India News (इंडिया न्यूज़), Landslide In Joshimath: सीबीआरआई रुड़की की रिपोर्ट ने इस बात को साबित कर दिया है कि जोशीमठ में सैकड़ों भवनों में आईं दरारों के पीछे मूल कारण जमीन का धंसना था। यही नहीं जोशीमठ में जिस जगह जमीनों में लंबी व गहरी दरारें आई हैं, वहीं ज्यादातर कमजोर इमारतें बनाई गई थीं। यही नहीं भूमि धंसने के बाद जोशीमठ की पहाड़ियों पर संवेदनशीलता और भी बढ़ गई है। अतिसंवेदनशील भवनों में दरारों की चौड़ाई 5 मिलीमीटर से अधिक थी। जबकि मध्यम रूप से संवेदनशील भवनों में आई दरारें 2 से 5 मिलीमीटर तक चौड़ी थीं।
सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जो बताते हैं कि जनवरी में भूधंसाव के दौरान 300 मिलीमीटर तक चौड़ाई और 3-4 मीटर गहराई की करीब 40 दरारें आई हैं। नुकसान इन्हीं दरारों के आसपास बने भवनों को हुआ है। सीबीआरआई के वैज्ञानिक डॉ. अजय चौरसिया का कहना है कि रिपोर्ट में प्रत्येक तथ्य को बारीकी से अध्ययन में शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट के आधार पर उपाय किए जाने जरूरी हैं।
सबसे जरूरी है जोशीमठ की पहाड़ी में इमारतों की मैपिंग, खतरनाक क्षेत्रों के आकलन और उनके कारणों की पहचान करना, हिमालयी क्षेत्र में निर्माण कार्यों का मैनुअल तैयार करना और सख्ती से पालन कराना, पहाड़ों पर भूवैज्ञानिक आधार पर सुरक्षित भूमि का मानचित्र तैयार करना, पूर्व चेतावनी प्रणाली के जरिए सतत निगरानी और आपदा का पूर्वानुमान जारी करना आदि। उन्होंने कहा कि भविष्य के खतरे और चुनौतियों को देखते हुए सभी वैज्ञानिक पहलुओं पर काम जरूरी है।
वैज्ञानिक डॉ.अजय चौरसिया के अनुसार जोशीमठ हिमालय में 890 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर उत्तरी ऊपरी-मध्य ढलान पर मे सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) पर स्थित है। जोशीमठ में उत्तर की ओर झुकने वाली चट्टानों के चलते ढलान बना है। पुराने भूस्खलन मोटे दाने वाले मलबे की सामग्री के जमा होने से बनी विशाल चट्टानें और उस पर निर्माण कार्यों का भारी दबाव भवनों में दरार का बड़ा कारण है। इसके अलावा समय-समय पर पानी की सही निकासी नहीं होने और हिमनदी के कटाव के कारण पुराने भूस्खलन फिर से सक्रिय हो गए। जो स्थिति को और भी खतरनाक बना रहे हैं।