(41 accused acquitted in Maliana riots in 1987): आज यूपी (UP) के मेरठ (Meerut) के मलियाना (Maliana) में 1987 में हुए दंगे का फैसला आया है। लंबी सुनवाई के बाद 41 आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया है।
दरअसल ’23/05/1987′ में मेरठ के मलियाना में दंगा हुआ था। जिसमें 93 लोगों को आरोपी बनाया गया था। लेकिन इसमें 4 लोग ऐसे थे जो पहले ही मर चुके थे और उनका नाम आरोपियों की लिस्ट में डाला गया था और एक नाम ऐसा था कि जो दो बार लिखा गया था और उस आधार पर 88 लोगों को खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था।
इस मामले में एडीजीसी क्रिमिनल सचिन मोहन ने बताया कि इस मामले में 61 गवाह बनाए गए थे। जिसमें से कुल 14 गवाह न्यायालय में पेश हुए और 30 गवाहों की मौत हो चुकी थी। बाकी गवाह जो बनाए गए थे वह मिले ही नही थे। 88 आरोपियों में से न्यायालय ने 41 को बरी कर दिया है।
क्योंकि उनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं पेश हो पाए हैं और साथ ही जो गवाह बनाए गए थे उन्होंने आरोपियों को पहचानने से इंकार कर दिया था। बाकी इनमें से 9 से 10 लोगों को भगोड़ा घोषित किया गया है। जो अब तक न्यायालय में पेश नहीं हुए हैं। साथ ही बाकी लोगों की जो बचे हैं उनकी मौत हो चुकी है।
बता दे, वर्ष 1987 में मलयाना दंगे में कुल 68 लोगों के मरने की जानकारी मिली थी लेकिन न्यायालय में सिर्फ 42 लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट जमा हुई थी। सचिन मोहन ने बताया कि सलीम नाम के शख्स ने यह कहा कि उस समय में तत्कालीन एसओ ने उनको थाने बुलाकर वोटर लिस्ट से नाम लिखवाए थे। इसमें पुलिस की रिपोर्ट लिखने में भी लापरवाही हुई है। इस घटना में किसी से हथियार की भी बरामदगी नहीं हो पाई थी।
इस मामले में आज अदालत ने 41 लोगों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। वही जो लोग अदालत नहीं पहुंचे हैं। उनके खिलाफ अभी मामला जारी रहेगा। वर्ष 1987 में हुए दंगे में लगभग 68 लोग मारे गए थे।
जिसमें 93 लोगों को आरोपी बनाया गया था लेकिन 4 सीट 88 लोगों खिलाफ दी गई थी। क्योंकि आरोपियों में से चार पहले ही मरे हुए लोगों के नाम लिखे गए थे और एक नाम दो दफा लिखा गया था। वहीं आरोपियों के पास से कोई असलाह या कोई ऐसी चीज बरामद नहीं हो सकी जिनसे उन्हें आरोपी सिद्ध किया जा सके।
Meerut: याकूब सिद्दीकी ने दी जानकारी
इस मामले में FIR कराने वाले और मुकदमा लड़ने वाले याकूब सिद्दीकी का कहना है कि उन्हें न्याय नहीं मिला है । वह इसके लिए अपील और आगे का रास्ता भी अख्तियार करेंगे।
अगर यह कहा जा रहा है कि किसी का कोई कसूर नहीं सब को बरी कर दिया गया फिर इन सब को मारा किसने जब किसी ने मारा ही नहीं तो उस समय हमें ₹20000 का मुआवजा क्यों दिया गया। घर क्यों बनवाए गए और क्यों मिलिट्री लगाई गई थी या क्यों 36 साल मुकदमा चला।
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