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Mulayam Singh Yadav: लखनऊ में साइकिल चलाते नजर आते थे नेताजी, पारिवारिक कलह में टूटते चले गए धरतीपुत्र

• LAST UPDATED : October 11, 2022

Mulayam Singh Yadav

इंडिया न्यूज, सैफई (Uttar Pradesh) । (चंद्रकांत शुक्ला)

अखाड़े में पहलवानी करने वाले और फिर उसके बाद टीचिंग पेशे में आने वाले मुलायम सिंह ने जीवन में हर धूप छांव देखी हैं। कई दलों में रहे। कई बड़े नेताओं की शागिर्दी भी की, लेकिन उसके बाद अपना दल बनाया और यूपी पर एक दो बार नहीं बल्कि तीन बार राज किया। यूपी की पॉलिटिक्स जिन धर्म और जाति के मुकामों की प्रयोगशाला से गुजरी, उसके एक कर्ताधर्ता मुलायम भी थे। पुराने लोगों को अब भी याद है कि किस तरह लखनऊ में मुलायम 80 के दशक में साइकिल से सवारी करते भी नजर आ जाते थे।

साइकिल से बहुत घूमे। कई बार साइकल चलाते हुए अखबारों के आफिस और पत्रकारों के पास भी पहुंच जाया करते थे। तब उन्हें खांटी सादगी पसंद और जमीन से जुड़ा ऐसा नेता माना जाता था, जो लोहियावादी था, समाजवादी था, धर्मनिरपेक्षता की बातें करता था। हालांकि 80 के दशक में वह यादवों के नेता माने जाने लगे थे। किसान और गांव की बैकग्राउंड उन्हें किसानों से भी जोड़ रही थी।

कभी वंशवाद को कोसते थे, फिर उसी में उलझते चले गए

बहुत कम लोगों को याद होगा कि 80 के दशक तक अपने राजनीतिक आका चरण सिंह के साथ मिलकर वह इंदिरा गांधी को वंशवाद के लिए कोसने का कोई मौका छोड़ते भी नहीं थे। हालांकि बाद में धीरे धीरे वंशवाद को इतने लचीले होते गए कि खुद अपने बेटे और कुनबे को राजनीति में बडे़ पैमाने पर आगे बढ़ाने के लिए भी जाने गए। चौधरी चरण सिंह से वह तब क्षुब्ध हो गए थे। जबकि उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल में मुलायम सिंह के यादव के जबरदस्त असर और पकड़ के बाद भी अमेरिका से लौटे अपने बेटे अजित सिंह को पार्टी की कमान देनी शुरू कर दी।

बाद में चरण सिंह के निधन के बाद पार्टी टूटी और उसके एक धड़े की अगुवाई मुलायम सिंह करने लगे। 1992 में उन्होंने नई पार्टी बनाई, जिसे समाजवादी पार्टी के तौर पर जानते हैं, जिसका प्रतीक चिन्ह उन्होंने उसी साइकिल को बनाया, जिस पर कभी उन्होंने खूब सवारी की।

मुलायम से जुड़ी बड़ी बातें-

  • कुश्ती में दांव आजमाते थे मुलायम
  • पहलवानी के बाद बने शिक्षक
  • 15 साल की उम्र में आंदोलन में कूदे
  • बचपन में लोग कहते थे मुलायम पहलवान
  • सबसे पहले जीते छात्र संघ का चुनाव
  • लोहिया ने खुद जताई थी मुलायम से मिलने की इच्छा
  • इमरजेंसी में मलेपुरा गांव से हुई गिरफ्तारी
  • 19 महीने इटावा जेल में रहे मुलायम सिंह
  • महीखेड़ा गांव में मुलायम पर हुआ जानलेवा हमला
  • सियासत में मुलायम को मिला ‘नेताजी’ का नाम
  • 1989 में मुलायम ने की 2 लाख लोगों की रैली
  • करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाते थे मुलायम
  • 1967 में 28 साल की उम्र में बने विधायक
  • कांशीराम को साथ लेना बना मास्टर स्ट्रोक
  • लोगों की मदद करना मुलायम की आदत
  • विरोधियों को भी बना लेते थे अपना मुरीद

हवा को भांपकर अक्सर पलट जाते थे नेताजी

इसमें कोई शक नहीं कि वह जिस बैकग्राउंड से राजनीति में आए और मजबूत होते गए, उसमें उनकी सूझबूझ थी और हवा को भांपकर अक्सर पलट जाने की खूबी। राजनीति में कई सियासी दलों और नेताओं ने उन्हें गैरभरोसेमंद माना। लेकिन हकीकत ये है कि यूपी की राजनीति में वह जब तक सक्रिय रहे, तब तक किसी ना किसी रूप में जरूरी बने रहे। राजनीति के दांवपेंच उन्होंने 60 के दशक में राममनोहर लोहिया और चरण सिंह से सीखने शुरू किए। लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए। लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया और वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे। उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में जीतते रहे। विधानसभा तो कभी विधानपरिषद के सदस्य बनते रहे।

आपातकाल में मुलायम भी जेल में भेजे गए और चरण सिंह भी

उनकी पहली पार्टी अगर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी तो दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल। जिसमें वह 1968 में शामिल हुए। हालांकि चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया। ये मुलायम की सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी। मुलायम सिंह की पकड़ लगातार जमीनी तौर पर मजबूत हो रही थी। इमर्जेंसी के बाद देश में सियासत का माहौल भी बदल गया। आपातकाल में मुलायम भी जेल में भेजे गए और चरण सिंह भी। साथ में देश में विपक्षी राजनीति से जुड़ा हर छोटा बड़ा नेता गिरफ्तार हुआ।

नतीजा ये हुआ कि अलग थलग छिटकी रहने वाली पार्टियों ने इमर्जेंसी खत्म होने के बाद एक होकर कांग्रेस का मुकाबला करने का प्लान बनाया। इस तर्ज पर भारतीय लोकदल का विलय अब नई बनी जनता पार्टी में हो गया। मुलायम सिंह मंत्री बन गए। चरण सिंह की मृत्यु के बाद उन्होंने उनके बेटे अजित सिंह का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया। भारतीय लोकदल को तोड़ दिया। 1989 के चुनावों में जब एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी एकता परवान चढ़ रही थी तब विश्वनाथ सिंह कांग्रेस से बगावत करके बाहर निकले, तब फिर विपक्षी एकता में एक नए दल का गठन हुआ, वो था जनता दल। हालांकि इस दल में जितने नेता थे, उतने प्रधानमंत्री के दावेदार भी।

मुलायम को तब चंद्रशेखर का करीबी माना जाता था। वह उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की बात करते थे, लेकिन ऐन टाइम पर जब वह पलटे और विश्वनाथ प्रताप सिंह के पीएम बनाने पर सहमति जाहिर कर दी तो चंद्रशेखर गुस्से में भर उठे थे। वैसे उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा में वह कांग्रेस के साथ भी गए। कांग्रेस की मनमोहन सरकार को बचाया। वामपंथियों के पसंदीदा भी बने लेकिन दोनों ने अक्सर कहा कि वह मुलायम पर विश्वास नहीं करते।

जब तक सियासत में रहे तब तक जरूरी रहे

मुलायम सिंह यादव जब तक सियासत में रहे तब तक जरूरी रहे। अपने चरखा दांव से उन्होंने विरोधियों को चित किया। बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाईं तो कांग्रेस के लिए मजबूरी बने, लेकिन सियासत के गलियारों का ये सिकंदर पारिवारिक कलह में टूटता चला गया। कभी पुत्रमोह तो कभी भाई की तरफ खिंचाव, मुलायम अक्सर उहापोह में नजर आए। मुलायम के सामने ही भाई शिवपाल का अलग पार्टी बनाना, छोटी बहू अपर्णा का बीजेपी में चले जाना, ये वो घटनाएं थीं जिन्होंने समाजवादी वटवृक्ष की जड़ों को कमजोर किया।

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