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Mainpuri By Poll: जानिए कौन हैं रघुराज शाक्य, क्यों मुलायम-शिवपाल से जोड़ा जा रहा BJP कैंडिडेट का नाम

• LAST UPDATED : November 15, 2022

Mainpuri By Poll

इंडिया न्यूज, मैनपुरी (Uttar Pradesh) । सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट पर उपचुनाव होना है। 5 दिसंबर को यहां वोट डाले जाएंगे। सोमवार को भाजपा ने पूर्व सांसद रघुराज शाक्य को मैनपुरी से प्रत्याशी बनाया है। रघुराज शाक्य सपा प्रत्याशी डिंपल यादव को चुनौती देंगे। बता दें कि मैनपुरी सीट पर सबसे ज्यादा शाक्य मतदाता हैं। ऐसे में भाजपा पिछले दो चुनावों में शाक्य प्रत्याशी उतारती रही है। इस पर भी भाजपा ने पुराने फार्मूले को दोहराया है।

2012 में सपा के टिकट पर बने थे विधायक
रघुराज सिंह शाक्य वर्ष 2012 में सपा की टिकट इटावा विधानसभा सीट से विधायक बने थे। वह वर्ष 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में भी इटावा संसदीय सीट से सांसद रहे हैं। वर्ष 2009 के चुनाव में वह आगरा की फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से भी मैदान में उतरे थे, परंतु जीत हासिल नहीं कर पाए थे। बीते विधानसभा चुनावों से पहले वह भाजपा में शामिल हुए थे।

रघुराज शाक्य मूल रूप से जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले हैं और वहां उनका खासा प्रभाव भी माना जाता है। वह प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के भी करीबी रहे हैं। रघुराज शाक्य को प्रत्याशी चुने जाने के लिए जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में उनका प्रभाव सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। मैनपुरी लोकसभा सीट पर भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान इसी विधानसभा क्षेत्र से होता रहा है।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव 3.66 लाख मतों के अंतर से जीत थे। इनमें से 1.60 लाख वोटों की बढ़त अकेले जसवंतनगर विधानसभा सीट से मिली थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मुलायम सिंह यादव की जीत के अंतर को 94 हजार वोटों तक समेट दिया था, परंतु उसमें 62 हजार मतों की बढ़त अकेले जसवंतनगर की शामिल थी। भाजपा की रणनीति जसवंतनगर में से मिलने वाली सपा की बढ़त को रोकना और शाक्य व अन्य मतों को एकजुट कर जीत तक पहुंचने की है। माना जा रहा है कि रघुराज शाक्य के प्रत्याशी बनने से मुकाबला बहुत दिलचस्प होगा।

1996 से मैनपुरी सीट सपा के पास

  • वर्ष 1996 से लेकर बीते लोकसभा चुनाव तक यहां सपा को कोई चुनौती नहीं दे पाया। पांच बार तो खुद मुलायम सिंह सांसद रहे।
  • वर्ष 2014 और 2019 में जबर्दस्त मोदी लहर में भी भाजपा इस दुर्ग को भेद नहीं सकी थी। इसकी अहम वजह रही, यादव मतदाताओं की बहुलता था।
  • जातीय समीकरणों के लिहाज से देखें तो यादव वोटर अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
  • लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग के मतदाता करीब 45 फीसद बताए जाते हैं, इनमें यादव मतदाताओं की हिस्सेदारी करीब 25 फीसद तक है।
  • इनके बाद शाक्य मतदाताओं का नंबर आता है। सवर्णों की बात करें तो इनका कुल आंकड़ा 25 फीसद तक पहुंचता है, लगभग इतने ही दलित मतदाता हैं। अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या सबसे कम करीब पांच फीसद है।

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