India News UP ( इंडिया न्यूज ), Varun Gandhi: पीलीभीत से टिकट कटने के बाद वरुण गांधी इस लोकसभा चुनाव में गुरुवार,23 मई को पहली बार सुल्तानपुर के चुनावी मैदान में नजर आएंगे। वरुण मां मेनका गांधी की सीट पर चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मोर्चा संभालते आ रहे हैं। जातीय समीकरण के गणित में उलझी सुलतानपुर सीट का मुकाबला अब दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। यह भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। वरूण गांधी गुरुवार को सुल्तानपुर में सुबह से लेकर शाम तक पांच विधानसभा क्षेत्रों में कुल 11 जनसभाएं करेंगे। इसके साथ ही रूठों को मनाने और यूथ को रिझाने की जिम्मेदारी भी वरूण के ऊपर है। इसके लिए बाकायदा प्लान तैयार किया गया है।
बीजेपी भी यह मानने लगी है कि यूथ वोटरों को अपने पाले में लाए बिना सुल्तानपुर सीट फतह करना मुश्किल है। भले ही मेनका गांधी सुल्तानपुर में सभी जातियों को साथ लेकर चलने पर काम कर रही हों। अपनी जनसभाओं और बैठकों में वह जातिगत राजनीति से लोगों को दूर रहने और विकास की ओर चलने को लेकर प्रेरित करती रही हो, पर इस बार जातीय गोलबंदी से चुनावी गणित बिगड़ रही है। वहीं बेरोजगारी, नौकरी और पेपर लीक जैसे मुद्दों को लेकर युवा वोटर भी मेनका गांधी से कटा हुआ है। उधर वरूण गांधी लगातार अपनी ही सरकार में युवाओं, बेरोजगारी, नौकरी जैसे मुद्दे को लेकर हमलावर रहें हैं। जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा है। ऐसे में अगर वरूण गांधी युवाओें को साधने में कामयाब होते हैं तो यह बड़ी उपलब्धि होगी। वह बीजेपी और मेनका गांधी के लिए तुरूप का इक्का साबित होगें।
23 मई को चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा और वरुण के पास एक दिन का ही समय है। वरुण गांधी बेहद ही कम समय में बीजेपी और मां मेनका गांधी की उम्मीदों पर कितना खरा उतर उतरेंगे, यह तो चुनावी नतीजे बताएंगे। अब देखना होगा कि सुल्तानपुर के लिए तैयार किया गया उनका यह नारा “सबसे नाता-सबसे प्यार, मां मेनका-फिर एक बार” मतदाताओं पर कितना असर डाल पाएगा? वरुण जातीय गणित साधने में भी अपनी टीम के सहारे जुटे हुए हैं।
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दरअसल, सुल्तानपुर लोकसभा सीट जातीय गणित में हमेशा से ही उलझी रही है। यहां जातियों की अपनी अलग ही केमेस्ट्री है। यहां पर दलित और ब्राह्मण अधिक हैं, लेकिन यहां गैर-यादव पिछड़ी जातियां भी परिणाम प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाती हैं। इस सीट पर गैर-यादव ओबीसी जातियों में निषाद और कुर्मी 2014 से ही भाजपा के साथ रही हैं। ये जातियों 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार मेनका गांधी के लिए जीत में काफी कारगर साबित हुईं। जबकि समाजवादी पार्टी ने यहां से निषाद प्रत्याशी के रूप में पूर्व मंत्री राम भुआल निषाद को इस बार मैदान में उतारा है। वहीं दूसरी ओर बसपा ने कुर्मी समाज से उदराज वर्मा को मैदान में उतार कर भाजपा के समीकरण को चुनौती दी है। अभी तक निषाद समुदाय का बड़ा हिस्सा सपा उम्मीदवार राम भुआल के साथ जाता दिख रहा है।
पिछली बार मेनका गांधी को महज 14 हजार के मामूली जीत के अंतर पर रोकने वाले चन्द्रभद्र सिंह सोनू मंगलवार को सपा का दामन थाम चुके हैं, उनका इसौली और सुल्तानपुर क्षेत्र में अपना कोर वोट है, कयास लग रहे हैं कि इसौली और सुल्तानपुर विधानसभाओं में ठाकुर मतदाताओं का झुकाव अंतिम समय में इंडिया गठबंधन की तरफ जा सकता है। भाजपा को उम्मीद है कि जन कल्याणकारी योजनाओं से जो एक लाभार्थी वर्ग तैयार हुआ, वह जातियों से अलग भाजपा के साथ दिख रहा है।
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