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Gyanvapi masjid: स्वामी प्रसाद मौर्या का बयान, ज्ञानवापी मस्जिद है इसलिए ज्ञानव्यापि का मामला उच्च न्यायालय में है

• LAST UPDATED : July 31, 2023

India News (इंडिया न्यूज़), Lucknow News, Gyanvapi masjid: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को न्यापालिका के सम्मान मैं इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए। मैं चुनाव को लेकर कोई बात नहीं करता जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता। जब तक वह ज्ञानवापी मस्जिद है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। जब तक उच्च न्यायालय का निर्णय नहीं आ जाता, तब तक कोई भी सकारात्मक या नकारात्मक बयान नहीं दिया जा सकता। जब तक निर्णय नहीं आता है तब तक वह ज्ञानवापी मस्जिद ही है।

ज्ञानवापी मस्जिद है इसलिए ज्ञानव्यापि का मामला उच्च न्यायालय में है अगर ज्ञानवापी मंदिर होता तो न्यायालय में यह प्रकरण जाता ही नहीं। विवाद की शुरुआत यहीं से हुई है कि वह ज्ञानवापी मस्जिद है पांच वक्त की अभी भी उसमें नमाज पढ़ी जाती है और जब तक उच्च न्यायालय का  निर्णय नहीं आ जाता तब तक वह ज्ञानवापी मस्जिद है इसको कोई इनकार नहीं कर सकता। मुख्यमंत्री उच्च न्यायालय से बड़े नहीं है।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने बयान दिया

बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर का भी सर्वे होना चाहिए स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने इस बयान को लेकर कहा मैं चुनाव संबंधी कोई बयान नहीं देता। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी उच्च न्यायालय के मामले में दखल नहीं देते मुख्यमंत्री को इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए पूरा निर्णय उच्च न्यायालय पर छोड़ देना चाहिए। चुनावी मुद्दे वह है कि जहां पर कोई भी ध्यान नहीं देता है। बेरोजगारी महंगाई जीएसटी चुनावी मुद्दे हैं। डबल इंजन के सरकार ने सभी बंदरगाह सभी एयरपोर्ट भेज दिया भारतीय जनता पार्टी ने जो एक-एक बात किया उनको जनता के बीच में उजागर करूंगा। जैन सरकारी विभागों प्रतिष्ठानों में नौजवानों को रोजगार मिलने की उम्मीद थी भाजपा सरकार ने उनका कत्लेआम कर दिया है।

राष्ट्रपति को मंदिर में जाने से रोका

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को भी जगन्नाथ मंदिर में रोकने का काम किया गया आदिवासी दलित और पिछड़ों का अपमान किया गया। धर्म के ठेकेदारों को आदिवासी दलितों का अपमान दिखाई नहीं पड़ रहा है। इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी मंदिर में नहीं जाने दिया गया था। भारतीय जनता पार्टी में समय-समय पर दलित और पिछड़ों को अपमानित किया है। एक वर्ग के लिए हिंदू धर्म बनाया गया है। अगर यह आदिवासी और दलितों का धर्म होता तो शायद मंदिर में जाने से राष्ट्रपति को न रोका गया था

अखिलेश यादव ने जब 5 कालिदास मार्ग छोड़ा तो उस वक्त गंगाजल और गोमूत्र से धोया गया

इस दुनिया में भारत की पहचान बौद्ध दर्शन से और बुध से है। अगर हिंदू और बौद्ध एक होते तो बौद्ध मठ तोड़े नही जाते
अन्य दर्जनों मंदिरों के विषय में हमें बातें कहीं हैं अगर हिंदू और बौद्ध एक है तो बौद्ध धर्म स्थलों को तोड़कर मंदिर क्यों बनाए गए हैं। अगर नेशन प्रथम है तो 15 अगस्त 1947 जब भारत आजाद हुआ था तो उस वक्त के सभी धार्मिक स्थलों को यथावत स्वीकार करना चाहिए।

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