Monday, July 8, 2024
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मूकबधिर की मां बनी ढाल, ओलपिंक में किया कमाल, जानिए मां-मूकबधिर के संघर्षों की कहानी?

आज मातृ दिवस पूरा देश मना रहा है। सोशल साइट पर बधाइयों की धूम है। ऐसे में हम आपको गोरखपुर की मां के संघर्ष, मेहनत व लगन से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसने लाख कठिनाइयों के बाद मूकबधिर बेटी आदित्या को कमजोर नहीं बनने दिया बल्कि उसकी ढाल बन गई। इसकी नतीजा यह है कि बेटी ने उनके सपनों का साकार कर पूरी दुनिया में डंका बजा दिया। आदित्या ने ओलपिंक में गोल्ड मेडल लाकर मां को इस जहां सबसे खूबसूरत तोहफा दिया है।

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इंडिया न्यूज, गोरखपुर :

गोरखपुर के शाहपुर इलाके के बिछिया कॉलोनी के रहने वाले दिग्विजय यादव और अंकुर यादव की बेटी आदित्या जन्म के बाद सुन-बोल नहीं सकती थी। इस हाल में उसकी परवरिश कर उसे अपने पैरौं पर खड़े होने लायक बनाना परिवार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। मां ने बेटी का इशारा समझ उसे कमजोर नहीं बनने दिया बल्कि उसकी राह आसान कर दी।

बेटी को घर पर दी बेसिक शिक्षा

Mother's Day Special

उसके दिल की हर बात को इशारों में समझा और उसे उसके ही ढंग से इशारों से समझाकर उसकी हर मुश्किल आसान की थी। पहले खुद मूकबधिर इशारों को समझना शुरू किया और फिर इशारों से ही बेटी को बेसिक शिक्षा देकर घर पर ही पढ़ाया। आज उस बेटी ने भारत की झोली में गोल्ड डालकर पूरे देश में अपना नाम रोशन कर दिया है। जीत के बाद आदित्या ने सबसे पहले मुझे थैंक्यू कहा। यह देखकर मेरी आंखें नम हो गईं।

स्कूल न जाने पर रोती थी आदित्या

मां अंकुर ने बताया कि जब उसकी बहन पल्लवी और भाई अविरल स्कूल जाते थे, तब वो बहुत रोती थी। उदास होकर अकेले बैठ जाती थी। मां अंकुर यादव भी उसको रोता हुआ देख उसके लिए कुछ नहीं कर सकती थी। आदित्या स्पेशल चाइल्ड थी, वो भाई बहन के साथ स्कूल में पढ़ नहीं सकती थी। उसका मूक-बधिर स्कूल में ही एडमिशन हो सकता था। मां ने उसके साथ बैठकर उसे हंसाना शुरू किया।

हम लोग यह सोचकर रोते थे कि इस बच्ची का क्या होगा? आस-पास के बच्चे भी उसे चिढ़ाते थे। बाद में उसका टैलेंट देखकर सामान्य स्कूल ने उसे एडमिशन दिया। अब वह आठवीं कक्षा में रेलवे के स्कूल में पढ़ती है।

इशारे बने संवाद का जरिया

आदित्या की मां अंकुर बताती हैं कि जन्म के दो साल बाद उन्हें पता चला था कि आदित्या सुन-बोल नहीं सकती है। तब मैंने खुद को आदित्या के रंग में ढाला। आदित्या को कब किस चीज की जरूरत है, उसके इशारे समझने लगीं। घर पर ही उसे स्कूली शिक्षा देने के साथ ही उसे सशक्त बनाया। पढ़ाई से लेकर स्पोर्ट्स तक में उसके साथ जुट गई।

पिता है बैडमिंटन के कोच

हम सामान्य परिवार से है। पति दिग्विजय यादव गोरखपुर में रेलवे कर्मचारी हैं। वह खुद भी बैडमिंटन के कोच हैं। ऐसे में उन्होंने बेटी को बैडमिंटन की ट्रेनिंग देनी शुरू की। पिता कोर्ट में और मां घर पर उसे खेल की बारीकियां इशारे में समझातीं। महज 4 साल की उम्र में ही आदित्या बैडमिंटन के वो शॉट लगाने लगी, जोकि बड़े-बड़े खिलाड़ी भी लगाने में सोचते हैं।

10 साल की उम्र में जीता वर्ल्ड चैंपियनशिप

आदित्या ने 10 साल की उम्र में चाइना में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में अपने टैलेंट का लोहा मनवाया था। वह जब दिल्ली में एक टूनार्मेंट में खेल रही थीं, तब बैंडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू भी उनका गेम देखकर दंग रह गईं थीं। पीवी सिंधू ने उनसे बात करके कहा कि आदित्या का गेम अच्छा है, इसे आगे ले जाइए। कोई दिक्कत हो तो हमें बताइएगा। पीवी सिंधू ने आदित्या को कई अच्छे टिप्स भी दिए थे।

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आदित्या को बेहद पसंद है खीर

आदित्या को खीर, पूडी और पराठा बहुत पंसद है। वह जब भी नाराज होती थी, तब मैं उसके लिए खीर बनाती थी, जिसे खाकर फौरन आदित्या खुश हो जाती। आदित्या को और बच्चों से अलग रहने की बात सोचकर मैं बहुत परेशान रहती थी। मैं ही उस समय उसकी सबसे अच्छी दोस्त भी थी। इशारे से जब वो कुछ बताती थी, तब उसे मैं समझाकर शांत कर देती थी। ब्राजील में जीत के बाद आदित्या ने वीडियो कॉल कर इशारे से बोला कि यहां पर उसे पूड़ी, पराठा नहीं मिल रहा है। फिर मैंने उसे समझाया कि वो जब घर आएगी तो उसके लिए खीर, पूड़ी और पराठा पहले से बनाकर रखूंगी।

गोरखपुर में स्पेशल बच्चों के लिए बना स्कूल

पिछले दो साल से आदित्या ने कोई संडे नहीं मनाया। कोरोना काल में भी घर में दीवार पर प्रैक्टिस करती थीं। उस दौरान फिटनेस पर पूरा ध्यान दिया। मां और आदित्या जिन परेशानियों से गुजरी हूं, उससे कोई और परेशान न हो। इसके लिए गोरखपुर में स्पेशल बच्चों के लिए एक स्कूल सरकार को बनाना चाहिए।

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Ajay Dubey
Ajay Dubey
India News Senior Sub Editor. Danik jagran & Amarujala as a City & Crime Reporter 15 Years.
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