India News(इंडिया न्यूज़), देहरादून “Pramod Rawat” : मुख्यमंत्री सुरक्षा में तैनात 40वी वाहिनी कमांडो कॉन्स्टेबल प्रमोद रावत ने सीएम कार्यालय और आवास के बीच बने बैरक में खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। जिसके बाद से उनकी मौत को लेकर काफी सवाल खड़े हो रहे हैं। प्रमोद रावत के परिवार वालों ने प्रमोद की संदिग्ध हालत में हुई मौत पर सवाल खड़े किए हैं और मौत के कारणों का पता लगाने के लिए जांच की मांग की है।
सीएम पुष्कर सिंह धामी की सुरक्षा में तैनात पौड़ी निवासी जवान प्रमोद रावत की मौत के बाद से लगातार सवाल कम होने का नाम नहीं ले रहे। उनके गांव और आस पास के क्षेत्र में शोक की लहर है। कमांडो प्रमोद रावत मूल रुप से कल्जीखाल ब्लाक के अगरोड़ा गांव के रहने वाले थे। प्रमोद रावत परिवार सदस्य में हेमंत ने प्रमोद की संदिग्ध हालत में हुई मौत पर सवाल खड़े किए हैं और मौत के कारणों का पता लगाने के लिए जांच की मांग की है। हेमंत ने बताया की प्रमोद की मौत को जिस प्रकार से आत्महत्या करार दिया जा रहा है उसकी वे घोर निन्दा करते हैं।
हेमंत ने बताया की कमांडो प्रमोद रावत ने मौत से पहले अपने परिजनों से दिन में तीन बार फोन कॉल से बातचीत की और बातचीत से भी वे किसी तरह के मानसिक तनाव में हो ऐसा प्रतीत नहीं हुआ। अंतिम बार उन्होंने अपनी पत्नी से बात की जो कुछ रोज पहले ही अपने गांव अपने बालक के साथ गांव पहुंची थी। इस बातचीत में भी प्रमोद ने सामान्य बात ही की और सीएम के दौरे का जिक्र किया। जहां उन्होंने कहा कि सीएम की सुरक्षा में जाना था। परिजनों का मानना है की प्रमोद आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठा सकते। इसीलिए प्रमोद की मौत के कारणों की जांच होनी चाहिए।
प्रमोद के गांव में उनकी माता और पिता ही रहते हैं। पिता मातबर सिंह सेना से सेवानिवृत्त हैं, साथ ही उनकी अगरोड़ा बाजार में कपड़े की दुकान है। प्रमोद की 4 बहने हैं। हेमंत ने बताया कि कुछ महीने पहले ही प्रमोद गांव आया था, जिसके बाद वह बच्चों को पढ़ाने के लिए देहरादून ले गया। प्रमोद के घर पर इसी माह की 25 जून से श्री भागवत कथा आयोजित की जानी थी। घटना की सूचना मिलने पर प्रमोद के पिता मातबर सिंह, ग्राम प्रधान सहित कुछ अन्य ग्रामीण देहरादून को रवाना हो गए थे। परिजनों ने कहा इस घटना की निष्पक्ष जांच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा नहीं करवाई जाती है, तो आगामी दिनों में वे क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव करेंगे। जिसकी जिम्मेदारी सरकार व प्रशासन की होगी।
बता दें कि परिसर में कुल पांच बैरक हैं। जिनमें से सीएम की सुरक्षा में 10 से 11 कमांडो तैनात रहते हैं। लेकिन, दोपहर बाद ऐसा क्या हुआ की बैरक में गोली चल जाती है और किसी को इसकी आवाज तक सुनाई नहीं देती। इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। वहां मौजूद लोग बता रहें है कि यहां अक्सर छतों पर बंदर कूदते रहते हैं तो कभी लकड़ी गिराते हैं तो कभी बराबर वाले परिसर की टिन शेड पर कूदते हैं। जिससे हो सकता है शायद जब गोली चली हो तो लोगों ने बंदरों की उछलकूद समझकर इसे नजरअंदाज कर दिया हो।
वहीं, हवा में अक्सर जाली वाले दरवाजे जोर-जोर से टकराते रहते हैं। बैरक परिसर में गूंज के साथ यह आवाज भी भयंकर लगती है। शायद इस कारण भी गोली की आवाज और इस तरह की आवाज में लोग भेद न कर पाए हों।
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