इंडिया न्यूज यूपी/यूके, लखनऊ: केजीएमयू में इलाज कराने आने वाले लोगों के लिए एक अच्छी खबर सामने आई है। फेफड़े के कैंसर सहित छाती से जुड़ी बीमारियों की सर्जरी अब प्रदेश में आसानी से हो सकेगी। नसों से जुड़ी बीमारियों के मरीजों को भी लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पैरों की नसों में गुच्छे से सैन्य व सुरक्षा से जुड़ी नौकरियों में नहीं जा पाने वाले युवाओं का सपना भी साकार होगा। इन सभी विकारों के इलाज के लिए लखनऊ के केजीएमयू में थोरेसिक और वस्कुलर सर्जरी का अलग विभाग खुल रहा है। सीएम योगी आज यानी गुरुवार को इसका लोकार्पण किया।
केजीएमयू लगातार आगे बढ़ रहा है: सीएम
सीएम योगी ने कहा कि केजीएमयू की उन्नति से समाज आगे बढ़ेगा। चिकित्सा की उन्नति होती रहनी चाहिए। केजीएमयू हमेशा आगे बढ़ रहा है। हमें हमेशा नया करते रहना है। अस्पतालों में सुविधाएं लगातार बढ़ानी हैं। समय के अनुरूप चलना जरूरी है। मेडिकल साइंस लगातार आगे बढ़ रहा है। कैंसर और नसों के मरीजों का इलाज अब आसानी से हो सकेगा।
छाती से जुड़ी बीमारियों की सर्जरी हो सकेगी
फेफड़े के कैंसर सहित छाती से जुड़ी बीमारियों की सर्जरी अब प्रदेश में आसानी से हो सकेगी। नसों से जुड़ी बीमारियों के मरीजों को भी लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पैरों की नसों में गुच्छे से सैन्य व सुरक्षा से जुड़ी नौकरियों में नहीं जा पाने वाले युवाओं का सपना भी साकार होगा।
इन सभी विकारों के इलाज के लिए लखनऊ के केजीएमयू में थोरेसिक और वस्कुलर सर्जरी का अलग विभाग खुल रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बृहस्पतिवार को इसका लोकार्पण करेंगे। दावा है कि कॉर्डियक, थोरेसिक और वस्कुलर सर्जरी का अलग-अलग विभाग शुरू करने वाला यूपी पहला राज्य है।
एम्स, एसजीपीजीआई सहित देशभर के चिकित्सा संस्थानों में अभी तक कार्डियो, थोरेसिक एंड वस्कुलर (सीटीवीएस) विभाग हैं। यहां पूरा फोकस कार्डियक सर्जरी पर रहता है। फिर भी मरीजों की लंबी सूची होती है। इसी को देखते हुए केजीएमयू ने इन विभागों को अलग-अलग करने का फैसला लिया। अभी देश में सिर्फ चेस्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली और बंगलूरू में ही अलग से थोरेसिक सर्जरी विभाग है।
विभाग में ओपीडी व ऑपरेशन थियेटर
थोरेसिक सर्जरी के विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र सिंह यादव ने बताया कि विभाग की ओपीडी व ऑपरेशन थियेटर अलग हैं। यहां फेफड़े के कैंसर व उससे जुड़ी विभिन्न तरह की सर्जरी, एसोफेगास सर्जरी, चेस्ट वाल्व सहित हृदय के आसपास के अन्य अंगों का समुचित इलाज हो सकेगा। बताया कि फेफड़े के कैंसर की पहचान अंतिम स्टेज में हो पाती है। अलग विभाग होने से मरीज सीधे यहां पहुंचेगा और समय से इलाज शुरू होगा। विभाग में नए शोध होंगे। ज्यादा से ज्यादा विशेषज्ञ भी तैयार होंगे।
रक्त स्राव से मरीज की मौत में आएगी कमी
वस्कुलर सर्जरी के विभागाध्यक्ष प्रो. अंबरीश कुमार ने बताया कि यदि छह घंटे के अंदर नस कटने का इलाज शुरू हो जाता है तो उससे जुड़े अंग को बचाया जा सकेगा। रक्त स्राव से मरीज की मौत की दर कम होगी। गैंग्रीन, स्ट्रोक और कैरोटिड धमनी स्टेनोसिस, डीप ब्रेन थ्रोमोसिस, डायलिसिस रोगियों का इलाज भी तत्काल हो सकेगा। नसों की खराबी की वजह से कैंसर मरीजों का उपचार प्रभावित नहीं होगा।
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