India News (इंडिया न्यूज़),Chandramani Shukla, Lucknow: साल 2023 के जून की 23 तारीख 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बेहद अहम हो सकती है क्योंकि इस दिन पटना में विपक्ष का सम्मेलन होने जा रहा है। हालांकि इसकी उम्मीद कम ही है कि इस सम्मेलन में विपक्ष के नेतृत्व का मुद्दा सुलझ पाएगा लेकिन ये जरुर कहा जा सकता है कि ये सम्मेलन विपक्षी एकता की बुनियाद बन सकता है। बिहार के पटना में होने वाली इस रैली में राजद, झामुमो, सपा, तृणमूल कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति, डीएमके और एनसीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ ही कांग्रेस का शामिल होना लगभग तय माना जा रहा है।
इस सम्मेलन में शामिल होने वाली पार्टियों में सपा और एनसीपी के अलावा लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियां अपने अपने प्रभाव वाले राज्यों में सत्ता में हैं। हालांकि यूपी के सियासी रसूख को देखते हुए सपा सत्ता में न होते हुए भी विपक्ष के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकती है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर बात बनेगी कैसे?
इंडिया न्यूज़ संवाददाता चंद्रमणि शुक्ला के खबर के मुताबिक मौजूदा समय के राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए ये बात साफ तौर पर कहीं जा सकती है कि यूपी में अगर कोई बीजेपी को टक्कर देता दिख रहा है तो वो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी है। अब ऐसे में ये देखना अहम होगा कि क्या विपक्ष उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को नेतृत्व की कमान दे सकता है? क्योंकि देश के चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश की 80 सीटें काफी अहम हो जाती हैं। इसके साथ ही जिस तरह से बीते कई चुनाव में देखा गया है कि भाजपा का रथ रुकने का नाम नहीं ले रहा। इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि विपक्ष एक साथ मिलकर भाजपा यानी NDA का सामना करे। हालांकि इसके पहले भी 2019 के चुनाव में यूपी की दो बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां सपा और बसपा एक साथ मिलकर भाजपा के सामने आई थी लेकिन वहां पर भी परिणाम भाजपा की तरफ ही ही देखने को मिले। अब ऐसी स्थिति में 2024 में क्या अखिलेश यादव के नेतृत्व में विपक्ष एक बार फिर से भाजपा का सामना करेगा ये बड़ा सवाल है। वहीं दूसरी तरफ बड़ा सवाल ये भी है कि क्या कांग्रेस अखिलेश यादव को यूपी में सबसे बड़ा नेता मान पाएगी भी या नहीं?
उत्तर प्रदेश के बीते कई चुनावों में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कई प्रयोग किए और उनका इरादा भी स्पष्ट है कि वो किसी भी तरह भाजपा को हराना चाहते हैं। इसको लेकर अभी हाल के ही दिनों में कहा कि जो क्षेत्रीय शक्ति जिस राज्य में मजबूत है। भाजपा को हराने की रणनीति पर काम करने वाले शेष दलों को उसका साथ देना चाहिए। इसके लिए वे शेष दलों को बड़ा दिल दिखाने की बात भी कह रहे हैं।
अब जब विपक्षी एकता के नीतीश कुमार सूत्रधार बने हुए हैं। तब ऐसी संभावना है कि वो सपा और कांग्रेस के लिए बीच का रास्ता निकाले क्योंकि कांग्रेस ने बीते चुनावों में हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा को हराया। जिससे उसके हौंसले बुलंद हैं और वो फ्रंट पर रहना चाहती है, लेकीन उत्तर प्रदेश में दो विधायक और एक सांसद वाली कांग्रेस पार्टी सपा की तुलना में बेहद कमजोर है। ऐसे में हो सकता प्रदेश के एंटी बीजेपी वोट को एकमुश्त करने के लिए हो कोई सहमति बने।
विपक्षी दलों के सम्मेलन समाजवादी पार्टी की भूमिका को लेकर सपा प्रवक्ता सुनील सिंह साजन का कहना है कि सपा के अलावा बीजेपी को उत्तर प्रदेश में कोई नहीं रोक सकता। हमारे नेता अखिलेश यादव ने कहा है कि सारे लोग मदद करें जो लोग बीजेपी को हराना चाहते हैं। जो PDA के पक्ष में है। जो पिछड़े दलित और अल्पसंख्यक मुसलमानों के हित की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। वो साथ आएं। बीजेपी दिल्ली से तभी हटेगी जब उत्तर प्रदेश से हटे और उत्तर प्रदेश में अगर कोई भाजपा को हरा सकता है तो वो समाजवादी पार्टी है।
23 तारीख के पटना में होने वाले विपक्षी दलों के सम्मेलन को लेकर भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहना है कि विपक्ष ने ऐसे हाथ उठाकर कई बार फोटो खिंचवाई है, लेकिन विपक्षी एकता अपने आप में बहुत कठिन है क्योंकि ये लोग अति महत्वकांक्षी लोग हैं। इनमें कोई वैचारिक समानता नहीं है। एक दूसरे को नेता मानने को तैयार नहीं। ये गठबंधन दूर की कौड़ी है। यूपी में अखिलेश यादव ने हर तरह के प्रयास कर चुके हैं। कांग्रेस से गठबंधन किया। बसपा से गठबंधन किया। छोटे-छोटे दलों से गठबंधन करके देख लिया, लेकिन भाजपा को हराना इनके बस की बात नहीं। लोकसभा चुनावों के बीते परिणामों को देखा जाए तो अखिलेश यादव की पार्टी तो तीसरे नंबर पर थी। बसपा ने उनसे ज्यादा सीटें जीती थी सच्चाई तो यही है कि सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों एक साथ भी मिल जाए तब भी इस बार भाजपा के मिशन 80 को नहीं रोक पाएंगे।