीफ करते नहीं थकते थे, लेकिन भारत में इस प्रकार के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता था। अयोध्या में इतना भव्य राममंदिर बन रहा है, गुजरात के पावागढ़ में मां कालिका के मंदिर से लेकर विंध्याचल देवी के कॉरिडोर तक, भारत अपने सांस्कृतिक उत्थान का आह्वान कर रहा है।
पहले जिन इलाकों को देश की सीमाओं का अंत मानकर नजरअंदाज किया जाता था, हमने वहां से समृद्धि का आरंभ मानकर काम शुरू किया। पहले देश का आखिरी गांव जानकर जिसकी उपेक्षा की जाती थी, हमने वहां के लोगों की अपेक्षाओं पर फोकस किया।
समुद्रतल से 10227 फीट की ऊंचाई पर सरस्वती नदी के किनारे बसे माणा गांव में भोटिया जनजाति के करीब 150 परिवार निवास करते हैं। यह गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ कई अन्य कारणों से भी अपनी अलग पहचान रखता है। गांव की महिलाएं ऊन का लव्वा ( ऊन की धोती) और अंगुड़ी (ऊन का बिलाउज) पहनती हैं। यहां की महिलाएं हर वक्त अपने सिर को कपड़े से ढककर रखती हैं। किसी भी सामूहिक आयोजन में महिलाएं और पुरुष समूह में पौणा व झुमेलो नृत्य आयोजित करते हैं।
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