India News (इंडिया न्यूज़), Chandramani Shukla, UP Politics: Lucknow! विपक्षी दलों के I.N.D.I.A. गठबंधन की एकजुटता को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। कुछ दिन पहले गठबंधन की ओर से सीटों के बंटवारे को लेकर समन्वय समिति की बैठक जरुर की गई लेकिन देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश में घोसी उपचुनाव के बाद सपा और कांग्रेस के बीच कुछ तल्खी नजर आ रही है। जिसका कारण उत्तराखंड की बागेश्वर सेट को भी माना जा रहा है। वहीं दूसरी ओर इसे दबाव की राजनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश की घोसी सीट और उत्तराखंड की बागेश्वर सीट के नतीजे 8 सितंबर को आए। जहां घोसी सीट पर समाजवादी पार्टी की जीत हुई तो बागेश्वर सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की। अगर घोसी विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पर मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच था। इस वजह से यहां पर कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी नहीं उतरा साथ ही समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन देने के लिए एक पत्र भी जारी किया।
वहीं उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच था लेकिन यहां पर समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी मैदान में था। अब इसको लेकर दोनों तरफ से बयानबाजी जारी है। कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने जहां उत्तराखंड में कांग्रेस की हार का करण समाजवादी पार्टी को बताया तो सपा की ओर से यह जवाब सुनने को मिला कि उत्तराखंड में कांग्रेस ने उनसे मदद ही नहीं मांगी जबकि यूपी में सपा की ओर से पत्र लिखकर कांग्रेस से मदद मांगी गई थी।
अब जब यूपी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और समाजवादी पार्टी के बीच में बयानबाजी देखने को मिल रही है तो इसके कई कारण निकाले जा रहे हैं। उपचुनाव को लेकर जो यह आपसी बयान बाजी देखी जा रही है उसे यहीं तक सीमित करके नहीं समझा जा सकता, ऐसा राजनीतिक जानकारों का मानना है। यूपी और उत्तराखंड के उपचुनाव के पहले और बाद में भी ऐसा देखा गया था कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों तरफ से सामंजस्य बैठने की बातें हो रही थी। यहां तक की समन्वय समिति की बैठक के बाद भी इस तरह की चर्चा नहीं देखने को मिली लेकिन अचानक से ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने समाजवादी पार्टी को लेकर बयान देकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी।
अब इसको लेकर अंदरखाने से ऐसी खबरें आ रही है कि कांग्रेस की तरफ से इस तरह के बयान बाजी के पीछे का एक कारण मध्य प्रदेश में होने वाला विधानसभा का चुनाव भी है क्योंकि यहां को लेकर ऐसा बताया जा रहा है कि अखिलेश यादव की तरफ से समाजवादी पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव में भी आधा दर्जन सीटें मांगी गई हैं।
यूपी में समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लोकसभा का चुनाव लड़ने की आस लगाए कांग्रेस पार्टी के लिए इसी साल नवंबर दिसंबर में मध्य प्रदेश में प्रस्तावित विधानसभा का चुनाव गठबंधन धर्म निभाने की एक परीक्षा हो सकता है। समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश के चुनाव को लेकर पिछले साल से तैयारियों पर जोर दे रही है। जहां इसी साल अप्रैल के महीने में डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मुहू में आयोजित जनसभा में भाग लिया था। उसके बाद भी ऐसा देखा गया कि अखिलेश यादव ने एमपी के नेताओं के साथ चुनावी रणनीति को लेकर बैठक भी की थी।
जिस तरह से समाजवादी पार्टी की ओर से मध्य प्रदेश को लेकर सक्रियता देखी जा रही है उससे यह तो स्पष्ट है कि अखिलेश यादव मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की मौजूदगी जरूर दर्ज कराएंगे। मध्य प्रदेश के अगर सियासी स्थिति को देखें तो वहां पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में है। ऐसे में अगर सपा बीच में दखल देती है तो नुकसान कांग्रेस का ही होगा। इसी को समझते हुए कांग्रेस यह कतई नहीं चाहेगी कि गठबंधन में होने के बावजूद यहां पर उसे सपा से नुकसान हो।
राजनीतिक जानकारों का ऐसा मानना है कि सपा की तरफ से मध्य प्रदेश में जो सक्रियता दिखाई जा रही है उसके पीछे का कारण भी लोकसभा का चुनाव ही है। क्योंकि यूपी में समाजवादी पार्टी कांग्रेस को अधिक सीटें नहीं देना चाहती। इसी कारण वह पहले से ही अन्य प्रदेशों में जहां पर कांग्रेस अच्छी स्थिति में है वहां पर सीटें मांग कर गठबंधन धर्म की परीक्षा लेना चाहती है।
समाजवादी पार्टी इस तरह की रणनीति पर कम कर रही है कि अगर लोकसभा के चुनाव में उसे कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपने प्रभाव वाली सीटें देनी भी पड़े तो उसकी भरपाई अन्य प्रदेशों से कर ली जाए। जिसका दबाव सपा ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ही शुरू कर दिया है। यही कारण है कि अखिलेश यादव अपने बयानों में लगातार कहते आए हैं कि कांग्रेस को बड़ा दिल दिखाना चाहिए।
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