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इंडिया न्यूज, लखनऊ (Uttar Pradesh) । बात सितंबर 2017 की है। अखिलेश यादव ने वंशवाद की राजनीति पर बोलते हुए कहा कि अगर उनकी पार्टी वंशवाद की राजनीति करती है तो उनकी पत्नी डिंपल यादव अगला चुनाव नहीं लड़ेंगी। लेकिन 2 साल बाद ही उन्होंने कन्नौज में डिंपल को टिकट दे दिया। हालांकि भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक से उन्हें हार मिली। अब एक बार फिर उन्हें मुलायम सिंह के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट से प्रत्याशी बनाया गया है।
अखिलेश के बयान से खबर की शुरुआत इसलिए हुई है कि यहां ये याद दिलाना आवश्यक है कि अखिलेश यादव 5 साल में दो बार अपनी ही बात से पलटे हैं। फिलहाल राजनीतिक गलियारे में बड़ा सवाल गूंज रहा है कि डिंपल को टिकट देने की जरूरत क्या थी? क्या कोई और दावेदार नहीं था? ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब आना बाकी है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मैनपुरी से डिंपल को टिकट देने के पीछे दो बड़े कारण हैं। एक परिवार को टूटने से बचाने की और दूसरा मुलायम की विरासत को संभालने की। अखिलेश ने डिंपल को मैदान में उतारकर मैनपुरी की जनता को बड़ा मैसेज भी दिया है। वह यह है कि मुलायम के बाद उनकी बहू डिंपल और वे खुद मैनपुरी के असली उत्तराधिकारी हैं।
अब विस्तार से समझिए वे दो बड़े कारण
विरासत की लड़ाई: चर्चा थी कि मैनपुरी में अखिलेश यादव तेज प्रताप यादव या धर्मेंद्र यादव को टिकट दे सकते हैं। यदि इनमें से किसी एक को टिकट मिलता तो मनमुटाव बढ़ सकता था। मैनपुरी मुलायम की राजनीति कर्मभूमि रही है। इसलिए अखिलेश मुलायम की पूरी राजनीतिक विरासत अपने पास रखना चाहते हैं।
शिवपाल का दांव फेल: बीते कई दिनों शिवपाल यादव बयान दे रहे थे कि सपा यदि उन्हें मैनपुरी से चुनाव लड़ाएगी तो वे जरूर लड़ेंगे। लेकिन डिंपल के आने से उनका दांव फेल हो गया है। अब वे गोलमोल जवाब दे रहे हैं। गुरुवार को मीडिया के एक सवाल के जवाब में शिवपाल यादव ने कहा कि पता नहीं आप लोग हमसे यह सवाल क्यों पूछ रहे हैं हमारी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी है। एसपी ने किसको टिकट दिया या नहीं दिया इसकी जानकारी आप लोगों से ही हो रही है। हमें तो पता ही नहीं है।
दो बार सांसद रही हैं डिंपल यादव
डिंपल यादव ने अपना राजनीतिक सफर 2009 में शुरू किया था। उन्होंने पहली बार फिरोजाबाद लोकसभा सीट उप चुनाव लड़ा था। यह सीट अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। यह चुनाव उन्होंने राज बब्बर के खिलाफ लड़ा था। जिसमें डिंपल को हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद जब 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो कन्नौज लोकसभा उपचुनाव में पति अखिलेश यादव ने उन्हें अपनी विरासत सौंपी।
डिंपल ने कनौज निर्वाचन क्षेत्र से निर्विरोध चुनाव जीता और पहली बार सांसद बनीं। उन्होंने किसी महिला के निर्विरोध सांसद बनने का रिकॉर्ड अपने नाम किया। 2014 में वे फिर से कन्नौज से सांसद चुनीं गईं, लेकिन 2019 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने वाले सुब्रत पाठक ने उन्हें 12 हजार से ज्यादा वोटों से उन्हें हरा दिया था।
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