UP News: अपनी बदहाली पर आँसू बहाता सुल्तानपुर का मेडिकल कॉलेज न चिकित्सक न जाँच की सुविधा और न दवाएं कहने को है मेडिकल कॉलेज। नाम बड़े दर्शन छोटे की कहावत को चरितार्थ करता सुल्तानपुर का मेडिकल कॉलेज। जहाँ पर जिला अस्पताल का नाम बदलकर मेडिकल कॉलेज तो हो गया लेकिन व्यवस्था पहले से और बदतर हो गई है। मैनेजमेंट एवं चिकित्सकों की लापरवाही और व्यवस्था के अभाव में मरीज दम तोड़ रहे हैं और स्वास्थ्य महकमे के अधिकारी कागजी कोरम में बिजी हैं। सुबह10 बजने के बावजूद ओपीडी से नदारद चिकित्सक कक्ष के बाहर लगा मरीजों का तांता।
दरअसल, सुल्तानपुर में वर्षों से संचालित जिला अस्पताल को 1 अप्रैल से स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय एवं चिकित्सालय में तब्दील कर दिया गया। 1 रुपये में मरीजों का नाम, उम्र, पता दर्ज कर दिए जाने वाले पर्चे से भी जिला अस्पताल का नाम हटाकर सुल्तानपुर मेडिकल कॉलेज हो गया लेकिन व्यवस्था तो पहले से भी बदतर हो गई है। लगभग 1 वर्ष से अल्ट्रासाउंड पूर्णतया बन्द है क्योंकि कि कोई रेडियोलॉजिस्ट नहीं है जिसको बाकायदा बोर्ड पर लिखकर दर्शाया गया है।MRI की कोई व्यवस्था नहीं है।नियमानुसार मेडिकल कॉलेज में 24 घंटे पैथालॉजी,ECG,एक्स-रे,सीटी स्कैन किए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए जो बमुश्किल कुछ घंटे ही संचालित हो पाती है।वेंटिलेटर को न ही कोई विशेषज्ञ चलाने वाला और न ही उसका कोई टेक्नीशियन दोनो ही नहीं है और लाखों की आबादी वाले जिले में मात्र 4 बेड पर वेंटीलेटर।इसके अलावा न तो स्किन न ही यूरोलोजिस्ट न ही न्यूरो फिजिशियन-सर्जन और न ही कार्डियोलोजिस्ट।अब ऐसे में मरीजों को क्या स्वास्थ्य सुविधा मिल रही होगी यह बताने की जरूरत नहीं।
वैसे तो मेडिकल कॉलेज निर्माणाधीन है और 1 अप्रैल से जिला अस्पताल के पुराने परिसर और भवन में मेडिकल कॉलेज का चिकित्सालय संचालित कर दिया गया। अब नाम मेडिकल कॉलेज और व्यवस्था शून्य। न कोई सिस्टम न कोई व्यवस्था बस कहने को चल रहा मेडिकल कॉलेज। परिसर में शीतल जल की मशीन शो पीस के रूप में खड़ी है। जगह-जगह कूड़े व महिला अस्पताल गेट के बगल तो कूड़े का जबरदस्त अम्बार ही लगा हुआ है। वार्डों में शौचालयों के टूटे दरवाजे और गंदगी अपनी बदहाली खुद ब खुद बयां कर रहे हैं।परिसर में कही भी ओपीडी के मरीजों के लिए कोई भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है।न ही कोई पार्किंग जहाँ देखो वहीं दो पहिया वाहन चाहे ओपीडी का प्रवेश द्वार हो या इमरजेंसी का।वार्डों में मरीजों के बेडों पर तो उनके कई तीमारदार भी बैठे दिखाई दिए और प्रदेश के साथ सुल्तानपुर में भी दस्तक दे चुके कोरोना के मरीजों के मिलने की सूचना के बावजूद कोरोना गाइड लाइन से बेखबर हर कोई दिखा, न कोई मास्क न ही कोई सोशल डिस्टेंसिंग।योगी सरकार की लाख सख्ती के बावजूद बेखौफ चिकित्सक कमीशन के चक्कर मे धड़ल्ले से मरीजों को बाहर से दवा लेने के लिए बाकायदा सरकारी पर्चे के साथ-साथ अलग से भी पर्ची पर दवा लिख लेने को विवश कर रहे।वहीं मेडिकल कॉलेज में लापरवाही व अव्यवस्था के चलते 12 अप्रैल को 2 ओपीडी के लिए आये मरीजों की भी मौत हो गई जबकि 11 अप्रैल को ही सुल्तानपुर मेडिकल कॉलेज में जिले के स्वास्थ्य महकमे के आला अधिकारियों ने जिलाधिकारी जसजीत कौर को अपने चश्मे से घंटों मॉक ड्रिल दिखाया था और 12 अप्रैल को ही 2 मरीजों की मौत हो गई।अब इसी से सुल्तानपुर मेडिकल कॉलेज की स्वास्थ्य सुविधाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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