India News (इंडिया न्यूज़), Allahabad High Court News, Prayagraj : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश गुंडा एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई है और राज्य सरकार को 31 अक्टूबर 2023 तक गुंडा एक्ट की कार्यवाही में पूरे प्रदेश में एकरूपता की गाइड लाइंस जारी कर सभी जिलाधिकारियों से कड़ाई से पालन कराने के आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने कहा है कि उ.प्र. गुंडा नियंत्रण अधिनियम के तहत कार्यवाही में एकरूपता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि लोक शांति के लिए खतरा बने समाज में भय फैलाने वाले आदतन अपराधी को गुंडा एक्ट की नोटिस दी जानी चाहिए। केवल एक आपराधिक केस पर गुंडा एक्ट की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
इस एक्ट के तहत व्यक्ति को नगर सीमा से बाहर करने का उपबंध है। इसके बावजूद एक आपराधिक केस पर ही गुंडा एक्ट की नोटिस देकर दुरुपयोग किया जा रहा है। जिस वजह से मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कोर्ट ने महानिबंधक को इस आदेश की कॉपी प्रदेश के सभी कार्यपालक अधिकारियों को भेजने का निर्देश दिया है और याची के खिलाफ एडीएम वित्त एवं राजस्व अलीगढ़ की गुंडा एक्ट के तहत याची को जारी नोटिस रद्द कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी तथा न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने अलीगढ़ के गोवर्धन की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों से अपेक्षा है कि व्यक्ति के विरूद्ध आरोपों की सामान्य प्रकृति, जनता के बीच उनकी व्यक्तिगत छवि, उनकी सामाजिक पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में विचार कर एक निर्धारित परफॉर्मा पर नहीं बल्कि एक सुविचारित आदेश पारित करेंगे।
कोर्ट ने सभी जिला मजिस्ट्रेटों और उनके अधीन काम करने वाले कार्यकारी अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे आगे से उचित कार्रवाई करेंगे और ठोस आधार व तथ्य होने पर ही कार्यवाही करेंगें। याची के खिलाफ यूपी गुंडा नियंत्रण अधिनियम 1970 की धारा 3 के तहत दिनांक 15 जून 2023 को दो मामलों के आधार पर कार्रवाई नोटिस जारी की गई थी।
याची के खिलाफ दर्ज दो मामले में एक एफआईआर है तो दूसरी तथाकथित रिपोर्ट है। मामले अलीगढ़ के थाना छर्रा में दर्ज हैं। कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर कारण बताओ नोटिस पर हस्तक्षेप नहीं करते। वास्तव में एक ही मामले को लेकर गुंडा एक्ट की कार्यवाही की गई है। कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त असाधारण और असामान्य शक्तियों का प्रयोग करने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। लेकिन पाया जा रहा है कि इस अधिनियम के प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है।
अधिकारी अपनी सनक और मनमर्जी से इस असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं और एक अकेले मामले या कुछ बीट रिपोर्ट पर नोटिस जारी कर रहे हैं। यह निवारक अधिनियम को कुंद बनाने जैसा है। गुंडा अधिनियम के प्रावधानों का अविवेकपूर्ण प्रयोग और व्यक्तियों को नोटिस भेजना अधिकारियों की इच्छा या पसंद पर आधारित नहीं है। एक ही मामले में नोटिस जारी करना काफी परेशान करने वाला है।
कोर्ट ने जब एक केस पर गुंडा एक्ट की कार्यवाही को ग़लत बताया तो अपर शासकीय अधिवक्ता ने अचानक कहा कि दो तीन अन्य केस भी है जिसका उल्लेख नोटिस में नहीं किया गया है। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की, कि हाइड एण्ड सीक की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह वैसा ही है जैसे एक हाथ को पता हो और दूसरे को पता ही न हो। ऐसा आदेश रद्द होने योग्य है।