India News (इंडिया न्यूज़) Lucknow News Martand Singh Lucknow : उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय ज्ञानवापी का मुद्दा गर्म है। योगी आदित्यनाथ ने जब एक एजेंसी को बयान दिया तो सियासी गलियारों में हंगामा मच गया। समजवादी पार्टी की तरफ से तुरंत प्रतिक्रिया आई।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने साफ कहा कि मामला कोर्ट में है तो मुख्यमंत्री को ऐसा बयान नही देना चाहिए। उसके बाद विरोध कि कमान सपा मुखिया ने खुद संभाल ली। सीएम योगी ने अपने बयान में कहा था कि ज्ञानवापी को मस्जिद कहोगे तो विवाद बना रहेगा।
सीएम योगी ने इस बयान से हिंदुत्व का सख्त रुख अपनाने की कोशिश की है और उनका संदेश राजनीतिक गलियारों तक भी पहुंच गया है। जिसके केंद्र में बीजेपी की राजनीति की हिंदुत्व रेखा नजर आ रही है।
वहीं इस मामले पर सीएम को घेरते हुए अखिलेश यादव ने पहले ट्वीट मेंजातिवाद का तीर छोड़ा। अखिलेश ने ट्वीट किया, ”मुख्यमंत्री आवास की दीवारें चिल्ला रही हैं, हमें गंगा जल से क्यों धोया गया?” ज्ञात हो कि जब योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने तो अपने सरकारी आवास पांच कालिदास मार्ग को पूजा, पाठ और हवन के बाद गंगाजल से धुलवाया था। इसके बाद अखिलेश कई बार सीएम को घेरने की कोशिश इस घटनाक्रम को याद दिलाते हुए कर चुके हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव के पहले भी योगी आदित्यनाथ ने एक बयान दिया था, जिसके बाद खूब हंगामा मचा था और बीजेपी पर वोटों के ध्रुवीकरण का आरोप भी लगा था। योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी की जीत के लिए 80-20 के फार्मूला का जिक्र किया, बाद में उन्होंने अपने इस बयान पर सफाई देने की कोशिश कि लेकिन तबतक सत्ता की गलियारों में इसकी 80 फीसदी हिंदू और 20 फीसदी मुस्लिम आबादी का संदेश जा चुका था।
जिसका फायदा भी बीजेपी को खूब मिला। जब विधनसभा चुनाव के नतीजो से पता चला कि पार्टी को 2017 के मुकाबले ज्यादा हिन्दू वोट मिले और पार्टी पर हिंदुत्ववादी छवी को मुखर लग गई। अब एक बार फिर देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। ऐसे में तमाम रणनीतियां बनाई जा रही हैं।
बीजेपी छोटी-छोटी पार्टियों की क्षेत्रीय हैसियत के आधार पर उनसे गठबंधन कर रही है। इस बीच बीजेपी की हिंदुत्व वाली इमेज कहीं छिप सी रही थी। सीएम योगी ने अपने बयान से उस इमेज को और मजबूती से फिर से सामने ला दिया है।
उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। बीजेपी हमेशा से जातीय समीकरण के साथ साथ खुद के हिन्दुत्ववादी छवि पर भी फोकस करती रही है।। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की बात करें तो साल 2017 में पार्टी को कुल हिंदू वोटों का 47 फीसदी वोट मिला था।
फिर चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ को सीएम चुना गया। उस कार्यकाल में योगी लगातर हिन्दू धामिर्क केंद्रों के उत्थान की बात करते रहे तथा अयोध्या, काशी,मथुरा को संवारने के भी काम किया।वही 2022 में बीजेपी ने पहले ही सीएम योगी का चेहरा आगे कर दिया था। 2022 में पार्टी को 54 फीसदी हिंदू वोट मिले, यानी आधे से ज्यादा हिंदू वोट बीजेपी के खाते में गए।
यही कारण है कि भाजपा अपनी मूल विचारधारा से हटना नहीं चाहती जिसके कारण वह आज भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गयी है। दूसरी तरफ अगर समाजवादी पार्टी की बात करें तो इसका बेस वोट बैंक ओबिसी खासतौर पर यादव व मुस्लिम समुदाय है। हालांकि, हिंदुत्व के खिलाफ मुखर होकर वह दूसरे दलों से छिटककर आ रहे हिंदू वोटरों को खोना नहीं चाहतीं।
इसमें जाति का मेल होने से उसका हिंदू वोट बैंक भी बढ़ता है। 2022 के चुनाव में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा वोट एसपी को मिले। इस चुनाव समाजवादी पार्टी को हिंदू वोट 2017 के मुकाबले ज्यादा वोट मिले यानी कि 26 फीसदी हिंदुओं ने सपा को वोट दिया था।
इसी को ध्यान में रखते हुए समाजवादी पार्टी के थिंक टैंक का मानना है कि बीजेपी के हिंदुत्व का मुकाबला जातियों के समीकरण से ही साधा जा सकता है। इसलिए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पीडीए का नारा दिया है यानी कि पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को अपनी आगामी राजनीति की रणनीति बनाया है।
कास्ट पॉलिटिक्स के अलावा अखिलेश मुस्लिम वोटर्स को भी नाराज नहीं करना चाहते। इसकी वजह है पिछले चुनावों में मिले मुस्लिम वोट। 2022 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को दो तिहाई से ज्यादा यानी 79 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे।
बीएसपी और अन्य दलों से छिटकने वाले मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के खेमे में गए।ऐसे में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले बीजेपी की कोशिश जातिवाद को लेकर बिखरे लोगों को हिंदुत्व के छाते के नीचे लाकर अपने पाले में करने की है। वहीं अखिलेश यादव अभी भी जातियों के क्षेत्रीय समीकरण की हकीकत में यकीन करते दिखाई दे रहे हैं।
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