India News(इंडिया न्यूज़), टिहरी “Tehri News” : उत्तराखंड में जहां भाजपा 30 मई से महाजनसंपर्क अभियान के जरिये लोकसभा चुनाव का आगाज करने जा रही है। तो वहीं कांग्रेस ने भी आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर कमर कस सी है। जिसको लेकर लगातार दोनों पार्टी अपने अपने तरीके से जनसंपर्क कर वोटरों को लुभाने की कोशिस कर रही है। लेकिन हम आज बात करेंगे कांग्रेस का गढ़ रही टिहरी लोकसभा सीट की।
कांग्रेस का गढ़ कही जानें वाली टिहरी लोकसभा सीट के लिए अब पार्टी प्रयत्न कर रही है। बता दें, कांग्रेस की आस अब वर्ष 2024 के आम चुनाव पर इस सीट के लिए टिकी हुई है। पार्टी से अब तक किसी भी नेता ने इस सीट के लिए अपनी दावेदारी पेश नहीं की है, लेकिन, कुछ वरिष्ठ नेताओं के नाम जरुर सामने आ रहे हैं।
उत्तराखंड में लोकसभा की टिहरी सीट के लिए चुनाव इस बार दिलचस्प होना तय है। राज्य की अन्य सीटों की तरह यहां भी मुख्य मुकाबला बीजेपी कांग्रेस के ही बीच है। टिहरी संसदीय सीट की बाजी दून जिले के वोटरों के हाथ में रहेगी। देहरादून के वोटरों का रुझान जिस तरफ होगा, उसका पलड़ा भारी होगा और उसे चुनाव जीतने में आसानी होगी। टिहरी संसदीय सीट में उत्तरकाशी, टिहरी और देहरादून जिले के 14 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। देहरादून जिले में पड़ने वाली दस विधानसभा क्षेत्रों में सात विधानसभा क्षेत्र टिहरी संसदीय क्षेत्र में आते हैं। शेष तीन विधानसभा क्षेत्र हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में आते हैं।
बता दें, राज्य गठन के बाद से वर्ष 2004 में हुए आम चुनाव पर बीजेपी से दावेदार रहे मानवेंद्र शाह ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। उनके निधन के बाद वर्ष 2007 में हुए उपचुनाव पर कांग्रेस ने इस सीट से बाजी मारी थी। कांग्रेस उम्मीदवार विजय बहुगुणा ने लंबे अर्से बाद कांग्रेस को यहां से जीत दिलाई। जिसके बाद वर्ष 2009 में हुए आम चुनाव पर कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा जीते।उन्होंने बीजेपी के जसपाल राणा को हराया। इसके बाद वर्ष 2012 के उपचुनाव में बीजेपी ने फिर इस सीट पर अपना कब्जा कर लिया। वहीं, महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह इस सीट से चुनाव जीतीं। 2012 से चल रहे सूखे को अब कांग्रेस वर्ष 2024 में खत्म करना चाहेगी, जिसके लिए उसे बड़े फलक पर बड़ी तैयारी के साथ मैदान में उतरना होगा।
2009 में यह सीट कांग्रेस ने जीती थी। वहीं बात अगर बीजेपी की करें तो 2014 में इसे ‘मोदी मैजिक’ के सहारे बीजेपी ने जीता। अगर मुद्दों का सवाल है तो बीजेपी की पूरी कोशिश मतदाताओं को राष्ट्रीयता के भावुक मुद्दे पर लाने की है। कांग्रेस अपने घोषणापत्र को लोगों के बीच रख उनका ध्यान इस पर खींचने का काम करती आई है। इसकी काट बीजेपी के स्टार प्रचारक अब इस घोषणापत्र को ढकोसला पत्र बताकर करते हैं। खुद प्रधानमंत्री ने देहरादून की रैली में घोषणापत्र पर सबसे ज्यादा हमला कर इसे ढकोसला बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अगर इस सीट के इतिहास में एक नजर डाले तो देश में पहली बार वर्ष 1952 में हुए आम चुनाव में इस सीट से राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की थी। इसके साथ ही वर्ष 1957 में पहली बार स्वतंत्र रूप से हुए चुनाव में यहां कांग्रेस के कमलेंदुमति शाह के बेटे मानवेंद्र शाह ने जीत दर्ज की। वर्ष 1962 और 1967 में कांग्रेस के मानवेंद्र शाह ने यहां से लगातार दो बार जीत दर्ज की। वर्ष 1962 के चुनाव कांग्रेस एक ऐसी पार्टी थी जिसने अकेले यहां से चुनाव लड़ा था। वर्ष 1971 में कांग्रेस द्वारा नए उम्मीदवार पर दांव खेला गया और परिपूर्णानंद पैन्यूली को यहां से मैदान में उतारा। उन्होंने भी अपनी पार्टी को निराश नहीं किया और इस सीट से जीत दिला दी। जहां उन्होंने इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार मानवेंद्र शाह को हराया था।
इसके साथ ही इस सीट पर बीजेपी की एंट्री हुई। वर्ष 1991 में टिहरी सीट का चुनावी गणित बदला, भाजपा ने पहली बार अपने पैर जमाए और इस सीट पर अपना खाता खोला। कांग्रेस का गढ़ बन चुकी टिहरी गढ़वाल सीट पर अब बीजेपी भी शामिल हो चुकी थी। जहां पर मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस प्रत्याशी बृह्मदत्त को हराया। इसके बाद वर्ष 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी मानवेंद्र शाह ने बीजेपी के टिकट से लगातार जीत दर्ज की और कांग्रेस लगातार हारती चली गई।
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