India News (इंडिया न्यूज़) Shri Krishna Janmashtami Special मथुरा : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जानिए उन शिलाओं के बारे में, जिनसे लाखों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। मथुरा में जन्मे भगवान श्रीकृष्ण गोकुल में पले-बढ़े, लेकिन ब्रज का कण-कण उनकी लीलाओं का साक्षी है।
कलकल करती यमुना, हरे-भरे वन-उपवन और कुंड-सरोवर श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण कराते हैं। इन स्थलों पर प्रतिदिन हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं। इनमें से 21 कोसीय गिरिराज पर्वत सबसे खास है। इस पर्वत पर आज भी श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के प्रमाण मौजूद हैं।
यहां गाय के खुर, कृष्ण के पैरों के चिन्ह, ररकनी, सिंदूरी शिला कृष्ण की लीलाओं के साक्षी बने हुए हैं। दानघाटी मंदिर पर श्रीकृष्ण ने गोपियों से दान लीला की। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर श्रीकृष्ण तर्जनी उंगली पर गिरिराज पर्वत धारण किए हुए हैं।
धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण बाल अवस्था में गिरिराज पर्वत पर ग्वाल बालों के संग गाय चराते थे। प्रकृति के संरक्षण का संदेश भी श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर्वत को उठाकर दिया था।
उनकी इन्हीं लीलाओं के चिन्ह गिरिराज शिलाओं पर गाय के खुर और भगवान कृष्ण की ररकनी, उनकी अंगुलियों के चिन्ह साफ नजर आते हैं। ये शिलाएं पर्वत के ऊपर जतीपुरा श्रीनाथजी मंदिर के पास विराजमान हैं।
बड़ी संख्या में लोग इनके दर्शन के लिए यहां पहुंच रहे है, और गिरिराज पर्वत पर बने भगवान कृष्ण के चिन्ह की पूजा अर्चना कर जन्मोत्सव की खुशी मना रहे हैं। ये दानघाटी मंदिर है, यहां पर कृष्ण गोपियों से दान मांगते थे।
बासुदेव कौशिक ने बताया कि ब्रज गोपी बरसाना से माखन मिश्री लेकर गोकुल जा रही थीं। भगवान कृष्ण पर्वत पर गाय चरा रहे थे। गोपियों को माखन मिश्री ले जाते देखा तो कृष्ण ने ब्रज गोपियों से दान मांग लिया। तभी से इसका नाम दानघाटी पड़ गया।